सीजेआई के शामिल होने से मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी : सुप्रीम कोर्ट
- परामर्श प्रक्रिया में शामिल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार की पीठ चुनाव आयुक्तों (ईसी) और सीईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी सत्ताधारी पार्टी खुद को सत्ता में बनाए रखना चाहती है और मौजूदा व्यवस्था के तहत किसी यस मैन को इस पद पर नियुक्त कर सकती है। पीठ ने कहा, अब, हम जो करना चाहते हैं वह सीईसी की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना है और इस प्रक्रिया में भारत के प्रधान न्यायाधीश को शामिल किए जाने से आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शक्तियों को अलग करने की एक प्रणाली है और ऐसी धारणा बनाई गई है कि प्राधिकारी की नियुक्ति में किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति होनी चाहिए, जो कार्यकारी का हिस्सा नहीं हो।
उन्होंने कहा कि इसका मतलब होगा किसी और को सत्ता सौंपना, क्योंकि कार्यपालिका उसे सौंपे गए कार्यो से अलग नहीं हो सकती और यह लोकतंत्र की अवधारणा के खिलाफ होगा। इस पर जस्टिस जोसेफ ने कहा कि सीजेआई सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में शामिल होते हैं। उन्होंने मेहता से सवाल किया कि लोकतंत्र के लिए खतरा कहां है।
मेहता ने सीबीआई निदेशक के संदर्भ में कहा कि विनीत नारायण पर फैसले से पहले सीबीआई निदेशक के चयन की कोई प्रक्रिया नहीं थी और चयन में किसी उच्चतम संवैधानिक पदाधिकारी को शामिल नहीं किया जाता था। कोर्ट ने इसीलिए दखल दिया और संवैधानिक दृष्टि से वे विनीत नारायण और मौजूदा मामले की तुलना नहीं कर सकते।
मेहता ने कहा कि एक संवैधानिक प्रस्ताव के रूप में कार्यपालिका की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता समान रूप से पवित्र हैं और एक पूर्वधारणा है कि केवल न्यायपालिका की उपस्थिति से ही स्वतंत्रता और निष्पक्षता हासिल की जाएगी। ऐसी धारणा बनाना संविधान को गलत पढ़ने जेसा है।
इससे पहले दिन के दौरान, केंद्र ने तर्क दिया था कि चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्ते और व्यापार का लेन-देन) अधिनियम, 1991 ने सुनिश्चित किया कि चुनाव आयोग अपने सदस्यों के वेतन और कार्यकाल के मामले में स्वतंत्र रहे। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि नियुक्तियों को हर स्तर पर स्कैन करना होगा।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि 1991 का अधिनियम एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने चुनाव आयोगों को वेतन और कार्यकाल में स्वतंत्रता सुनिश्चित की। उन्होंने कहा कि संसद ने दिनेश गोस्वामी समिति की रिपोर्ट के बाद कानून पारित किया, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया था।
हालांकि, पीठ ने कहा कि अगर एक यस मैन को नियुक्त किया जाना है, जिसका दर्शन सत्तारूढ़ पार्टी के समान है और वह भी समान विचारधारा वाला है, तो कानून उसे कार्यकाल और वेतन में सभी छूट प्रदान करता है।
एजी ने जोरदार तर्क दिया कि कोई ट्रिगर बिंदु नहीं है जो अदालत से हस्तक्षेप का वारंट करता हो। यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें मनमानी हो रही हो और इसलिए अदालत को नियुक्ति प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना जरूरी हो। शीर्ष अदालत इस मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रखेगी।
आईएएनएस
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Created On :   23 Nov 2022 8:00 PM IST