भोपाल के डॉ. भारत भूषण अमेरिका में कर रहे प्रयास, ताकि लोगों को कम खर्चे में मिले बेहतर इलाज
अक्षय श्रीवास्तव, भोपाल। जानलेवा बीमारियों से भी लोगों को बचा लेने वाले डॉक्टरों को दुनिया में भगवान के बराबर दर्जा दिया जाता है। मौत की कगार पर पहुंच चुके लोगों को भी डॉक्टर दूसरी जिंदगी देने का काम करते हैं, हालांकि, समय के साथ-साथ इस पेशे का व्यावसायिकरण होने लगा है। आजकल बीमार व्यक्ति अपनी परेशानी लेकर जब डॉक्टर के पास जाता है तो वो उससे मोटी रकम वसूल लेते हैं। महंगी दवाइयों के साथ कई तरह के मेडिकल टेस्ट (जांचें) भी लिख दी जाती हैं। मरीज यह मान लेता है कि डॉक्टर ने जो टेस्ट लिखे हैं, वो बेहद जरूरी हैं और इसके बिना इलाज कराना संभव नहीं है, जबकि हमेशा परिस्थिति ऐसी नहीं होती है। कई बार बहुत कम जांच या बिना जांच के भी इलाज किया जा सकता है। इस तरह की गंभीर बीमारियों में दूसरे माध्यमों का भी सहारा लिया जा सकता है।
मेडिकल का व्यावसायिकरण होने के कारण गंभीर बीमारी से पीड़ित गरीब व्यक्ति कई बार ठीक होने की उम्मीद ही खो देता है। मेडिकल क्षेत्र में खर्चीले इलाज और महंगी जांचों पर सवाल भी उठने लगे हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाले डॉक्टर भारत भूषण मेडिकल क्षेत्र में इलाज और जांच पर होने वाले खर्चों में कमी लाने के प्रयासों में जुटे हैं। डॉक्टर भारत भूषण ने भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज से बेचलर ऑफ मेडिसिन एंड बेचलर ऑफ सर्जरी (MBBS) और डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (MD) की डिग्री हासिल की है।
कई सालों की रिसर्च और अपने अनुभव के आधार पर डॉ. भूषण बीमारियों के इलाज में होने वाले खर्च को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। डॉ. भूषण मुख्य रूप से इलाज, जांचें और मरीज की देखभाल में लगने वाली राशि को कम करना चाहते हैं। डॉ. भूषण उस टीम का भी जरूरी हिस्सा रहे हैं, जिसने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के फुजैरा पोर्ट क्लीनिक को बेहतर बनाकर ISO 9001 से मान्यता दिलाई। डॉ. भूषण वैंकूवर (कनाडा) में हुई 16वीं वर्ल्ड कांग्रेस ऑन हार्ट डिसीज (16th World Congress on Heart Disease) में पल्मोनरी एम्बोलिज्म बीमारी पर किए गए अपने काम को प्रस्तुत कर चुके हैं।
डॉ. भूषण रॉयल कॉलेज ऑफ फिजियंस (लंदन) के सहयोगी सदस्य भी रह चुके हैं। डॉ. भारत भूषण UPMC (यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर) के दो, UPMC HORIZON AND UPMS GREEN VILLIE अस्पतालों के, HOSPITALIST प्रोग्राम के डायरेक्टर रह चुके हैं। उन्होंने CARNEGIE MELLLON यूनिवर्सिटी, पेंसलवेनया से मास्टर ऑफ मेडिकल मैनेजमेंट में उच्च स्तरीय अध्ययन भी किया है। वर्तमान में डॉ. भारत भूषण टेक्सास (US) के लब्बॉक में स्थित कोवेनंट मेडिकल सेंटर में प्रमुख फिजिशियन तौर पर कार्यरत हैं। डॉ. भूषण मेडिकल केयर के क्षेत्र में इलाज के खर्चे को कम करने पर लंबे समय से काम कर रहे हैं, जिसके कारण उन्हें अमेरिका सहित पूरी दुनिया में अलग पहचान मिली है। मेडिकल क्षेत्र में इलाज और जांच की लागत को कम करने के लिए डॉ. भूषण के द्वारा किया जा रहा काम सराहनीय है। उन्होंने एंड ऑफ लाइफ केयर के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग पर काफी महत्वपूर्ण कार्य किया है। डॉक्टर भारत भूषण से दैनिक भास्कर ने चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कई जरूरी सवाल पूछे, जिसके जवाब उन्होंने बेहद संजीदगी से दिए।
सवाल: मॉडर्न हेल्थ केयर (modern healthcare) में एडवांस डायरेक्टिव (Advance Directive) कितना प्रासंगिक है ?
जवाब: जीवन के अंतिम चरणों (End of life care) में आर्टिफिशियल वेंटिलेशन, आर्टिफिशियल न्यूट्रीशन और हाइड्रेशन जैसी चीजें शामिल हो जाती हैं। इस तरह की देखभाल में काफी खर्चा होता है, जो मरीजों के लिए परेशानी का कारण बनता है। जीवन के इस चरण में मरीज खुद को खर्चीले इलाज और महंगी जांचों से भी बचाना चाहता है। वृद्धावस्था में पुरानी बीमारियों और ह्दय रोग जैसी परेशानियों के कारण लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। जिन मरीजों को कैंसर या कोई गंभीर बीमारी होती है और उसके बुरे प्रभाव के बारे में पता है, ऐसे मरीज अलग-अलग दवाओं, ब्लड और ब्लड प्रोडक्ट के साथ कीमोथेरेपी जैसे इलाजों का रुख कर जीवन बचाने की कोशिश करने लगते हैं, लेकिन ऐसे मरीजों का इलाज एडवांस डायरेक्टिव की मदद लेकर आसानी से किया जा सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिससे साबित होता है कि आधुनिक हेल्थ केयर सिस्टम में एडवांस डायरेक्टिव निश्चित रूप े प्रासंगिकता है।
सवाल: एडवांस डायरेक्टिव कितने प्रकार के होते हैं ?
जवाब: एक डॉक्टर के तौर पर मैंने इंटेंसिव केयर यूनिट (Intensive care unit) में भर्ती मरीजों के बीच एंड ऑफ लाइफ केयर में एडवांस डायरेक्टिव की उपयोगिता और प्रासंगिकता पर काफी अध्ययन किया है। कार्डियोवस्कुलर हार्ट डिसीज (सीवीडी) संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में मौत का प्रमुख कारण है, जबकि टर्मिनल सीवीडी के इलाज में एडवांस डायरेक्टिव महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कंजेस्टिव हार्ट फेलियर वाले मरीजों के जीवन के अंतिम चरणों में एडवांस डायरेक्टिव महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इंटेसिव केयर यूनिट/कार्डियक यूनिट में भर्ती कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए एडवांस डायरेक्टिव लाभदायक साबित हो सकता है। इससे मरीज के अलावा उसके परिजन भी नैतिक और भावनात्मक रूप से शारीरिक और मानसिक पीड़ा से मुक्ति पा सकते हैं। जीवन के अंतिम चरणों में ये पहल सहायक साबित हो सकती है। एडवांस डायरेक्टिव को लिविंग विल, MEDICAL DURABLE POWER OF ATTORNEY या हेल्थ केयर प्रॉक्सी इत्यादि के नाम से भी जाना जाता है। इन दस्तावेजों में मरीज DO NOT RESUSCITATE (DNR), DO NOT INTUBATE (DNI), ALLOW NATURAL DEATH आदि की बात प्रकट करके अपने इलाज की दिशा को सुनिश्चित कर सकते हैं। POLST (PHYSICIAN ORDER FOR LIFE SUSTAINING TREATMENT) के माध्यम से मरीज चिकित्सक के साथ विचार विमर्श करके अपने इलाज के ऊपर होने वाले बहुत सारे खर्चीले उपक्रमों से निवृत हो सकता है। ए़डवांस डायरेक्टिव एक ऐसा दस्तावेज है, जिससे आप अपने इलाज से संबधित इच्छाओं को व्यक्त कर सकते हैं। इस दस्तावेज के होने से डॉक्टर को नैतिक दबाव नहीं रहता और वह मरीज को उसकी सहमति के अनुसार, उसकी मान मर्यादा को सम्मानित करते हुए इलाज करता है। क्योंकि यह सर्ववदित है कि जीवन के अंतिम चरणों में, बहुत सारी बीमारियों के इलाज में उपयुक्त किए जाने वाले खर्चीले टेस्ट, औषथियां जैसे कैंसर में उपयोग होने वाली कीमियोथेरेपी या बहुत सारे ऑपरेशन मरीज की क्वलिटी ऑफ लाइफ में सुधार नहीं करते, बल्कि कई बार वो उपचार मरीज को दुखदाई होने के साथ-साथ घर परिवार वालों को अपनी जमीन, जायदाद, गनहें आदि बेचने के लिए विवश कर देते हैं।
सवाल: आपको लगता है कि एडवांस डायरेक्टिव भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का हिस्सा होंगे ?
जवाब: भारत में रहकर मेडिकल की पढ़ाई करने और कई साल वहां बिताने के कारण में भारत की हेल्थ केयर प्रणाली से अच्छी तरह वाकिफ हूं। जीवन के अंतिम समय में कई मरीज अपनी भावनात्मक इच्छाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। वो ये समझते हैं कि खर्चीला इलाज उनके जीवन को बेहतर कर सकता है, लेकिन वास्तविकता इससे अलग होती है। ऐसी स्थिति में मरीज एडवांस डायरेक्टिव के जरिए अपनी इच्छाओं को भी व्यक्त कर सकते हैं। इससे इलाज में जुटे डॉक्टर को मरीज की मन: स्थिति के बारे में पता चल जाता है और वो ऐसी दवाइयां या जाचें नहीं लिखता, जिससे मरीज को अनुपयोगी टेस्ट कराने के लिए बाध्य होना पड़े, हालांकि एडवांस डायरेक्टिव भारत में कानूनी रूप से स्वीकृत नहीं है, लेकिन एडवांस डायरेक्टिव की प्रासंगिकता भारतीय चिकित्सा प्रणाली में महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकती है। जीवन के अंतिम चरणों में मरीज निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं, उस समय वो अपने परिवार के जरिए एडवांस डायरेक्टिव को लाभ उठा सकते हैं। एडवांस डायरेक्टिव के माध्यम से अंग प्रत्यारोपण जैसा इलाज भी सुनिश्चित किया जा सकता है। ये पहल सामाजिक मानसिकता को भी धीरे-धीरे बदलने का काम करेगी। ऐसे कई मामले हैं, जो दर्शाते हैं कि टर्मिनल चरण के मामले में एडवांस डायरेक्टिव की मदद ली जा सकती है। भारत में हाल के दिनों में हम रोगी के परिवार की इच्छा के अनुसार अंग प्रत्यारोपण के कई मामले देख सकते हैं। अंग प्रत्यारोपण के लिए क्षमता का निर्माण एडवांस डायरेक्टिव के माध्यम से किया जा रहा है। ये पहल समाज को बदलने की मानसिकता के साथ उसे समृद्ध भी बना रहा है। हमने अंग प्रत्यारोपण के मामलों में देखा है कि भारत में कुछ घंटों के भीतर ग्रीन कॉरिडोर बनाकर शहरों के बीच अंगों का परिवहन किया जाता है। मेडिको लीगल इंटरवेंशन और उपयुक्त कानून के जरिए एडवांस डायरेक्टिव को भारतीय चिकित्सा के क्षेत्र में शामिल किया जा सकता है। इससे एंड ऑफ लाइफ केयर के जरिए गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देने के साथ ही अंग प्रत्यारोपण जैसी गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।
सवाल: एडवांस डायरेक्टिव से एंड ऑफ लाइफ केयर कैसे लाभांवित हो सकता है ?
जवाब: जीवन के अंतिम चरणों में बीमारियों से घिरे लोगों को काफी देखभाल और आराम की जरूरत होती है, लेकिन महंगी जांचों और खर्चीले इलाज से उन्हें बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिल पाता है। ऐसी स्थिति में एडवांस डायरेक्टिव के जरिए मरीजों के चिकित्कीय विकल्पों और उनके प्रियजनों को निर्णय लेने में मदद कर सकता है। स्वास्थ्य निर्देशों के बारे में रोगी की वरीयताओं के बारे में सुधार के लिए एडवांस डायरेक्टिव और हेल्थ केयर प्रॉक्सी के उपयोग की सिफारिश की जाती है। देखभाल के दौरान एडवांस डायरेक्टिव के जरिए मरीजों की भावनाओं का सम्मान भी किया जा सकता है। इससे फिजूलखर्ची वाले टेस्ट और महंगे इलाजों से बचने में भी मदद मिलती है। ऐसे मरीजों को एडवांस डायरेक्टिव की पेशकश जरूर की जानी चाहिए। शुरुआती चरण से एडवांस डायरेक्टिव के जरिए इलाज करने पर मरीज की बीमारी में काफी सुधार देखने को मिलता है। एडवांस डायरेक्टिव के जरिए इलाज के खर्चों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। गंभीर बीमारियों के प्रभाव का अध्ययन करने पर जो जानकारी सामने आई है, वो सोचने पर मजबूर करने वाली है। हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों में से 10-20 प्रतिशत के परिवार बीमारी के इलाज पर खर्चों के कारण गरीबी की तरफ पहुंच जाते हैं। इस तरह की बीमारियों से जूझने वाले दो तिहाई मरीज अपना इलाज प्राइवेट तौर पर ही कराते हैं। गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों के सही इलाज के साथ-साथ उसके परिवार की स्थिति भी समझने की आवश्यक्ता है, ताकि रोगी खुद को दंडित महसूस न करे। इस मानसिकता के साथ ही एडवांस डायरेक्टिव को अपनाने की जरूरत है। ऐसा होने पर लुईस कुटनर की विरासत को अनिवार्य रूप से भारतीय हेल्थकेयर सिस्टम में प्रासंगिकता मिल जाएगी। एडवांस डायरेक्टिव के द्वारा मरीज PALLIATIVE CARE या HOSPICE CARE का चुनाव भी कर सकता है। इस तरह का चुनाव करने से मरीज न केवल चिकित्सक को उसकी नैतिक और कानूनी दबाव से मुक्त करता है, बल्कि अपने शुभचिंतक एवं घर परिवार वालों को भी आर्थिक, शारिरिक, मानसिक एवं आत्मिक वेदना को कम करता है। एडवांस डायरेक्टिव के माध्यम से व्यक्ति अपने मानवाधिकार का पूर्ण रूप से उपयोग करता है।
Created On :   26 Nov 2018 1:23 PM IST