भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप अवांछित : उपराष्ट्रपति
- भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप अवांछित : उपराष्ट्रपति
नई दिल्ली, 27 जनवरी (आईएएनएस)। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
भारतीय संविधान और भारतीय सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मुद्दों पर विदेशी हस्तक्षेप के रुझान के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए नायडू ने कहा कि इस तरह के प्रयास पूरी तरह से नाजायज और अवांछनीय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि भविष्य में बाहर के लोग इस तरह के बयान नहीं देंगे।
यहां सोमवार को पुस्तक टीआरजी-एन एनिग्मा के विमोचन के बाद उपस्थितजनों को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा कि परिपक्व गणराज्य और लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत अपने नागरिकों की चिंताओं का समाधान करने में सक्षम है और ऐसे मामलों में दूसरों की सलाह या निर्देश की कोई जरूरत नहीं है।
नायडू ने कहा, गणराज्य के रूप में 70 वर्ष के अनुभव के आधार पर हमने विभिन्न चुनौतियों का कामयाबी से सामना किया है और तमाम चुनौतियों पर विजय पाई है। हम अब पहले से अधिक एक हैं और किसी को भी इस संबंध में चिंता करने की जरूरत नहीं है।
उपराष्ट्रपति ने गणराज्य के रूप में 70 वर्ष लंबी यात्रा सफलतापूर्वक पूरी होने पर जनता को शुभकामनाएं दीं और कहा, एक राष्ट्र के रूप में हम हमेशा अपने नागरिकों के प्रति न्याय, स्वतंत्रता और समानता के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा लोकतंत्र प्रासंगिक मतभेदों और असहमति को स्थान देता है।
उन्होंने कहा कि जब भी नागरिकों के बुनियादी अधिकारों पर खतरा मंडराता है, तो देशवासी एक साथ उसकी सुरक्षा में खड़े हो जाते हैं, जैसा कि आपातकाल के दौरान देखने को मिला था। उन्होंने कहा, इस भावना के परिणामस्वरूप हम दुनिया में सर्वाधिक जीवंत लोकतंत्र के रूप में उभरे हैं।
भारत में शिक्षा में अपने 50 वर्षीय अभूतपूर्व योगदान के लिए तिलक राज गुप्ता की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे मानवीय आधार पर काम करते थे और अपने छात्रों, कर्मियों तथा अभिभावकों के लिए उनके मन में सदैव प्रेम और लगाव का भाव रहा है। अपनी इसी भावना के बल पर वे एक शानदार शिक्षाविद् बने।
नायडू ने कहा कि 21वीं सदी में शिक्षाविदों की भूमिका ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें बच्चों के लिए एक सच्चा आदर्श बनना चाहिए। उन्होंने कहा, शिक्षाविदों को नई प्रौद्योगिकी को प्राचीन परंपराओं तथा उभरने वाले नए ज्ञान को प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों के साथ जोड़ने की क्षमता रखनी चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने शिक्षा को हमेशा एक मिशन माना है, जिसके तहत शुद्ध भावना के साथ काम करना जरूरी है। उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक विषय के मेधावियों को सलाह दी कि वे शिक्षा के क्षेत्र में आएं, ताकि विद्यार्थियों के साथ अपने अनुभवों को साझा कर सकें।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा का अर्थ केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं है, बल्कि ज्ञान, शक्ति और मेधा को बढ़ाना है। उन्होंने कहा, शिक्षा तभी सार्थक है, जब उससे व्यक्ति अपना सर्वश्रेष्ठ काम करे और लोगों के प्रति उसमें उदारता पैदा हो। इस समय आवश्यक है कि मूल्य आधारित शिक्षा दी जाए।
Created On :   27 Jan 2020 11:30 PM IST