एक दिन भगवान विष्णु और ब्रह्म देव, खुद को सबसे अधिक ताकतवर साबित करने के लिए आपस में युद्ध कर रहे थे। जैसे ही वो दोनों एक दूसरे पर घातक अस्त्र-शास्त्र का प्रयोग करने लगे तभी वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव प्रकट हुए। भगवान शिव ने उन दोनों से इस ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत का पता लगाने को कहा, भगवान शिव ने कहा कि दोनों में से जो भी इस प्रश्न का उत्तर देगा वही सबसे श्रेष्ठ होगा। भगवान विष्णु उस ज्योतिर्लिंग के अंत की ओर बढ़े किन्तु उस छोर (अंत) का पता लगाने में असफल रहे। भगवान विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली थी।
ब्रह्म देव भी ऊपर की ओर बढ़े और अपने साथ केतकी के फूल को भी साक्षी बना कर ले गए। वापस आकर ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से मिथ्य वाक्य (झूठे शब्द) कहे कि उन्होंने ज्योतिर्लिंग के अंत का पता लगा लिया है और केतकी के फूल ने भी उनके इस मिथ्या (झूठ) को सत्य कह दिया। ब्रम्हा जी के इस झूठ ने भगवान शिव को अत्यंत क्रोधित कर दिया, क्रोध में आकर महादेव ने ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया और साथ ही उन्हें श्राप दे दिया कि उनकी कभी कोई पूजा नहीं होगी। ब्रह्माजी का वो कटा सिर केतकी के फूल में बदल गया। भगवान शिव ने केतकी के फूल को भी श्राप देकर कहा कि उनके शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा। तबसे शिव को केतकी के फूल अर्पित किया जाना अशुभ माना जाता है।