सीएए मुस्लिम विरोधी, या संविधान के खिलाफ, भाजपा ने दिए 15 सवालों के जवाब
नई दिल्ली, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। भाजपा ने नागरिकता संशोधन कानून(सीएए) पर विपक्ष के सवालों के जवाब देने के लिए एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है। इसमें 15 प्रमुख सवालों के जवाब देते हुए इसे मुस्लिम विरोधी और संविधान के खिलाफ होने के आरोपों को खारिज किया गया है। देश भर में जागरूकता फैलाने के लिए यह रिपोर्ट पार्टी के थिंक टैंक डॉ. मुकर्जी स्मृति न्यास ने तैयार की है।
इस रिपोर्ट में अमित शाह के उस बयान का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने सदन में सीएबी के मुस्लिम विरोधी होने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि मोदी सरकार के पांच साल में 566 मुस्लिमों को नागरिकता मिल चुकी है। रिपोर्ट में कहा गया है, यह बहुत बड़ी भ्रांति फैलाई जा रही है कि यह कानून माइनॉरिटी, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है। जो इस देश के मुसलमान हैं, उनके लिए किसी चिंता का सवाल ही नहीं है। किसी भी देश या किसी भी धर्म का कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है, सीएए इन प्रावधानों के साथ कोई छेड़खानी नहीं करता।
रिपोर्ट में 15 प्रमुख सवालों के भाजपा ने जवाब दिए हैं। मसलन, इस कानून को अनुच्छेद 14 के खिलाफ बताए जाने के जवाब में कहा गया है, अनुच्छेद 14 संविधान में निहित समानता के अधिकार का मूल है। इसका मतलब यह नहीं कि सभी सामान्य कानून सभी वर्गों के लोगों पर लागू होंगे। यह अनुच्छेद समूहों या वर्गों के वर्गीकरण की अनुमति देता है। नागरिकता संशोधन कानून दो वर्गीकरण पर आधारित है। एक देशों के वर्गीकरण यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान और दूसरा लोगों के वर्गीकरण -हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई बनाम अन्य लोग।
क्या इससे देश का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप बदल जाएगा? इस सवाल के जवाब में कहा गया है, जो अल्पसंख्यक अपने ही देश में धार्मिक पहचान के कारण उत्पीड़न का शिकार होते हैं, उनके संरक्षण के लिए यदि भारत कोई कार्रवाई करता है तो यह भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में कोई बदलाव नहीं करता है। चूंकि मुस्लिम न तो इन देशों में अल्पसंख्यक हैं और न ही धार्मिक आधार पर उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए उन्हें स्पष्ट रूप से इसमें शामिल नहीं किया गया है।
आवेदन के लिए 31 दिसंबर, 2014 की तिथि क्यों है?
भाजपा ने बताया है कि ऐसा अधिनियम की तीसरी अनुसूची व धारा छह के तहत शर्तों के कारण किया गया है। क्योंकि आवेदन करने के लिए पांच वर्ष भारत में रहने की बाध्यता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पश्चिम बंगाल के अंदर ढेर सारे शरणार्थी आए हैं, और अगर वे 1955, 1960, 1970, 1980 या फिर 31 दिसंबर, 2014 से पहले आए, तो उन सभी को उसी तिथि से नागरिकता दी जाएगी, जिस तारीख से वे आए हैं। इसके लिए उन्हें किसी कानूनी पेंचीदगी का सामना नहीं करना पड़ेगा। पहले नागरिकता के लिए भारत में 11 साल तक रहना अनिवार्य था।
आवेदक धार्मिक उत्पीड़न का सबूत कैसे देगा? रिपोर्ट में इस सवाल के जवाब में कहा गया है कि यह अधिनियम की धारा 6 या धारा 6बी के तहत किए गए आवेदन में घोषणा के रूप में किया जा सकता है। धार्मिक उत्पीड़न का प्रमाण देने के लिए किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं है। भाजपा ने संबंधित रिपोर्ट में ऐसे ही अन्य कई सवालों के जवाब दिए हैं।
Created On :   17 Dec 2019 8:00 PM IST