देश की लोअर कोर्ट में 2.54 करोड़ केस पेंडिंग

देश की लोअर कोर्ट में 2.54 करोड़ केस पेंडिंग
देश की लोअर कोर्ट में 2.54 करोड़ केस पेंडिंग

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कहावत है, न्याय में विलंब भी एक तरह से अन्याय ही है। भारतीय न्याय प्रणाली पर इस वजह से अक्सर उंगलियां उठाई जाती रही हैं। भारतीय न्याय प्रक्रिया में मुकदमों के निपटारे में होने वाले अनावश्यक विलंब पर चार राज्यों हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, केरल और एक केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की ताजा पहल ने उम्मीद की लौ जलाई है। इन राज्यों ने अपने लोअर कोर्ट में एक दशक या उससे अधिक समय से लंबित मुकदमों को पूरी तरह निपटा कर अन्य राज्यों के सामने एक मिसाल कायम की है। 

गौरतलब है कि हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, केरल और चंडीगढ़ ने अपनी न्याय प्रक्रिया में सुधार करते हुए यह महत्वपूर्ण उपलब्धि अर्जित की है। इन राज्यों के अलावा दिल्ली, असम, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक भी लंबित मामलों के मामले में ज्यादा पीछे नहीं हैं। इन राज्यों ने भी दशकों से लटके मुकदमों को करीब एक फीसदी के स्तर पर ला दिया है। हालांकि, इसमें सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में अटके मुकदमों के आंकड़े शामिल नहीं हैं।

देश के करीब 17000 लोअर कोर्ट में 2.54 करोड़ मुकदमे लंबित हैं। नेशनल जूडिशल डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक इनमें से 22.76 लाख मुकदमे दस या अधिक सालों से लंबित हैं। हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल और दिल्ली में लंबित मुकदमों की संख्या काफी है। ऐसे में दशकों से लटके मुकदलों का निपटारा होना इन राज्यों में जजों की कार्यकुशलता और सरकार व हाई कोर्ट के प्रयासों के औचित्य की ओर साफ इशारा है। मुकदमों के निर्णय में लगने वाले अनावश्यक विलंब जेलों में विचाराधीन कैदियों की भीड़ के रूप में भी दिखाई देता है। लंबित मुकदमों से सबसे ज्यादा वरिष्ठ नागरिक और महिलाएं परेशान हैं। लंबित मुकदमों में इनसे जुड़े मामलों की हिस्सेदारी करीब 15 फीसदी है। इस समय वरिष्ठ नागरिकों के 11 लाख और महिलाओं के 26 लाख से अधिक मुकदमे विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। 

एक अनुमान के अनुसार देश की जेलों के कुल कैदियों में से दो तिहाई विचाराधीन कैदी हैं। कुछ राज्यों ने इस समस्या से उबरने के लिए अपनी कार्यशैली में बदलाव किया है, जबकि बहुत सारे राज्यों ने अब तक इस पर विचार तक शुरू नहीं किया है। गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की अदालतों में दशकों से हजारों मुकदमे लंबित हैं, जिनको लेकर कोई चिंतित नहीं है।

गुजरात इस मामले में शीर्ष पर है। गुजरात के लोअर कोर्ट में कुल लंबित मुकदमों में से दशकों से लटके मुकदमों का हिस्सा 20 फीसदी बैठता है। ओडिशा में यह 17 फीसदी, बिहार में 16 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 13 फीसदी, पश्चिम बंगाल व उत्तराखंड में 12 फीसदी और जम्मू-कश्मीर में 11 फीसदी है। ऐसे में देश के न्याय उपलब्ध कराने वाली व्यवस्था को उत्तरदायी बनाने के लिए आमूल बदलाव की जरूरत है। लोगों को मुकदमों से जुड़ी औपचारिकताएं पूरी करने में अनावश्यक देरी से बचाने के लिए ऑटोमेशन की जरूरत है। हाल के दिनों में गई कुछ सरकारी पहलों के अब नतीजे दिखाई देने लगे हैं। नेशनल जूडिशल डाटा ग्रिड और कोर्ट सॉफ्टवेयर जैसे तकनीकी प्लेटफॉर्म काफी उपयोगी4 साबित हुए हैं। इन प्लेटफार्म्स पर सभी मुकदमे अपलोड किए जा रहे हैं। मुकदमों का स्टेटस भी अब ऑनलाइन उपलब्ध हैं। मोबाइल फोन और मैसेज के माध्यम से सूचना प्रदान करने का भी प्रावधान किया गया है। इसका मंथर गति से काम करने वाली भारतीय न्यायिक प्रणाली पर अच्छा असर पड़ा है। 

Created On :   11 Sept 2017 8:19 PM IST

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