क्या जानते हैं आप टेक्नोलॉजी ने दी हैं कुछ अजीबोगरीब मानसिक बीमारियां
डिजिटल डेस्क। बदलते वक्त के साथ टेक्नोलॉजी बदली है वहीं लोगों का रूटीन और लाइफस्टाइल भी बदली है। हमारी जिंदगी आसान और आरामदायक बनाने वाली टेक्नोलॉजी हमारे शरिर को कुछ ऐसी बीमारियां दे रही हैं, जिनका असल कारण हम कभी समझ ही पाते हैं और दवाइयों पर पैसा खर्च करते रहते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि टेक्नोलॉजी की वजह से हमें कई मानसिक बीमारियां हो जाती है। इन बीमारियों की मुख्य वजह इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का बढ़ता इस्तेमाल है। आइए जानते हैं कि वो कौन सी बीमारियां है जो हमे टेक्नोलॉजी ने दी हैं।
बीमार होने का भ्रम- साइबरकॉन्ड्रिया
सबसे पहले तो इसकी पहली बीमारी होती है "भ्रम", ये भ्रम भी होता है बीमार होने का। इंटरनेट पर किसी बीमारी के लक्षण को पढ़कर खुद को उस बीमारी का शिकार समझ लेने की प्रवृत्ति को साइबरकॉन्ड्रिया कहते हैं। इसे चालबाजी कहें, आलस्य, गलत सूचना या अनावश्यक प्रतिक्रिया, लेकिन हाइपोकॉन्ड्रिया यानी बीमारी होने का भ्रम, इस स्थिति को इंटरनेट पर मौजूद जानकारियां और ज्यादा बढ़ा देती हैं और बिना किसी मेडिकल इन्फॉर्मेशन के व्यक्ति खुद को उस बीमारी का शिकार मानने लगता है।
गूगल इफेक्ट से खतरे में अस्तित्व
हमारे आम जनजीवन में सर्च इंजेन्स का महत्व कितना बढ़ गया है इसका पता इस बात से ही चलता है कि किसी भी सामाजिक समारोह में जब कुछ लोग बातचीत या चर्चा शुरू करते हैं तो उसकी पहली लाइन होती है- जब कल मैं गूगल कर रहा था/थी... गूगल ये शब्द संज्ञा से क्रिया बन गया है जिसका अर्थ है- ऑनलाइन किसी चीज को सर्च करना। इससे इंसानों पर ये असर पड़ा है कि हमारे मस्तिष्क ने कम से कम जानकारियां रखना शुरू कर दिया है क्योंकि उसे पता है कि हमें जो भी जानकारी चाहिए वो उसे एक क्लिक से मिल जाएगी।
सेल्फी की सनक- सेल्फाइटिस
2014 में अमेरिकन साइकायट्रिक असोसिएशन ने सेल्फाइटिस को नया मनोविकार बताया था, उन लोगों के लिए जो जरूरत से ज्यादा सेल्फी खींचते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्त करते हैं। साल 2017 आते ही ये बात साबित भी हो गई है कि सेल्फाइटिस एक मानसिक बीमारी है। इंटरनैशल जर्नल ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड अडिक्शन में छपी स्टडी में सेल्फी के लिए सनकी कई प्रतिभागियों को शामिल किया गया था जिन्हें सेल्फाइटिस बिहेवियर स्केल पर ग्रेड दिया गया। स्टडी में शामिल प्रतिभागियों में से 25 प्रतिशत को क्रॉनिक, 40.5 प्रतिशत को अक्यूट और 34 प्रतिशत को बॉर्डरलाइन सेल्फाइटिस की श्रेणी में रखा गया था।
फोन बजने का भ्रम- फैंटम रिंगिंग सिंड्रोम
कई बार लोगों को आपना फोन बजने की आवाज सुनाई देती है। ऐसे में लोग इसे सिर्फ पना भ्रम मानकर नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन ये मानसिक समस्या का संकेत है। इस बीमारी को नाम दिया गया है "फैंटम वाइब्रेशन या फैंटम रिंगिंग सिंड्रोम"। हालांकि ये कोई गंभीर समस्या नहीं है लेकिन समय रहते इसका इलाज नहीं करवाया गया तो आगे चलकर ये भयानक रूप ले सकती है। साथ ही इस पर अधिक शोध नहीं हुए हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिकों ने इसके कई कारण बताए हैं। idisorder के ऑथर डॉ लैरी रोसेन के मुताबिक, जरूरत से ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करने वाले 70 प्रतिशत लोग फैंटम रिंगिंग यानी इस भ्रम का शिकार होते हैं। जिसमें उन्हें महसूस होता है कि उनका फोन बज रहा है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता।
फोन खोने का डर- नोमोफोबिया
टेक्नोलोजी के बढ़ते इस्तेमाल ने मानवीय जीवन को सुगम बनाने के साथ साथ कई तरह की मानसिक समस्याएं हमें सौगात में दी है और इन्हीं में से एक है- नोमोबिया। इसमें पीड़ित व्यक्ति को अपने मोबाइल फोन के गुम हो जाने का भय रहता है और वह भी इस कदर कि ये लोग जब टॉइलट भी जाते हैं तो अपना मोबाइल फ़ोन साथ लेकर जाते हैं और दिन में औसतन 30 से अधिक बार ये लोग अपना फोन चेक करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक हम में से करीब 66 प्रतिशत लोग नोमोफोबिया से पीड़ित हैं।
Created On :   5 Jan 2018 12:55 PM IST