किसानों के नाम पर कांग्रेस कर रही है राजनीति : नरेंद्र सिंह तोमर (खास बातचीत)

Congress is doing politics in the name of farmers: Narendra Singh Tomar (special talk)
किसानों के नाम पर कांग्रेस कर रही है राजनीति : नरेंद्र सिंह तोमर (खास बातचीत)
किसानों के नाम पर कांग्रेस कर रही है राजनीति : नरेंद्र सिंह तोमर (खास बातचीत)
हाईलाइट
  • किसानों के नाम पर कांग्रेस कर रही है राजनीति : नरेंद्र सिंह तोमर (खास बातचीत)

नई दिल्ली, 29 सितम्बर (आईएएनएस)। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस पर किसानों को बरगलाने और उनके नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। वह कहते हैं कि जो लोग नये कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं, वे किसानों के नाम पर अपने निहित स्वार्थ साध रहे हैं और इसे मुद्दा बनाकर राजनीति कर रहे हैं।

केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने आईएएनएस के साथ खास बातचीत में कहा कि कृषि से जुड़े जो दो अहम विधेयक लाए गए, उन पर किसानों का कोई विरोध नहीं है, बल्कि निहित स्वार्थ के लिए कांग्रेस इसे राजनीतिक रंग दे रही है।

सुधार के लिए लाए गए कानून के विवाद की वजह बनने के सवाल पर केंद्रीय मंत्री ने कहा, विवाद की वजह राजनीतिक व निजी स्वार्थ है। ये दोनों विधेयक किसानों के लिए फायदेमंद हैं। उनके जीवन स्तर में बदलाव लाने वाले हैं। जिन लोगों को रास नहीं आ रहा है, वे विधेयक को विरोध करके राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।

संसद के मानसून सत्र में दोनों सदनों से पारित हुए कृषि से जुड़े तीन अहम विधेयकों, कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020, को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद अब ये कानून बन गए हैं, लेकिन किसानों का विरोध थमा नहीं है।

हमेशा गांव, गरीब और किसानों के हितों की बात करने वाली मोदी सरकार के कद्दावर मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि नए कानून से किसानों के जीवन में खुशहाली आएगी। ऐसे में खुशहाली वाले कानून के विरोध में किसान क्यों सड़कों पर उतरे हैं? इस पर उन्होंने किसानों के सड़कों पर उतरने की बात को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा कि विरोध कांग्रेस प्रायोजित है और इसमें कांग्रेस के लोग ही शामिल हैं। तोमर ने कहा, किसान कहीं सड़कों पर नहीं हैं। कांग्रेस सड़कों पर है।

भाजपा के पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल कोटे से मंत्री हरसिमरत कौर बादल के विधेयक के विरोध में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद उस मंत्रालय का भी अतिरिक्त प्रभार तोमर को ही सौंपा गया है। इसके अलावा, ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय की जिम्मेदारी वह पहले से ही संभाल रहे हैं।

नये कृषि कानून का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब और हरियाणा में हो रहा है। इसकी वजह पूछने पर उन्होंने कहा, जहां मंडियों से ज्यादा स्वार्थ है, वहां ज्यादा विरोध हो रहा है।

तो किसानों से ज्यादा यह मंडियों को लेकर विरोध है? इस सवाल पर तोमर ने स्पष्ट किया कि नये कानून से न तो किसानों को नुकसान है और न ही कारोबारियों को। उन्होंने कहा कि यह मंडी का विरोध नहीं है, बल्कि मंडी से जुड़े स्वार्थ को लेकर विरोध हो रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का इसमें निहित स्वार्थ है, इसलिए वह विरोध कर रही है।

नये कानून में कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) द्वारा संचालित मंडियों की परिधि के बाहर ट्रेड एरिया में कृषि उत्पादों की खरीद पर कोई शुल्क नहीं है। लिहाजा, इस कानून से एपीएमसी द्वारा संचालित मंडियों के अस्तित्व को लेकर आशंका जताई जा रही है, क्योंकि मंडियों में मंडी-शुल्क लगता है। पंजाब में गेहूं और धान की खरीद पर तीन फीसदी मंडी-शुल्क, तीन फीसदी आरडीएफ शुल्क के अलावा 2.5 फीसदी आढ़तियों का कमीशन होता है। कृषि मंत्री का तर्क है कि ट्रेड एरिया में जब किसान से प्रॉसेसर सीधे खरीद करेंगे, जहां कोई बिचैलिया नहीं होगा और कोई शुल्क नहीं होगा तो किसानों को इसका फायदा होगा।

पंजाब और हरियाणा के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एपीएमसी) पर फसलों की खरीद को लेकर भी आशंका बनी हुई है। इसका जवाब देते हुए तोमर ने कहा, एमएसपी को लेकर किसानों के मन में कोई दुविधा नहीं रहनी चाहिए। एमएसपी जारी रहेगी। हमने खरीफ और रबी दोनों सीजन की फसलों की एमएसपी घोषित कर दी है और खरीफ सीजन में खरीद की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

सरकार हर साल खरीफ और रबी की 22 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है। विपक्षी दलों और किसान संगठनों के नेता विधेयक में एमएसपी का जिक्र नहीं होने पर सवाल उठा रहे हैं। इस पर केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि इन दोनों विधेयकों को एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा ये दोनों विधेयक एमएसपी से संबंधित नहीं हैं।

एमएसपी को अनिवार्य करने की मांग पर तोमर ने कांग्रेस से सवाल करते हुए कहा कि एमएसपी को अनिवार्य करने के लिए बीते 50 साल के दौरान कानून क्यों नहीं बनाया गया।

देश में सबसे पहले गेहूं और धान के लिए 1966-67 में न्यूतम समर्थन मूल्य तय किया गया था। केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि देश में एमएसपी के लिए व्यवस्था बनाई गई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार की यह उपलब्धि है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करके विभिन्न फसलों की लागत पर 50 फीसदी लाभ के साथ हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों से तुलना करें तो मोदी सरकार के कार्यकाल में एमएसपी पर किसानों से फसलों की खरीद दोगुनी से ज्यादा हो रही है।

आरएसएस से जुड़े किसान संगठन का आरोप है कि विधेयकों में किसानों से जुड़े प्रस्तावों व सुझावों को नजरअंदाज किया गया। इससे संबंधित सवाल पर तोमर ने कहा, सुझाव देने का अधिकार सबको है, मगर कानून में जो समाविष्ट करने वाला सुझाव होता है, उसी को शामिल किया जाता है।

एक देश एक कृषि बाजार व्यवस्था लागू करने वाले कानून से किसानों को होने वाले लाभ का जिक्र करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि किसान अब देश में कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकते हैं, जिस पर कोई टैक्स नहीं होगा और दाम का भुगतान भी अधिकतक तीन दिन के भीतर मिलेगा, ऐसा कानून में प्रावधान है।

अनुबंध पर खेती से संबंधित कानून से कॉरपोरेट दखल बढ़ने को लेकर जताई जा रही आशंका पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा, यह कानून बुवाई के समय ही किसानों को फसल के मूल्य की गारंटी देता है। ऐसा पहले कभी नहीं था। उन्होंने कहा कि इस कानून में सिर्फ फसल का अनुबंध करने का प्रावधान है और इसमें जमीन को लेकर कोई अनुबंध नहीं होगा।

पीएमजे/एएनएम

Created On :   29 Sep 2020 10:31 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story