रेलवे से नाराज कर्मचारी करेंगे वर्क टू रूल, रुक जाएंगे ट्रेन के पहिए
- नेताओं का कहना था कि रेलवे के तमाम बड़े अफसर रेलकर्मचारियों के बीच की राजनीति कर रहे हैं।
- मांगें नहीं मानने पर कर्मचारियों ने "वर्क टू रुल" पर जाने की धमकी दी है।
- रेल मजदूर नेताओं ने रेल प्रशासन के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फैडरेशन की वर्किंग कमेटी में आज मौजूद रेल मजदूर नेताओं ने रेल प्रशासन के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली। ज्यादातर नेताओं का कहना था कि रेलवे के तमाम बड़े अफसर रेलकर्मचारियों के बीच की राजनीति कर रहे हैं। बैठक में रेल प्रशासन के खिलाफ बड़ा फैसला लेते हुए तय किया गया कि रनिंग एलाउंस के लिए सरकार को नोटिस देंगे और 45 दिन में अगर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो कर्मचारी " वर्क टू रुल " पर चले जाएंगे। यहां ये बताना जरूरी है कि अगर कर्मचारी वाकई वर्क टू रूल पर जाते हैं, तो रेल का चक्का खुद ही जाम हो जाएगा।
वर्किंग कमेटी की बैठक में आज ज्यादातर नेताओं ने सरकार और रेल अफसरों को सीधे निशाने पर लिया और कहाकि ये सही है कि हम किसी राजनीतिक दल का विरोध या समर्थन नहीं करते हैं, लेकिन जब सरकार हमारे मांगों के आडे आ रही है, सरकार के मंत्री वो फैसले रोक रहे हैं जिस पर रेलवे बोर्ड के अफसरों की मुहर लग गई है। ऐसे में अब समय आ गया है कि हमें आम चुनाव को देखते हुए राजनीतिक फैसला भी लेना चाहिए। हालाकि इस मामले में अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है।
मीटिंग में रनिंग एलाउंस के मुद्दे पर सबसे ज्यादा नाराजगी देखी गई। चूंकि रनिंग एलाउंस को लेकर बोर्ड के अधिकारियों के साथ एआईआरएफ नेताओं की कई दौर की बैठक के बाद इसके रेट तक पर सहमति तक बन गई है। इतना ही नहीं बोर्ड के अफसरों ने इस फाइल को क्लीयर कर काफी समय पहले रेलमंत्री के यहां भेजा भी है। लेकिन महीनों से रेलमंत्री ये फाइल रोके हुए हैं । इस बात पर सबसे अधिक गुस्सा देखा गया।
इस मसले को लेकर कई तरह के सुझाव दिए गए, कुछ ने सीधे रेल का चक्का जाम करने की बात की, किसी ने कहाकि नार्दन रेलवे मैन्स यूनियन के दो घंटे के चक्का जाम के प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए, बहरहाल तमाम विचार विमर्श के बाद यूनियन नेताओं ने सख्त फैसला लिया और कहाकि मंत्रालय को नोटिस देकर उन्हें 45 दिन का समय दिया जाए और इसके बाद भी अगर रनिंग एलाउंस का मुद्दा हल नहीं होता है तो देश भर में रेल कर्मचारी " वर्क टू रूल " पर चले जाएं। जाहिर है कि वर्क टू रूप पर जाने से देश भर में ट्रेनों के संचालन पर काफी असर पड़ेगा।
बैठक में सुझाव के मुताबिक नोटिस देश भर में एक साथ सभी महाप्रबंधकों को दिया जाएगा और जोन मुख्यालय पर हजारों रेलकर्मचारियों के साथ सभा कर सरकार के कारनामों को उजागर किया जाएगा। ज्यादातर नेताओं का कहना था कि हमारी मांगे इसलिए लटकी हुई हैं क्योंकि हम संघर्ष का रास्ता भूल गए हैं। हमे याद रखना चाहिए कि हमने अभी तक जो कुछ भी हासिल किया है, उसके पीछे हमारा लंबा संघर्ष रहा है। बना लड़ाई के हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। नेताओं ने कहाकि हमने लंबे संघर्ष के बाद लारजेस हासिल किया, लेकिन अब ये सुविधा विवाद में हैं।
महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने यूनियन नेताओं की बातों का समर्थन करते हुए कहाकि अब हमें संघर्ष का रास्ता अपनाना ही होगा। वर्क टू रूल के लिए लोगों के बीच माहौल बनाने की भी बात हुई। महामंत्री ने रेफरेंडम की चर्चा करते हुए कहाकि दिसंबर में चुनाव संभव है, लिहाजा मंडल स्तर पर तैयारियों की समीक्षा की जानी चाहिए। श्री मिश्रा ने लोगों को निजीकरण की चुनौतियों से भी आगाह किया और कहाकि हमें रेल को बचाने की भी लड़ाई पूरी मजबूती से लड़नी होगी,क्योंकि सरकार की नीति न सिर्फ कर्मचारी विरोधी है, बल्कि रेलवे के भी खिलाफ है। सरकार पूरी तरह से रेलवे का निजीकरण करना चाहती है।
एआईआरएफ अध्यक्ष रखालदास गुप्ता ने कहा कि अपने फैडरेशन का संघर्ष एक लंबा इतिहास है, अभी 19 सितंबर को हम सबने शहीदी दिवस मनाकर 1968 के रेल हडताल के शहीदों को याद किया है। उन्होने कहाकि चुनाव करीब है, लिहाजा हमारे बारे में तरह तरह के अनर्गल प्रचार किए जाएंगे। इसलिए हमारे साथियों को बहुत ही सावधान रहने की जरूरत है। आज महत्वपूर्ण वर्किंग कमेटी को मुख्य रूप से जे आर भोसले, एस के त्यागी, शंकरराव, आर डी यादव, बसंत चतुर्वेदी, एस एन श्रीवास्तव, जेएन शुक्ला, वेणु पी नायर,एस के सिन्हा समेत कई और लोगों ने संबोधित किया।
Created On :   23 Sept 2018 9:35 PM IST