क्या आप जानते है लाइट पॉल्यूशन भी हो सकता है खतरनाक?
डिजिटल डेस्क । हम अपनी आंखों से देख तो सकते है, लेकिन उसमें भी हमें रोशनी की जरूरत होती है। दिन के समय तो सूर्य की रोशनी ही काफी होती है, लेकिन सूरज ढलने के बाद भी हमें रोशनी की जरूर रात को पड़ती है। जिसके लिए हमें आर्टिफीशियल लाइट्स का उपयोग करना पड़ता है, लेकिन क्या आप जानते है कि इन आर्टिफीशियल लाइट्स से भी वातावरण में पॉल्यूशन होता है और ये लाइट पॉल्यूशन भी वातावरण को उतना ही नुकसान पंहुचा सकता है जितना की एयर और वॉटर पॉल्यूशन से हो रहा है। इस बारे में शायद ही ज्यादा लोगों को जानकारी हो। आइए जानते है लाइट पॉल्यूशन के कारण और इससे से जुडी समस्याओं को।
लाइट पॉल्यूशन के प्रकार
- रात में शहर की इमारतों की रोशनी का आसमान में चमकना ।
- रात के समय आपके घर या खिड़कियों में बाहर की रोशनी की चमक आना ।
- ज्यादा रोशनी वाले साज सामान का उपयोग करना ।
- आर्टिफीशियल लाइट्स का दुकानों और ऑफिसों में जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होना।
2016 में साइंस एडवांस में ग्लोबल लाइट पोल्यूशन पर एक रिपोर्ट में बताया गया कि विश्व की 80 % आबादी लाइट पॉल्यूटेड आसमान के नीचे रहती है। इंटरनेशनल डार्क स्काई एसोसिएशन, टेक्सन एरिजोना के मुताबिक लॉस एंजेलिस में आए 1994 के भूकम्प में पूरे शहर की बिजली बंद हो गई थी, उसके बाद लोगों ने आसमान में चमकते हुए बादल देखने की बात कही थी। दरअसल वो लॉस एंजेलिस केलाइट पॉल्यूशन के कारण खत्म हुई आकाशगंगा थी। इससे आप लाइट पॉल्यूशन से हो रहे नुकसान का अंदाजा लगा सकते है।
खतरनाक है लाइट पॉल्यूशन
24 घंटे में सोने और जागने की प्रोसेस को आर्टिफीशियल लाइट्स नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। जिससे हमारे शरीर में कोशिकाओं का विनियमन और हार्मोन के उत्पादन में और अन्य प्रक्रियाओं को नुकसान होता है। इसके कारण डिप्रेशन , ह्रदय रोग, अनिद्रा , मधुमेह , मोटापा , स्तन और प्रोस्टेट के कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बन सकता है।
अनिद्रा :
रात के समय स्मार्टफोन और अन्य गैजेट्स की रोशनी में रहने या इनका इस्तेमाल करने से शरीर में लाटोनिन हार्मोन का उत्पादन रोक सकता है, जो सोने और उठने की प्रक्रिया के लिए जिम्मेंदार होता है। मनोविज्ञानिकों की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्मार्टफोन या गैजेट्स का इस्तेमाल करने वालों को आधा घंटा देरी से नींद आती है।
डिप्रेशन :
आर्टिफीशियल लाइट्स में ज्यादा रहने के कारण शरीर में तनाव बढ़ने वाले हार्मोन का उत्पादन बढ़ जाता है , जो धीरे धीरे अवसाद यानि डिप्रेशन का रूप ले लेता है। एक रिपोर्ट के अनुसार अर्टिफिशिअल लाइट्स में एक नीली तरंग होती है, जो आंखों की रेटेना में मौजूद एक विशेष कोशिका को सक्रिय कर देती है, जिसके कारण दिमाग के केंद्र में जो याद्दाश्त, व्यवहार और सीखने की क्षमता के लिए जिम्मदार होता है उसको प्रभावित करता है।
स्तन कैंसर :
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च फॉर कैंसर के मुताबिक वो महिलाएं जिनके आसपास रात में अधिक रोशनी रहती है उनमें, कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। नेशनल हेल्थ सर्विस के साथ ही कई और अध्ध्यनों के मुताबिक 15 साल तक नाईट शिफ्ट कर रही नर्सों में कोलोरेक्टल कैंसर की आशंकाए ज्यादा देखी गई थी।
ह्रदय रोग और मोटापा :
ब्रिटेन की एक लाख महिलाओं पर किए गए शोध में पाया गया कि रात के समय आर्टिफीशियल लाइट्स में रहने वाली महिलाओं में मोटापे और ब्लड फैट बढ़ने की संभावनाएं अधिक होती है। इस कारण मधुमेह और अन्य ह्रदय रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
Created On :   19 Jun 2018 1:36 PM IST