जन असहिष्णुता के कारण वापस लेना पड़ा डाबर का विज्ञापन

Daburs advertisement had to be withdrawn due to public intolerance: Justice Chandrachud
जन असहिष्णुता के कारण वापस लेना पड़ा डाबर का विज्ञापन
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ जन असहिष्णुता के कारण वापस लेना पड़ा डाबर का विज्ञापन
हाईलाइट
  • एक ही लिंग के जोड़े को दिखाने वाला करवाचौथ विज्ञापन को एक वर्ग के आक्रोश के बाद हटा दिया गया
  • गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने डाबर इंडिया को कानूनी कार्रवाई का सामना करने की चेतावनी जारी की थी

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि एक ही लिंग के जोड़े को दिखाने वाला करवाचौथ विज्ञापन को एक वर्ग के आक्रोश के बाद हटा दिया गया। विज्ञापन को जन असहिष्णुता के कारण हटाना पड़ा।

पिछले हफ्ते, डाबर को एक विज्ञापन वापस लेना पड़ा था, जिसमें दो महिलाओं को एक साथ करवाचौथ मनाते हुए दिखाया गया था, और अनजाने में लोगों की भावनाओं को आहत करने के लिए कंपनी ने बिना शर्त माफी मांगी। विज्ञापन को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों के एक वर्ग से प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा और मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने डाबर इंडिया को आपत्तिजनक विज्ञापन वापस लेने या कानूनी कार्रवाई का सामना करने की चेतावनी जारी की।

राष्ट्रीय महिला आयोग के सहयोग से नालसा द्वारा कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों के राष्ट्रव्यापी शुभारंभ पर कानूनी जागरूकता के माध्यम से महिला सशक्तीकरण पर बोलते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि वास्तविक जीवन की स्थितियां दर्शाती हैं कि आदर्शो के बीच बहुत अंतर है।

उन्होंने कहा, अभी दो दिन पहले आप सभी ने एक कंपनी का विज्ञापन देखा होगा, जिसे हटाना आवश्यक हो गया। यह समान लिंग वाले जोड़े के लिए करवाचौथ का विज्ञापन था। इसे सार्वजनिक असहिष्णुता के कारण वापस लेना पड़ा। हमारे कानून में महिलाओं के अधिकार हैं, संविधान उन अधिकारों को मान्यता देता है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, शीर्ष अदालत ने हाल ही में महिलाओं के लिए सेना में शामिल होने के लिए दरवाजे खोल दिए हैं।

उन्होंने कहा कि इन रास्तों के बारे में कानूनी जागरूकता फैलानी होगी और कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम वास्तव में महिलाओं को घर की मुखिया के रूप में मान्यता देता है और यह अधिकार ट्रांसजेंडरों को भी देना चाहिए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान एक परिवर्तनकारी दस्तावेज है जो पितृसत्ता में निहित संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने की मांग करता है और महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को पूरा करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम जैसे कानून बनाए गए हैं।

उन्होंने कहा कि महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता वास्तव में सार्थक हो सकती है यदि समाज में युवा पीढ़ी के पुरुषों में जागरूकता पैदा की जाए।

 

(आईएएनएस)

Created On :   2 Nov 2021 1:00 AM IST

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