लालू यादव मना रहें हैं 71वां जन्मदिन, कुछ ऐसा रहा राजनीतिक सफर
- जनता दल की इस लालटेन ने बिहार की गरीब जनता के घरों में वो उजाला किया है
- जिसने लालू यादव को बीते 70 सालों में कुशल नेता के साथ बिहार की सियासत का शहंशाह बना दिया।
- जयप्रकाश नारायण
- राज नारायण करपूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा से प्रेरित होकर लालू ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया।
- लालू यादव आज अपना 71वां जन्मदिन मना रहे हैं।
- लालू यादव के राजनीतिक सफर की शुरूआत 1970 में छात्र राजनीति से हुई
डिजिटल डेस्क, पटना। लालू प्रसाद यादव आज अपना 71वां जन्मदिन मना रहे हैं। 11 जून 1948 को बेहद सामान्य परिवार में पैदा हुए लालू प्रसाद यादव का देश की राष्ट्रीय राजनीति में उभरना किसी चमत्कारिक कहानी से कम नहीं है। एक ऐसे शख्स जिनका बचपन बेहद कठिनाइयों में गुजरा, वह आगे चलकर भारत की सियासत का ऐसा ‘शहंशाह’ बनकर उभरे, जिसकी चाल के सामने विरोधी दल नतमस्तक हो जाएं, इसे चमत्कार नहीं तो और क्या कहेंगे। जनता दल की इस लालटेन ने बिहार की गरीब जनता के घरों में वो उजाला किया, जिसने लालू यादव को बीते 70 सालों में कुशल नेता के साथ बिहार की सियासत का सिरमौर बना दिया।
1970 में रखा राजनीति में कदम
लालू यादव के राजनीतिक सफर की शुरूआत 1970 में छात्र राजनीति से हुई, लालू ने अपने जीवन की पहली चुनावी जीत पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव के रूप हासिल की। जयप्रकाश नारायण, राज नारायण करपूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा से प्रेरित होकर लालू ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया।
29 साल की उम्र में बने सांसद
छात्र संघ चुनाव जीतने के बाद लालू ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बिहार के मुख्यमंत्री और जनता पार्टी के अध्यक्ष सत्येंद्र नारायण की सलाह पर लालू ने अपने जीवन का दूसरा चुनाव लोकसभा सांसद के रूप में लड़ा और जीता। लालू 29 वर्ष की आयु में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद जाने वाले युवा सांसदो में से एक थे। धीरे-धीरे लालू ने बिहार की राजनीति में अपना सिक्का जमाना शुरू कर दिया। नतीजतन लालू मुसलमानों और यादवों के बीच प्रख्यात नेता के रूप में उभरे।
कांग्रेस के वोट बैंक में लगाई सेंध
राजनीति को बड़ी-बड़ी कोठियों के चंगुल से आजाद कराकर खेत में बैल चराने वाले किसान और समाज में हाशिए पर पड़े पिछड़े और दलितों के बीच खड़ा कर लालू यादव ने भारतीय सियासत में नया अध्याय जोड़ दिया। लालू के दौर में ज्यादातर मुसलमान कांग्रेस के समर्थक हुआ करते थे, लेकिन लालू ने वह वोटबैंक तोड़ दिया। दूसरा फैक्टर जिसने लालू के पक्ष में काम किया वो 1989 में भागलपुर हिंसा थी। जिसके बाद अधिकांश मुसलमान यादवों के पक्ष में हो गये । 1989 में आम चुनावों और राज्य विधानसभा चुनावों में नेशनल फ्रंट का नेतृत्व लालू ने किया। 1990 में लालू को बिहार का मुख्यमंत्री चुना गया। 1990 के दशक में लालू ने बिहार को आर्थिक रूप से मजबूत किया, जिसकी तारीफ विश्व बैंक तक कर चुका है।
अपनी पत्नी राबड़ी यादव को बनाया सीएम
बिहार की राजनीति में अपना सिक्का जमाने के बाद लालू ने अपनी पत्नी को बिहार का सीएम बनाकर सबको चौंका दिया। 25 जुलाई 1997 को लालू की पत्नी राबड़ी देवी ने बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। पत्नी को सीएम बनाने के पीछे की वजह लालू यादव पर लगा चारा घोटाले का आरोप बताया जाता है। यह एक ऐसा दाग था जिसने लालू यादव को जेल तक पहुंचा दिया।
चारा घोटाला पर देना पड़ा था इस्तीफा
देश के सियासी मंच पर खुद को स्थापित कर चुके लालू यादव के जीवन में विवादों का आना तब शुरू हुआ जब उनपर चारा घोटाले का आरोप लगा। यह एक ऐसा दाग रहा जिसने लालू यादव की छवि को प्रभावित किया। 950 करोड़ के चारा घोटाले की बात जब जनता के सामने आई तो पूरे देश में लालू की छवि पूरी तरह से धूमिल होने लगी थी। विपक्ष ने चारा घोटाले पर लालू यादव पर हर तरह से वार किया। इसी वजह से लालू को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
कुल्हड़ से दिया रोजगार
लालू यादव ने रेलमंत्री के पद रहते हुए कुम्हारों को रोजगार देते हुए ट्रेनों में कुल्हड़ में चाय बेचने की प्रथा को बढ़ावा दिया और प्लास्टिक कप को पूरी तरह से बैन कर दिया। लालू के इस फैसले की ग्रामीण वर्ग ने बहुत तारीफ की। कुल्हड़ को बढ़ावा देना रोजगार के क्षेत्र में लालू का सरहानीय कदम माना जाता है।
रेलवे को दिया 2.5 बिलियन का मुनाफा
बतौर रेलमंत्री लालू यादव ने रेल मंत्रालय की कमान संभालते हुए उस वक्त रेलवे को मुनाफे में पहुंचाया जब रेलवे घाटे में चल रहा था, अपना कार्यकाल पूरा करते-करते लालू ने रेलवे को 2.50 बिलियन रूपए का जबर्दस्त मुनाफा दिया। ये प्रॉफिट अपने आप में एक रिकॉर्ड है जो आज तक किसी भी रेलमंत्री ने नहीं दिया है।
लालू से प्रभावित हुई हावर्ड यूनिवर्सिटी
लालू यादव हमेशा अपनी मैनेजमेंट स्किल को लेकर सुर्खियों में रहे है। लालू की मैनेजमेंट स्किल इतनी अच्छी मानी जाती है कि खुद हावर्ड यूनिवर्सिटी उनकी इस स्किल से प्रभावित थी। हावर्ड विश्वविद्यालय की एक टीम भी भारत आई और उसने लालू के मैनेजमेंट स्किल्स का अध्ययन किया। लालू ने एक बार हावर्ड और वार्टन के छात्रों को हिन्दी में संबोधित भी किया था।
बिहार में "महागठबंधन" का निर्माण
2014 में पूरे देश में मोदी लहर बिहार अछूता नहीं रहा था। लालू यादव ने लोकसभा में चोट खाने के बाद मोदी लहर को विधानसभा चुनाव में रोकने के लिए लालू ने जेडीयू नेता नीतीश कुमार के साथ में चुनाव लड़ने का फैसला लेकर सबको चौंका दिया। नीतीश कुमार और कांग्रेस ने मिलकर "महागठबंधन" बनाया और एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला जिसने बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से "महागठबंधन" को 178 सीटों पर जीत दिलाई।
Created On :   11 Jun 2018 12:12 PM IST