ऊंचाई और सूखे के बीच संबंध जानने के लिए, सिंधु नदी पर केंद्रित आईआईटी का अध्ययन

- सिंधु नदी पर आईआईटी का अध्ययन
- ऊंचाई और सूखे के बीच संबंध
जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ ही पानी की मांग में भी लगातार वृद्धि हो रही है किन्तु इसकी उपलब्धता सीमित है। इसके साथ ही वैश्विक जलवायु परिवर्तन और बाढ़ और सूखे जैसे अत्यधिक जल संबंधित घटनाओं के कारण मानव समाज को खतरा पैदा हो रहा है।
शोध टीम ने सूखे के पैटर्न का अध्ययन करने के लिए (1979-2020) 42 वर्षों की मासिक वर्षा और अधिकतम और न्यूनतम तापमान के व्यापक डेटा का उपयोग करने के लिए सांख्यिकीय तकनीकों का इस्तेमाल किया है। सूखे की मात्रा का निर्धारण जलवायु जल संतुलन पर आधारित सूखे के संकेतक का उपयोग करके किया गया था जो सूखे को समझने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
अपने शोध के बारे में बात करते हुए आईआईटी मंडी के डॉ. विवेक गुप्ता ने कहा, हमने सूखे और ऊंचाई के बीच एक मजबूत संबंध को देखा है। 2,000 मीटर से नीचे के क्षेत्रों में नमीं की स्थिति देखी गई, जबकि 2,000 और 6,000 मीटर के बीच की ऊंचाई में शुष्क स्थिति देखी गई। हालांकि, 4,000 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर सूखे की दर धीमी थी।
इसके अलावा शोध के निष्कर्षों ने अलग-अलग मौसमों में सूखे की स्थितियों में महत्वपूर्ण विविधता पर प्रकाश डाला है। मानसून और मानसून के बाद के मौसम में अधिकतर क्षेत्रों में नमी की स्थितियां देखी गईं, जबकि प्री-मानसून मौसम में सूखे की स्थितियों वाले अधिक क्षेत्र देखे गए। अध्ययन क्षेत्र में अत्यधिक सूखे की स्थितियां 1979-2020 तक 0 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक विस्तारित हुईं हैं। अंतत शोध के नतीजे उच्च ऊचाईयों वाले क्षेत्र के सूखेपन की ओर इशारा करते हैं, जबकि नमीं वाले क्षेत्र कम ऊचाईयों वाले क्षेत्र से जुड़े हैं।
ऊंचाई के संबंध में सूखे की प्रवृत्तियों को समझने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आईआईटी मंडी के डॉ. दीपक स्वामी ने कहा, भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1951 से 2016 की अवधि में सूखा होने की आवृत्ति में वृद्धि देखी गई है और बहुत से क्षेत्रों में हर दशक में दो से अधिक सूखे की स्थिति पैदा हुयी है। इसलिए प्रभावी जल प्रबंधन योजना के लिए सूखे की गतिशीलता को समझना महत्वपूर्ण है।
आईएएनएस
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Created On :   13 Jun 2023 8:21 PM IST