मौजूदा दौर में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं : लॉ कमिशन

Law Commission issued a consultation paper on common code
मौजूदा दौर में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं : लॉ कमिशन
मौजूदा दौर में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं : लॉ कमिशन
हाईलाइट
  • आयोग का कहना है कि मौजूदा दौर में समान नागरिक संहिता की जरुरत नहीं है।
  • बहुविवाह के लिए दूसरे धर्मों के लोग धर्म बदलकर इस्लाम को अपना रहे हैं।
  • यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में लॉ कमिशन ने कंसल्टेशन पेपर जारी किया।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में लॉ कमिशन ने कंसल्टेशन पेपर जारी किया है। आयोग का कहना है कि मौजूदा दौर में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है। हालांकि आयोग ने विभिन्न धर्मों, मतों और आस्था के अनुयायियों के वर्तमान पर्सनल लॉ में सुधार की जरूरत बताई है। धार्मिक रीति-रिवाजों और मौलिक अधिकारों के बीच सद्भाव बनाए रखने की आवश्यकता पर आयोग ने जोर दिया है।

IPC की 498 के तहत आए एकतरफा तलाक
आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, एकतरफा तलाक को घरेलू हिंसा अधिनियम, महिलाओं पर क्रूरता, और आईपीसी की धारा 498 के तहत दंडित किया जाना चाहिए। हालांकि रिपोर्ट ट्रिपल तलाक से निपटने के लिए किसी भी विशेष कानून की बात नहीं करती है। रिपोर्ट में तीन तलाक की तुलना सती प्रथा, दासता, देवदासी और दहेज प्रथा के साथ की गई है।

बहुविवाह के लिए अपना रहे इस्लाम
बहुविवाह को लेकर विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये मुस्लिमों में आम नहीं है। लेकिन यह अन्य धर्म के लोगों के बीच ज्यादा प्रचलित है जो दूसरी या तीसरी शादी करने के लिए इस्लाम धर्म को अपनाते हैं। लॉ कमिशन का सुझाव है कि निकाहनामा में ये स्पष्ट होना चाहिए कि बहुविवाह अपराध है और आईपीसी की धारा-494 के तहत मुकदमा बनता है। बहु विवाह मामला चूंकि सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है ऐसे में उस मामले में हम सिफारिश नहीं करेंगे।

शादी के लिए लड़कों की उम्र भी 18 हो
शादी के लिए लड़कों की न्यूनतम उम्र 21 से घटाकर 18 साल करने का सुझाव लॉ कमीशन ने दिया है। आयोग ने कहा कि शादी में उम्र का अंतर दूर होना चाहिए। अगर इस उम्र में उन्हें सरकार चुनने का अधिकार है तो अपने लिए पति या पत्नी के चयन में भी सक्षम माना जाए। यह भी कहा कि शादी के बाद अर्जित की गई संपत्ति में पत्नी भागीदार है। तलाक होने पर उन्हें बराबर हिस्सा मिलना चाहिए।

लिव इन से पैदा हुए बच्चों को भी मिले संपत्ति का अधिकार
लिव इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे को लेकर कमीशन ने कहा है, अगर बच्चा जायज है तो उसे पिता की अर्जित संपत्ति में और पुश्तैनी संपत्ति में उत्तराधिकार मिलता है। जो बच्चा लिव इन रिलेशनशिप से पैदा होता है और वैसा लिव इन रिलेशनशिप जो शादी की तरह है यानी लंबे समय के लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुआ बच्चा जायज संतान का दर्जा रखता है। लेकिन जब बच्चा शॉर्ट टर्म लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुआ हो तो वह बच्चा नाजायज बच्चे की श्रेणी में आता है। लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे को पिता की संपत्ति में अधिकार देने के लिए कानून बनाने की दरकार है। 

Created On :   31 Aug 2018 9:40 PM IST

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