भावुकता भरे एक आंसू ने देश के अन्नदाताओं की जमीर की जमीन को सींच दिया, जवान की एक लाठी ने किया हल का काम

किसान आंदोलन 2021- कानून वापसी, घर वापसी भावुकता भरे एक आंसू ने देश के अन्नदाताओं की जमीर की जमीन को सींच दिया, जवान की एक लाठी ने किया हल का काम
हाईलाइट
  • किसानों की मांग के आगे झुकी मोदी सरकार

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक साल पहले कृषि कानूनों के विरोध में किसान जब दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठा होने लगे तब पूरा देश, देश की राजधानी में किसानों की जुटती भीड़ को देखकर चिंतित होने लगा था। सर्दियों के शुरूआती मौसम की आहट के साथ साथ सरकार की चौखट पर दस्तक देते किसानों की एकजुटता को देखकर मौसम के साथ साथ केंद्र सरकार की बातूनी बयानों, अपशब्दों की मार भी किसानों के हौंसले को डिगा नहीं सकी। बीजेपी सरकार को ये कतई उम्मीद नहीं थी कि किसान इतने लंबे समय तक अपने घर परिवार और खेतों को छोड़कर दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहेंगे और टिककर सरकार के खिलाफ मुखर होते रहेंगे। आखिरकार किसानों के अड़ियल रवैए ने केंद्र की मोदी सरकार को मांग मनमाने के लिए मजबूर कर दिया।  

कोविड पैर पसार रहा था और किसान आंदोलन बढ़ता रहा

देश के कोने कोने से आए किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहकर भीषण सर्दी से लेकर तपती गर्मी और दिल्ली के दम फूलते प्रदूषण का डटकर  सामना किया। यहीं नहीं किसानों ने उस कोरोना महामारी के दंश को भी झेला जिसने पूरी दुनिया में आहाकार मचाया। कहर बरपाते कोरोना में कोविड निर्देशों का पालन करते हुए देश का किसान दिल्ली के चारों ओर पसरा रहा। हल चलाने वाले किसानों ने कोरोना नियमों का पालन किया। और एक के बाद एक सरकारी वार्ता  के बाद मोदी सरकार की चिंता बढ़ाता रहा। वहीं किसानों का हुजूम दिल्ली की सीमाओं पर डटा रहा। कृषि कानूनों की मार को किसान कोविड मार के समतुल्य तौल रहे थे। और अपनी जान की परवाह किए बिना सरकार को चेता रहे थे। किसान भाई कृषि कानूनों को अधिक खतरनाक मान रहे थे।

जहां से देश चलता है उस दिल्ली को किसान परिवारों ने घेरा

कुछ समय के निकलने के बाद किसान परिवारों से महिलाएं और बच्चे भी सिंघू, टिकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर जारी  कृषि विरोध प्रदर्शन में इकट्ठा होने लगे। समय के साथ साथ  ट्रैक्टर-ट्रॉलियों ने  किसानों के घरों की शक्ल लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे किसान परिवार का हिस्सा बने। कई जगहों पर तो कच्चे-पक्के अस्थायी मकान खड़े किए गए।  व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग पर अब गाड़ियों का आवागमन रुकने लगा। जिससे मार्ग पर रेंगने  वाली गाडियों की भीड़ की जगह जाम के तौर पर किसानों की भीड़ दिखने लगी। पूरे देश का पेट भरने वाले अन्नदाता ने पेट की भूख को मारकर आसपास के लोगों से मदद की गुहार लगाई।  फिर कई जगह किसान आंदोलन में लंगर भोजन, पानी और अन्य जरूरतमंद सुविधाओं को किसान और उनके समर्थित संगठनों ने पूरा किया।  इसी बीच एक समय ऐसा आया जब एक देश, दो परेड, किसान और जवान के बीच गणतंत्र का मान सम्मान आया। अब तक किसानों पर सरकारी  शब्दों की मार पड़ रही थी जिनमें देश के अन्नदाता को आंदोलनजीवी परजीवी जैसे शब्दों से सरकार के लोग संबोधित कर रहे थे। लेकिन अपने धैर्य और सहनशीलता का परिचय देते हुए किसान ने हर उस पीड़ा को सहा जो आंदोलन के दौरान शासक वर्ग द्वारा दी जाती है। गणतंत्र दिवस पर एक समय ऐसा आया जब  लगने लगा कि किसान आंदोलन सरकार के जाल में फंसकर अब घुटने टेक देगा तभी किसान नेता राकेश टिकैत के भावुकता भरे एक आंसू ने पूरे देश के किसानों की जमीर की जमीनी को सींच दिया। फिर देश के किसान भाई  किसान भाई के आंसू का बदला लेने के लिए अपने अपने घरों  से कफन ओढ़कर निकल पड़े। किसान परिवारों की पीड़ा अब देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं से निकलते हुए विश्वभर में  महसूस होने लगी।  अब किसान आंदोलन को देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलने लगा था।

 देश के पालनकर्ता को अंतरराष्ट्रीय समर्थन

अंतरराष्ट्रीय हस्तियों की ओर से भी किसानों के पक्ष में मांग उठने लगी। सिंगर-अभिनेत्री रिहाना, पर्यावरणविद् एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग और अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी माया हैरिस ने किसानों की मांग को जायज ठहराते हुए किसानों की  बुलंद आवाज की  पिच बढ़ा दी। रिहाना ने ट्वीट किया हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं। ग्रेटा थनबर्ग ने लिखा मैं अभी भी किसानों के साथ खड़ी हूं और उनके शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का समर्थन करती हूं, कितनी भी नफ़रत, धमकियां और मानवाधिकारों का उल्लंघन इसे नहीं बदल सकता। ब्रिटेन में लेबर पार्टी, लिबरल डेमोक्रेट और स्कॉटिश नेशनल पार्टी के सांसदों ने किसानों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और कंज़रवेटिव विपक्ष के नेता एरिन ओ" टूले ने भी किसान विरोध प्रदर्शन पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया खामोशी को लेकर चिंता व्यक्त की थी । हालांकि भारत सरकार ने इन बयानों की निंदा करते हुए इसे अपना आंतरिक मामला बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया। 

बड़ी खूबी- शांतिपूर्ण और अंहिसात्मक रहा आंदोलन

साल भर से अधिक समय तक चलने वाला किसानों का विरोध प्रदर्शन  शांतिपूर्ण और अंहिसात्मक रहा। लेकिन कई ऐसे मौके भी आए जब लगा कि आंदोलन उखड़ने वाला है। तभी दिसंबर के महीने में समाचार एजेंसी पीटीआई की एक तस्वीर ने, जिसमें एक अर्धसैनिक बल का जवान एक वृद्ध सिख व्यक्ति पर लाठी चलाता हुआ दिखाई दे रहा था,जिसकी वजह से केंद्र की मोदी सरकार को विपक्ष की ओर से भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। गणतंत्र दिवस  26 जनवरी को  किसान दिल्ली में जाने लगे तभी किसानों के बीच में तथाकथित कुछ किसानों ने घुसकर प्रदर्शन को हिंसक बना दिया। उस दौरान ऐसा लगने लगा कि ये विरोध प्रदर्शन अब ख़त्म हो सकता है। कुछ किसान पुलिस के प्लान रूट से हटकर दिल्ली के दिल लाल किला पर चढ़ने लगे। इस दौरान  किसानों और पुलिस के बीच झड़प  देखने को मिली। 

सरकार का विरोध

दूसरी तरफ केंद्र की बीजेपी सरकार और उसके तमाम संगठनों ने किसान आंदोलन के विरोध में रैलियां, सम्मेलन और कई बैठक की। गणतंत्र दिवस के करीब दस महीनों बाद उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले में विरोध प्रदर्शन कर लौटकर रहे किसानों के ऊपर केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा और उसके कुछ सहयोगियों ने किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी। जिसमें  कुल आठ लोगों की मौत हो गयी। जिसकी जांच शीर्ष कोर्ट की अगुवाई में जारी है। इसी बीच कई प्रदेशों मे चुनाव भी हुए जिनके नतीजों ने मोदी सरकार को सोचने को मजबूर कर दिया।

मोदी सरकार की बढ़ा दी चिंता, सोचने को किया मजबूर

किसानों के लंबे समय से लगातार भारी विरोध और उपचुनावों में बीजेपी की हार और आने वाले साल में  होने वाले पांच राज्यों के चुनाव के चलते गुरूनानक जंयती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में सुबह ही कृषि कानूनों की वापसी का जैसे ही ऐलान किया तब किसानों में खुशी का माहौल देखने को मिला। लेकिन फिर भी किसानों का कहना था कि केंद्र की बीजेपी सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उसके ठीक बाद संसद में शीतकालीन सत्र शुरू हुआ और मोदी सरकार ने ठीक उसी तरह कृषि कानूनों की वापसी की जैसे उन्हें लाया गया। और फिर सदन से पारित हुए कृषि कानून रद्द बिल। इसके साथ ही किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य और अन्य  मांगों को मानते हुए केंद्र सरकार और किसान संगठनों में समझौता हो गया। मोदी सरकार के आश्वासन के बाद किसान आज 15 दिसंबर  2021 को पूरी तरह से आंदोलनरत जमीन को खाली कर रहे है। किसान अपने अपने  गांव और घर लौट रहे है। देश के किसानों के चेहरे पर जीत की खुशी सालभर बाद रिटर्न हो रहे है।

किसानों को मंत्री  की बर्खास्तगी और न्याय की मांग

किसान नेता राकेश टिकैत 383 दिन बाद दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर से अपने गांव लौट रहे हैं। इसी के साथ अब बाधित रास्ता खुल जाएगा और आम आदमी को आने जाने में राहत होगी। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि उनकी मांग लखीमपुर हिंसा में मंत्री अजय मिश्रा की बर्खास्तगी  तक की जारी रहेगी। घर वापसी से पहले  टिकैत ने कहा हम 13 महीने यहां रहे, अब 13 घंटे मुजफ्फरनगर में बिताएंगे। वहीं किसान नोता ने आंदोलन की खासियत बताते हुए कहा कि एकजुटता, शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन और सबका सहयोग कृषि आंदोलन में देखने को मिला। नेता ने कहा कि आंदोलन स्थगित हुआ है लेकिन मंत्री की बर्खास्तगी की मांग जारी रहेगी।  

मंत्री की गाड़ी से कुचले गए किसान

3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा और अन्य सहयोगियों ने बड़ी बड़ी महंगी गाड़ियों से प्रदर्शन कर लौट रहे किसानों को रौंद दिया जिसमें मौके पर ही चार प्रदर्शनकारी किसानों की मौत हो गई। बाद में भड़की हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार समेत चार और लोगों की मौत हो गई थी।  बाद में  हिंसा मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल जांच टीम गठित की। जांच टीम ने  केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा टेनी समेत 13 आरोपियों के खिलाफ प्लानिंग कर साजिश और हत्या में गंभीर धाराएं लगाई। एसआईटी को मिले सबूतों से साबित हुआ है कि आरोपी ने लापरवाही और अनजाने में यह आपराधिक कृत्य नहीं किया, बल्कि जानबूझकर, पूर्व नियोजित रणनीति के तहत किसानों को मारने के मकसद से किया, जिससे लोगों की मौत हो गई। लखीमपुर घटना उस समय हुई जब किसान भारत के विभिन्न इलाकों में कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीय किसान इस नरसंहार को तब तक नहीं भूलेंगे, जब तक हम पीड़ितों को न्याय नहीं दिला देते।

किसान हटे, अपने घर लौटे सड़कों पर पसरा सन्नाटा

सिंघु बॉर्डर से किसान हट गए हैं।  किसानों के जाने के बाद सड़क पर  सन्नाटा है, लेकिन सरकार के आदेश पर दिल्ली पुलिस द्वारा किसान आंदोलन को कमजोर करने और किसानों को रोकने के लिए लगाए गए बैरिकेट, कंटीले तार और मोटी दीवारों को हटाने का काम जारी है। किसान तो अब लगभग चले गए हैं लेकिन इन रुकावटों के चलते हाइवे अब तक बन्द ही है। अगले कुछ दिनों में इन्हें हटा दिया जाएगा और रास्ता पर एक साल पहले की तरह ही गाडियां सरपट दौडने लगेगी। आपको बता दें कि पिछले 1 साल से दिल्ली चंडीगढ़ हाईवे सिंघु बॉर्डर के पास बन्द था। कहा जाता है कि  किसान आंदोलन से यहां के व्यापारियों को  व्यवसाय चलाने में दिक्कत आ रही थी और आमलोगों को भी परेशानी का सामना करना पड़ा।

किसानों का नया मैदान, चुनावी मैदान

आगामी साल 2022 के शुरूआत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव  होने वाले है। उनमें से ज्यादातर राज्य उत्तरभारत में आते है। पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड में होने वाले  विधानसभा चुनावों में किसान आंदोलन की झलक देखने को मिलेगी। क्योंकि किसान आंदोलन इन्हीं राज्यों में प्रमुखता से पैदा हुआ। वैसे दो अन्य राज्य गोवा मणिपुर में भी किसानों का असर नजर आ सकता है।  कृषि कानूनों से किसान और केंद्र की बीजेपी सरकार के बीच पनपी विद्रोह की भावना अब आने वाले चुनावों में किस तरह उभरेंगी यह आने वाले चुनावों के परिणामों से पता लगेगा।

 

Created On :   15 Dec 2021 6:24 AM GMT

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