कंधार प्लेन हाईजैक: दहशत से भरे वे 8 दिन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 24 दिसंबर 1999 काठमांडू का त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट 176 यात्रियों को लेकर इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट न. IC- 814 भारत की राजधानी दिल्ली के लिए रवाना होता है। प्लेन में 176 यात्रियों में ज्यादातर भारतीय नागरिक थे। इनके अलावा कुछ ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, स्पेन और अमरीका के नागरिक भी सवार थे। यात्रियों को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उनके लिए यह उड़ान मुसीबत का सबब बनने वाली है। फ्लाइट भारत की सीमा में जैसे ही विमान अंदर आया, आतंकी सक्रीय होने लगे और पायलट पर विमान को पाकिस्तान ले जाने का दबाव डालने लगे। शाम 6 बजे विमान अमृतसर में लैंड होता है और इसमें ईधन भरा जाता है और थोड़ी देर बाद वहां से लाहौर के लिए रवाना हो जाता है। विमान पाक के लाहौर से दुबई में लैंड कराया जाता है। दुबई में एक बार फिर से विमान में ईधन भरा जाता है। यहां से विमान तालिबान के कब्जे बाले शहर अफगानिस्तान के कंधार में अगली सुबह साढ़े आठ बजे उतारा जाता है। हालांकि विमान से दुबई में 27 यात्री छोड़ दिए गए, इनमें महिलाएं और बच्चे थे। इसके एक दिन बाद डायबिटीज़ से पीड़ित एक व्यक्ति को रिहा कर दिया गया।
विमान में सवार यात्रियों को लगातार डराया, धमकाया जा रहा था, उनके साथ मारपीट भी हो रही थी। इसी दौरान 25 साल के यात्री रूपन कात्याल की हत्या कर दी गई। विमान में इस तरह से खून खराबा देख यात्रियों का मन पसीज उठा था। विमान के अंदर से किसी भी तरह का शोर-शराबा, विरोध सब बंद हो गया था।
यहां भारत समेत पूरे विश्व में प्लेन हाईजैक की खबर पहुंच चुकी थी। सरकार से आतंकियों ने विमान छोड़ने के ऐवज में अपने 36 आतंकी साथियों की रिहाई के साथ-साथ 20 करोड़ अमरीकी डॉलर की फिरौती की मांग रखी। सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए यात्रियों को लगातार धमकाया जा रहा था।
सरकार पर यात्रियों की सुरक्षा को लेकर दबाव बढ़ रहा था। सरकार की मुश्किल भी बढ़ रही थी। यात्रियों के परिजन भी सरकार पर लगातार दबाव डाल रहे थे ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए सरकार आंतकियों पर कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। सरकार के पास आतंकियों से समझौता करने के अलावा कोई और रास्ता भी नजर नहीं आ रहा था। यहां दिल्ली में सरकार की कई मीटिंग लगातार हो रही थी। सरकार की तरफ से कोई जवाब न मिलने पर आतंकी विमान में यात्रियों पर अत्याचार बढ़ा रहे थे। आतंकी भारतीय जेलों में बंद चरमपंथियों की रिहाई की मांग के लिए वे हर तरह के प्रयास में लगे हुए थे। वहीं भारत सरकार और आतंकियों के बीच में मध्यस्थता निभा रहा था। तालिबान ने एक तरफ़ विमान अपहरणकर्ताओं तो दूसरी तरफ़ भारत सरकार पर भी जल्द समझौता करने के लिए दबाव बनाए रखा था।
ऐसा माना जा रहा था कि तालिबान कोई सख्त कदम उठा सकता है। लेकिन वहीं तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने बताया कि किसी भी तरह से खूनखराबे के पक्ष में नहीं है। तालिबान ने अपहरणकर्ता पर दबाव डालना शुरू कर दिया जिससे आतंकी अपनी मांग से पीछे हटने को मजबूर हुए।
31 दिसंबर को सरकार और आतंकियों के बीच समझौता हुआ जिसके बाद आंतकी विमान में सवार 155 यात्रियों को छोड़ने के लिए तैयार हुए लेकिन इसके लिए भारत को एक ऐसा समझौता करना पड़ा जिसने भारत को 2 साल बाद ही झकझोर के रख दिया। भारत को इस समझौते के तहत 3 आतंकियों को छोड़ना पड़ा। तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह को खुद कंधार जाकर जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद को छोड़ना पड़ा। 13 दिसंबर 2001 को जैश-ए -मोहम्मद ने संसद भवन पर हमला किया जिसमें 8 सुरक्षा कर्मियों को अपनी जान गवानी पड़ी।
वहीं इस घटना के बाद वाजपेयी सरकार के लिए गए इस फैसले पर कई सवाल खड़े होते हैं। कहा जाता है कि जब विमान अमृतसर में था तब सरकार ने कड़ा रुख नहीं दिखाया और महत्वपूर्ण समय केवल मीटिंग में ही निकाल दिया। जिसका परिणाम ये हुआ कि विमान भारतीय सीमा से बाहर निकल गया।
इस घटना का जिक्र पूर्व रॉ चीफ एएस दुलत ने अपनी एक किताब में "कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स" में कंधार कांड का जिक्र करते हुए लिखा कि 24 दिसंबर, 1999 को जब जहाज अमृतसर में उतरा, तो केंद्र सरकार और पंजाब सरकार, दोनों ही कोई फैसला नहीं कर पाईं। नतीजा यह हुआ कि पांच घंटों तक सीएमजी की मीटिंग होती रही और प्लेन अमृतसर से उड़ गया और इस तरह आतंकियों पर काबू पाने का मौका देश ने गंवा दिया। बता दें कि इस पूरे ऑपरेशन की कमान पूर्व रॉ चीफ एएस दुलत ने संभाली थी।
Created On :   24 Dec 2017 6:11 PM IST