ऐसे रची गई थी राजीव गांधी की हत्या की साजिश
- 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनें।
- 21 मई 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर में आत्मघाती बम ब्लास्ट में राजीव गांधी की मौत हो गई।
- राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को हुआ था।
- राजीव गांधी को 'भारत रत्न' से नवाजा जा चुका है।
- राजीव गांधी भारत के छठवें और सबसे युवा प्रधानमंत्री थे।
- लिट्टे आतंकियों ने रची थी राजीव गांधी की हत्या की साजिश।
- संचारक्रांति के जनक माने जाते हैं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजीव गांधी देश के योग्यतम प्रधानमंत्रियों में से एक थे। उन्हें संचारक्रांति का जनक माना जाता है। उनकी पहल पर ही सैम पित्रोदा के नेतृत्व में सेंटर फॉर रिसर्च एंड एनालिसिस ऑफ टेलीमैटिक्स (सीडाट) की स्थापना की गई थी। वर्तमान समय में देश में जो डिजिटल क्रांति दिखाई दे रही है, उसके पीछे राजीव गांधी का ही योगदान रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते जिस तरह से श्रीलंका और मालदीव में हस्तक्षेप किया, वह उनके दृढ़निश्चय और स्पष्ट राजनीतिक प्रतिबद्धताओं की ओर इशारा करता है। यही बाद में उनकी मौत की भी वजह बनी।
प्रधानमंत्री बनने के तीन साल के भीतर श्रीलंकाई गृहयुद्ध खत्म करने के लिए राजीव गांधी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति जे आर जयवर्धने के साथ एक शांति समझौता किया। इसमें भारतीय शांति सैनिकों को लिट्टे औऱ दूसरे तमिल आतंकियों के हथियार डलवा कर शांति बहाल करनी थी। यह दांव उलटा पड़ गया। लिट्टे ने समझौते की पीठ पर खंजर भोंक दिया। समझौते की शाम, श्रीलंकाई नौसैनिक विजीथा रोहाना ने राजीव गांधी पर हमला कर दिया। विजीथा ने बंदूक के बट से राजीव पर हमला कर दिया। उसकी बंदूक में गोली होती तो शायद उसी दिन राजीव गांधी नहीं बचते। साफ था समझौते ने श्रीलंकाई तमिलों में राजीव गांधी के प्रति नफरत भर दी थी। इसी दौरान 1988 में राजीव गांधी ने मालदीव में तमिल संगठन पीएलओटीई की तख्तापलट की कोशिशों को भारतीय सेना भेज नाकाम करवा दिया। तमिल आतंकियों में इसे लेकर भी खासी नाराजगी थी। इसी का नतीजा रहा कि श्रीलंका से भारतीय शांति सैनिकों की 1990 में पूरी वापसी के बाद प्रभाकरन ने राजीव गांधी की हत्या का षड़यंत्र रचा।
श्रीपेरंबदूर में रैली की गहमागहमी थी। राजीव गांधी के आने में देरी हो रही थी। बार-बार ऐलान हो रहा था कि राजीव किसी भी वक्त रैली के लिए पहुंच सकते हैं। पिछले छह महीने से पक रही साजिश अपने अंजाम के बेहद करीब थी। एक महिला सब इंस्पेक्टर ने उसे दूर रहने को कहा पर राजीव गांधी ने उसे रोकते हुए कहा कि सबको पास आने का मौका मिलना चाहिए। उन्हें नहीं पता था कि वह जनता को नहीं मौत को पास बुला रहे हैं। धनू ने माला पहनाई, पैर छूने के लिए झुकी और बस साजिश पूरी हो गई। धमाके के तुरंत बाद शिवरासन चेन्नई की ओर भागा। नलिनी और सुधा उससे चेन्नई में आकर मिले। वहां शिवरासन ने सुधा को बताया कि हरिबाबू तो मारा गया पर उसका कैमरा वहीं पड़ा है। शिवरासन ने सुंदरम को हरिबाबू का कैमरा मौके से उडा़ने की जिम्मेदारी सौंपी। सुंदरम ने काफी कोशिश की पर नाकाम रहा और फिर उस कैमरे के रोल में कैद तस्वीरों ने वो सुराग दिए जिन्होंने राजीव के हत्यारों को जांच दल के शिकंजे तक पहुंचा दिया। सुरक्षा में खामी थी, यह सच है पर उससे बड़ा सच यह है कि आखिर लिट्टे राजीव गांधी को मारने के लिए इस कदर उतारू क्यों था। इसका जवाब और संकेत आपको बताते हैं।
12 मई 1991 को शिवरासन-धनू ने पूर्व पीएम वीपी सिंह और डीएमके सुप्रीमो करूणानिधि की रैली में फाइनल रेकी की। तिरुवल्लूर के अरकोनम में हुई इस रैली में धनू वीपी सिंह के बेहद पास तक पहुंची उसने उनके पैर भी छुए। बस बम का बटन नहीं दबाया। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की रैली में सुरक्षा का स्तर राजीव की सुरक्षा के बराबर न सही तो कम भी नहीं था पर शिवरासन और धनू के शातिर इरादे कामयाब रहे। इससे शिवरासन के हौसले बुलंद हो गए और उसे अपना प्लान कामयाब होता दिखने लगा। लोकसभा चुनाव का दौर था राजीव गांधी की मीटिंग 21 मई को श्रीपेरंबदूर में तय हो गई। शिवरासन ने पलक झपकते ही तय कर लिया कि 21 को ही साजिश पूरी होगी। 20 की रात शिवरासन नलिनि के घर रैली के विज्ञापन वाला अखबार लेकर पहुंचा और तय हो गया कि अब 21 को ही साजिश पूरी होगी। नलिनी के घर 20 मई की रात धनू ने पहली बार सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने के लिए चश्मा पहना। शुभा ने धनू को बेल्ट पहना कर प्रैक्टिस करवाई और श्रीपेरंबदूर में किस तरह साजिश को अंजाम तक पहुंचाना है इसकी पूरी तैयारी मुकम्मल कर ली गई। सभी पूरी तरह शांत और मकसद के लिए तैयार थे। 20 मई की रात को सभी ने साथ मिलकर फिल्म देखी और सो गए। सुबह हुई तो पांच लोग शिवरासन-धनू-शुभा-नलिनी और हरिबाबू साजिश को पूरा करने के लिए तैयार थे।
वरासन के कहने पर अरिवू ने एक ऐसी बेल्ट डिजाइन की जिसमें छह आरडीएक्स भरे ग्रेनेड जमाए जा सकें। हर ग्रेनेड में अस्सी ग्राम सीफोर आडीएक्स भरा गया। हर ग्रेनेड में दो मिली मीटर के दो हजार आठ सौ स्पिलिंटर हों। सारे ग्रेनेड को सिल्वर तार की मदद से पैरलल जोड़ा गया। सर्किट को पूरा करने के लिए दो स्विच लगाए गए। इनमें से एक स्विच बम को तैयार करने के लिए और दूसरा उसमें धमाका करने के लिए था और पूरे बम को चार्ज देने के लिए 9 एमएम की बैटरी लगाई गई। ग्रेनेड में जमा किए गए स्प्रिंटर कम से कम विस्फोटक में 5000 मीटर प्रतिसेकेंड की रफ्तार से बाहर निकलते यानी हर स्प्रिंटर एक गोली बन गया था। बम को इस तरह से डिजायन किया गया था कि आरडीएक्स चाहे जितना कम हो अगर धमाका हो तो टारगेट बच न सके और यही हुआ भी। अब शिवरासन के हाथ में बम भी था और बम को अंजाम तक पहुंचाने वाली मानवबम धनू भी। इतंजार था तो बस राजीव गांधी का पर इससे पहले वह अपनी साजिश को ठोक बजाकर देख लेना चाहता था। 1991 में आमचुनावों के दौरान चेन्नई के मरीना बीच में हुई रैली के वीडियो में शिवरासन राजीव गांधी से महज 25-30 फीट की दूरी पर साफ देखा जा सकता है। जयललिता और राजीव की इस रैली में शिवरासन राजीव की सुरक्षा का जायजा लेने पहुंचा था। यहां उसने राजीव की जनता से खुल कर मिलने और लचर सुरक्षा की खामियों को भांप लिया। इस रैली के अनुभव को पक्का करने के लिए वरह एक और सियासी रैली में मानवबम धनू को साथ लेकर पहुंचा।
पोरूर ही राजीव गांधी की हत्या की साजिश का कंट्रोलरूम बन गया। शिवरासन के पोरूर पहुंचते ही जाफना के जंगलों की साजिश का जाल पूरा हो गया। शिवरासन ने कमान अपने हाथ में ले ली। बेबी औऱ मुथुराज को श्रीलंका वापस भेज दिया गया। चेन्नई में नलनी, मुरूगन और भाग्यनाथन के साथ शिवरासन ने मानवबम खोजा पर वह नहीं मिला। शिवरासन ने अरीवेयू पेरुली बालन के बम की डिजायन को चेक किया, शिवरासन खुद अच्छा विस्फोटक एक्सपर्ट था। सारी तैयारी को मुकम्मल देख मानवबम के इतंजाम में शिवरासन फिर समुद्र के रास्ते जाफना वापस गया वहां वह प्रभाकरन से मिला। उसने प्रभाकरन को बताया कि भारत में मानवबम नहीं मिल रहा है। इसपर प्रभाकरन ने शिवरासन की चचेरी बहनों धनू और शुभा को उसके साथ भारत के लिए रवाना कर दिया। धनू और शुभा को लेकर शिवरासन अप्रैल की शुरूआत में चेन्नई पहुंचा। धनू और शुभा को वह नलिनी के घर ले गया। यहां मुरूगन पहले से मौजूद था। शिवरासन ने बेहद शातिर तरीके से पायस- जयकुमारन-बम डिजायनर अरिवू को इनसे अलग रखा और खुद पोरूर के ठिकाने में रहता रहा। वह समय-समय पर सबको सही कार्रवाई के निर्देश देता था। अब चेन्नई के तीन ठिकानों में राजीव गांधी हत्याकांड की साजिश चल रही थी। शिवरासन ने टारगेट का खुलासा किए बिना बम एक्सपर्ट अऱिवू से एक ऐसा बम बनाने को कहा जो महिला की कमर में बांधा जा सके।
शातिर सूत्रधार जुड़ने वाले हर शख्स के दिमाग में राजीव गांधी के खिलाफ नफरत भी पैदा कर रहा था। उन्हें पता था नफरत के बिना यह साजिश अंजाम तक नहीं पहुंचेगी। जब बेबी और मुथुराजा ने अपने अपने चार लोग जोड़ लिए तो साजिश में मुरूगन की एंट्री हुई। मुरुगन ने चेन्नई पहुंच कर साजिश को अंजाम की ओर लाने की कोशिशें तेज कीं। मुरूगन के इशारे पर जयकुमारन और पायस। नलिनि-भाग्यनाथन-बेबी-मुथुराजा के ठिकाने पर पहुंच गए। राजीव गांधी विरोधी भावनाएं लोगों के दिमाग में भरी जाने लगीं। नलिनी राजीव गांधी के खिलाफ पूरी तरह तैयार हो गयी थी। नलिनि जिस प्रिटिंग प्रेस में नौकरी करती थी वहां छप रही एक किताब सैटेनिक फोर्सेस ने उसके ब्रेनवॉश में अहम भूमिका निभाई। ब्रेनवॉश के साथ मुरूगन ने हत्यारों की नकली पहचान तैयार करने के लिए जयकुमारन और पायस की मदद से फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया। मुरूगन, मुथुराजा और बेबी ने मिलकर चेन्नई में छिपने के तीन महफूज ठिकाने खोज लिए। अरवियू के तौर पर एक बम बनाने वाला तैयार था। राजीव के खिलाफ नफरत से भरे नलिनी पदमा और भाग्यनाथन की ओट तैयार थी। शुभा सुब्रह्मण्यम जैसा आदमी मुहैया कराने वाला तैयार था। अब शिवरासन को संदेशा भेजा गया। मार्च की शुरूआत में वह समुद्र के रास्ते चेन्नई पहुंचा। वह पोरूर के इसी इलाके में पायस के घर में रुका।
एक तरफ बेबी सुब्रह्मण्यम चेन्नई में रहने के सुरक्षित ठिकाने बना रहा था, तो मुथुराजा बेहद शातिर तरीके से लोगों को अपनी क्रूर साजिश के लिए चुन रहा था। चेन्नई की शुभा न्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले लोग इन शैतानों के लिए वरदान बन गए थे। यहीं से मुथुराजा ने दो फोटोग्राफर रविशंकरन और हरिबाबू को चुना। रविशंकरन और हरिबाबू दोनो शुभा न्यूज फोटोकॉपी एजेंसी में बतौर फोटोग्राफर काम करते थे। हरिबाबू को नौकरी से निकाल दिया गया था। मुथुराजा ने हरिबाबू को विज्ञानेश्वर एजेंसी में नौकरी दिलाई। श्रीलंका से बालन नाम के एक शख्स को बुला कर हरिबाबू का शागिर्द बनाया। इससे हरिबाबू को काफी पैसा मिलने लगा और उसका झुकाव मुथुराजा की तरफ बढ़ने लगा। मुथुराजा ने अहसान के बोझ तले दबे हरिबाबू को राजीव गांधी के खिलाफ खूब भड़काया कि अगर वह 1991 के लोकसभा चुनाव में जीत कर सत्ता में आए तो तमिलों की और दुर्गति होगी। इस तरह चुपचाप राजीव की हत्या के लिए साजिश की एक एक ईंट जोड़ी जा रही थी। श्रीलंका में बैठे मुरूगन ने इस बीच जय कुमारन और रॉबर्ट पायस को चेन्नई भेजा। ये दोनों पुरूर के साविरी नगर एक्सटेंशन में रुके। यहां जयकुमारन का जीजा लिट्टे बम एक्सपर्ट अरीवेयू पेरूलीबालन 1990 से छिप कर रह रहा था। इन दोनों को श्रीलंका से चेन्नई भेजने का मकसद था अर्से से चुपचाप पड़े कंप्यूटर इंजीनियर और इलेक्ट्रॉनिक एक्सपर्ट अरीवेयू पेरूलीबालन को साजिश में शामिल करना, ताकि वह हत्या का औजार बम बना सके। आगे चलकर पोरूर का यही घर राजीव गांधी हत्याकांड के प्लान का हेडक्वार्टर बन गया। यहीं से चलकर पूरी साजिश श्रीपेरंबदूर तक पहुंची थी।
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी प्रभाकरन से राजीव की हत्या का फरमान मिलने के बाद बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा 1991 की शुरुआत में चेन्नई पहुंचे। इनके जिम्मे था बेहद अहम पर शुरुआती काम। बेबी और मुथुराज को चेन्नई में ऐसे लोग तैयार करने थे जो मकसद से अंजान होते हुए भी डेथ स्क्व्यॉड की मदद करें। खासतौर पर राजीव गांधी के हत्यारों के लिए हत्या से पहले रुकने का घर दें और हत्या के बाद छिपने का ठिकाना उपलब्ध कराएं। बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा चेन्नई में सीधे शुभा न्यूज फोटो एजेंसी पहुंचे। एजेंसी का मालिक शुभा सुब्रह्मण्यम इलम समर्थक था। शुभा सुब्रह्मण्यम के पास दोनों की मदद करने की सूचना बेबी और मुथुराजा के पहुंचने से पहले ही आ चुकी थी। शुभा को साजिश के लिए लोकल सपोर्ट मुहैया कराना था। यहां पहुंच कर बेबी और मुथुराजा ने अपने - अपने लक्ष्य के मुताबिक अलग-अलग काम शुरू कर दिया। बेबी सुब्रह्मण्यम ने सबसे पहले शुभा न्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले भाग्यनाथन को अपने चंगुल में फंसाया। राजीव हत्याकांड में सजा भुगत रही नलिनी इसी भाग्यनाथन की बहन है, जो उस समय एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करती थी। भाग्यनाथन और नलिनी की मां नर्स थी। नर्स मां को इसी समय अस्पताल से मिला घर खाली करना था। मुश्किल हालात में फंसे भाग्यनाथन और नलिनी से आतंकी बेबी ने मदद के बहाने आत्मीयता पैदा की। बदले में नलिनी और भाग्यनाथन बेबी के विश्वासपात्र हो गए। योजना का पहला चरण था समर्थकों का नेटवर्क तैयार करना, जो साजिश को अंजाम तक पहुंचाने में सहायक हो और उसे कुछ पता भी नहीं चले।
घने जंगलों के बीच एक आतंकी ठिकाने में प्रभाकरन बैठा था। उसके साथ बैठे थे, उसके चार साथी। बेबी सुब्रह्मण्यम, मुथुराजा, मुरूगन और शिवरासन। वे एक बड़ी साजिश को अंजाम देने की योजना बना रहे थे। वे घंटों - घंटों तनाव पूर्ण माहौल में योजनाएं बनाते रहे। हर व्यक्ति के पास अपनी योजना थी और सभी अपनी योजना को ही आगे बढ़ाने पर जोर दे रहे थे। इसके बीच प्रभाकरन अपनी साजिश का तानाबाना बुन रहा था। सबकी बातें सुनने के बाद प्रभाकरन ने अपनी योजना को अंतिम रूप दे दिया। प्रभाकरन ने राजीव गांधी की मौत की योजना पर अपनी मुहर लगा दी। इस योजना को पूरा करने की जिम्मेदारी चार लोगों को सौंपी गई। इनमें लिट्टे आइडियोलॉग बेबी सुब्रह्मण्यम को हमलावरों के लिए ठिकाने का जुगाड़ करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रभाकरन के खास माने जाने वाले मुथुराजा को हमलावरों के लिए संचार और पैसों का प्रबंध करने की जम्मेदारी सौंपी गई। विस्फोटक विशेषज्ञ मुरुगन को हमले के लिए जरूरी चीजें जुटाने और पैसों के प्रबंध में सहायता करने की जिम्मेदारी दी गई थी। लिट्टे के जासूस और विस्फोटक विशेषज्ञ शिवरासन को राजीव की हत्या की इस योजना की पूरी जिम्मेदारी थी।
21 मई 1991 को राजीव गांधी के रूप में देश ने अपने सबसे युवा प्रधानमंत्री को खो दिया। श्रीपेरंबदूर में लिट्टे आतंकियों द्वारा 26 साल पहले रची साजिश में आत्मघाती विस्फोट में राजीव गांधी के साथ 14 अन्य लोगों की मौत हो गई थी। आइए रिकॉल करते हैं किस तरह रची गई थी उनकी हत्या की साजिश...
Created On :   20 May 2018 3:07 PM IST