पाकिस्तानी-अमेरिकी लश्कर जासूस को समझने में अमेरिका ने की बहुत देर
- पाकिस्तानी-अमेरिकी लश्कर जासूस को समझने में अमेरिका ने की बहुत देर
न्यूयॉर्क, 25 नवंबर (आईएएनएस)। विनाशकारी 9/11 हमले के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपनाए गए तमाम आतंकवाद विरोधी उपायों के बाद भी एक पाकिस्तानी-अमेरिकी भारत जाता है और वहां एक हमले की साजिश रचता है।
डेविड कोलमैन हेडली नाम का इस्तेमाल करने वाले दाउद सईद गिलानी ने पाकिस्तान सरकार-समर्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की ओर से भारत में 5 जासूसी मिशन किए और फिर 2008 में 26/11 हमला हुआ। इस हमले में मारे गए 165 लोगों में से 10 पाकिस्तानी आौर 6 अमेरिकी थे और कुल 300 से ज्यादा लोग घायल हुए।
उसने लश्कर और पाकिस्तानी जासूस एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) दोनों के लिए काम करने की बात स्वीकारी है। साथ ही उसके अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट से भी संबंध होने की पूरी संभावना है।
माना जाता है कि अमेरिकी ड्रग एनफोर्समेंट एजेंसी (डीईए) में काम करने वाला गिलानी अमेरिका, भारत, पाकिस्तान और यूरोप में मुखबिर के तौर पर काम करता था, जिसकी हरकतें आज भी रहस्य बनी हुई हैं।
मुंबई के हमले से उसका संबंध न जोड़ पाने की अपनी खुफिया कमियों को अमेरिका ने स्वीकार कर लिया है, हालांकि उसने यह दावा किया कि उसने 2008 में भारत को हिला देने वाले इस हमले में अन्य जानकारी दी थीं।
गिलानी/हेडली मामले को देखने वाले एक गैर-लाभकारी खोजी पत्रकारिता संगठन प्रोपब्लिक ने दावा किया है कि अमेरिकी अधिकारियों को कई टिप मिले थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद की तस्वीरों को प्रकाशित करने वाले अखबार के खिलाफ डेनमार्क में हुए हमलों की जासूसी करने में शामिल होने के बाद उसे 2009 में अमेरिकी अधिकारियों ने गिरफ्तार किया था। आखिर में मुंबई नरसंहार में उसकी भूमिका के लिए उसे शिकागो की एक संघीय अदालत में पेश किया गया था और 2013 में 52 साल की उम्र में उसे 35 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि अब उसके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
आईएएनएस ने जब अमेरिका के संघीय जेल ब्यूरो (बीओपी) के कैदियों के डेटाबेस को देखा तो उसमें उसका नाम नहीं था। मीडिया रिपोटरें में कहा गया कि 2018 में एक संघीय जेल में हेडली पर हमला हुआ और उसके बाद उसे शिकागो के एक अस्पताल में ले जाया गया। लेकिन लेकिन यूरोपीय फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज के अनुसार, उनके वकील जॉन थिस ने हमले की बात से इनकार किया। इस स्टडी में वकील को उद्धृत करते हुए लिखा गया, मैं हेडली के साथ नियमित संचार में हूं। मीडिया रिपोर्ट में कही गई बातें निराधार हैं लेकिन उसके ठिकाने का खुलासा नहीं कर सकता हूं, वह न तो शिकागो में हैं और न ही अस्पताल में।
वहीं गिलानी के सहयोगी तहव्वुर हुसैन राणा को लॉस एंजिल्स मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर के बीओपी डेटाबेस में अज्ञात के रूप में दिखाया गया है। राणा पाकिस्तानी पूर्व सैन्य डॉक्टर हैं और उन्होंने ही गिलानी को लश्कर के लिए काम करने के लिए भर्ती किया था। 2011 में शिकागो की संघीय अदालत में डेनमार्क के अखबार वाले मामले में उसे दोषी ठहराया गया था। लेकिन कनाडाई नागरिकता रखने वाले राणा को मुंबई हमलों में उनकी कथित संलिप्तता के आरोपों से बरी कर दिया गया था। जबकि उसने भारत का दौरा भी किया था और वह हमले का निशाना बने ताजमहल पैलेस और टॉवर में रुका भी था।
अमेरिका ने गिलानी या राणा को भारत में प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया हालांकि भारतीय जांचकर्ताओं को गिलानी का इंटरव्यू लेने की अनुमति दी थी।
एक पाकिस्तानी राजनयिक का अमेरिका में जन्मा बेटा हेडली, जिसकी मां फिलाडेल्फिया में समाज में उंचे तबके से संबंध रखने वाली अमेरिकी महिला है। अपने आतंकी मिशन में खुद के पाकिस्तानी मूल के होने की पहचान छिपाने के लिए अपने नाम दाउद की जगह डेविड और सरनेम में अपनी मां की सरनेम इस्तेमाल की। उसका बचपन पाकिस्तान में बीता और अमेरिका लौटने पर उसने अपनी मां के साथ फिलाडेल्फिया में अपने रेस्तरां और पब में काम किया।
उसका परिवार पाकिस्तान से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। उसका सौतेला भाई डेनियल गिलानी फ्रांस में एक पाकिस्तानी राजनयिक है और पहले पाकिस्तानी फिल्म सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष भी रह चुका है।
दाउद गिलानी पहले भी दो बार 1988 और 1997 में गिरफ्तार हो चुका था, तब उस पर ड्रग तस्करी के आरोप थे। प्रोपब्लिका ने बताया, दोषी ड्रग तस्कर ने 1990 के दशक के अंत में पाकिस्तान के लश्कर का कट्टरपंथी बन चुका था और ड्रग एंफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के लिए एक पेड मुखबिर बन चुका था।
जॉर्ज डब्ल्यू बुश के प्रेसिडेंसी कार्यकाल के दौरान मुंबई हमले हुए थे और फिर उनके बाद उनकी जगह बराक ओबामा आए, तब उनके राष्ट्रीय खुफिया निदेशक जेम्स क्लैपर ने हेडली मामले को संभालने को लेकर की गई कार्रवाई की एक समीक्षा की थी। उनके ऑफिस ने 2010 में स्वीकार किया कि सरकार ने 2009 तक हेडली को आतंकवाद से नहीं जोड़ा था, जब तक कि मुंबई में आतंकी हमला नहीं हो गया था।
उनके कार्यालय ने एक बयान में कहा, समीक्षा में पाया गया है कि हेडली से संबंधित कुछ जानकारी मुंबई हमलों से पहले संयुक्त राज्य सरकार के अधिकारियों के पास थीं लेकिन उस समय जो नीतियां और प्रक्रियाएं थीं उनके मुताबिक यह पर्याप्त तौर पर स्थापित नहीं हो पा रहा था कि वह भारत में आतंकवादी हमले की साजिश रचने में लिप्त है।
रिपोर्ट में कहा गया, यदि संयुक्त राज्य सरकार ऐसा कर पाती तो वह भारत सरकार को तुरंत यह जानकारी दे देती।
भारत के गृह सचिव रहे जी.के. पिल्लई ने निराशा जताई कि वाशिंगटन ने गिलानी की गतिविधियों के बारे में भारत को जानकारी नहीं दी, जबकि हमलों के बाद भी भारत आता रहा।
प्रोपब्लिका ने जोर देते हुए कहा, सरकार तब हेडली को पकड़ पाई जब ब्रिटिश खुफिया सूचनाओं ने उसे इस बारे में जानकारी दी। जबकि इस दौरान 7 साल तक हेडली अपने इस्लामिक आतंकी नेटवर्क पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी के मिशनों के लिए पूरी दुनिया में घूमता रहा और अमेरिकी खुफिया एजेंसी पूरी तरह विफल रही।
अमेरिका में 2001 में 9/11 के हमलों के बाद, जांचकर्ताओं ने न्यूयॉर्क में उसके डीईए संचालकों के सामने उससे पूछताछ की थी और वह साफ बच निकला।
एक साल बाद संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) को उसके आतंकवादी लिंक के बारे में एक और टिप मिली और 2005 में जब उसकी एक पत्नी जिसने हेडली को घरेलू हिंसा के आरोपों में गिरफ्तार कराया था, उसने हेडली के कट्टरपंथी विचारों और प्रशिक्षण के बारे में खुलासा किया।
रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया, पूछताछ की गई, लेकिन उनका साक्षात्कार नहीं लिया गया और न ही उसे लिस्ट में रखा गया।
हेडली के बारे में और टिप तब मिलीं जब उसकी एक अन्य पत्नी ने इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को बताया कि हेडली एक आतंकवादी और जासूस था और वह बार-बार मुंबई जाने और ताजमहल पैलेस होटल में रुकने के बारे में बताता था।
तब भी अधिकारियों ने उसका पीछा नहीं किया क्योंकि उन्हें नहीं लगा कि यह पर्याप्त थीं। आखिरी टिप मुंबई नरसंहार के बाद एक पारिवारिक मित्र और उसके चचेरे भाई से मिली, जिनसे एफबीआई ने पूछताछ की थी।
क्लैपर की समीक्षा के बाद कई बदलाव किए गए होंगे ताकि एक और 26/11 से बचा जा सके। क्लैपर के कार्यालय ने कहा, दिसंबर 2009 के बाद से ही ओबामा प्रशासन ने सूचनाओं के साझाकरण में सुधारों पर ध्यान दिया। नई प्रक्रियाएं अपनाईं गईं और व्यक्तियों और उनकी गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट के बारे में जानकारी रखने के लिए निगरानी बढ़ाई गई।
एसडीजे-एसकेपी
Created On :   25 Nov 2020 3:30 PM IST