जानिए क्या है 'मिशन शक्ति', जिसने अंतरिक्ष में भारत को बनाया चौथी सबसे बड़ी शक्ति

Mission shakti: Learn how anti-satellite missiles work
जानिए क्या है 'मिशन शक्ति', जिसने अंतरिक्ष में भारत को बनाया चौथी सबसे बड़ी शक्ति
जानिए क्या है 'मिशन शक्ति', जिसने अंतरिक्ष में भारत को बनाया चौथी सबसे बड़ी शक्ति

डिजिटल डेस्क, दिल्ली। भारत अंतरिक्ष में चौथी सबसे बड़ी शक्ति बना गया है। भारत ने अंतरिक्ष में महाशक्ति हासिल करते हुए पृथ्वी की निचली कक्षा में 300 किलोमीटर दूर एक सैटेलाइट को मार गिराया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस अभियान को "मिशन शक्ति" नाम दिया है। भारत ने अमेरिका, रूस और चीन के बाद अंतरिक्ष में ये उपलब्धि हासिल की है। 

इस मिशन को पूरी तरह स्वदेशी तकनीक के जरिए अंजाम दिया। एंटी सैटेलाइट मिसाइल भी स्वदेश निर्मित ही है। इसमें DRDO के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि धरती से 300 किलोमीटर ऊपर उड़ रहे माइक्रो सैटेलाइट को गिराने के लिए भारत ने कौन-सी मिसाइल इस्तेमाल की, लेकिन माना जा रहा है कि भारत ने देश में ही विकसित एंटी बैलिस्टिक अग्नि-5 मिसाइल का उपयोग किया। अग्नि-5 की रेंज 5500 किलोमीटर तक है। इसकी रफ्तार आवाज से 24 गुना ज्यादा होती है। 

बता दें कि भारत लंबे समय से स्पेस में सफलताएं हासिल कर रहा है। बीते 5 सालों में यह रफ्तार और तेज हुई है। मंगलयान मिशन की सफल लॉन्चिंग हुई है। इसके बाद सरकार ने गगनयान मिशन को भी मंजूरी दी है। भारत ने इस परीक्षण की सफलता को लेकर पूरी तरह विश्वस्त होने के बाद ही इसे अंजाम दिया। 

 

क्या था मिशन शक्ति 
यूपीए की सरकार के दौरान भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में द्वीप लॉन्च कॉम्प्लेक्स से एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण किया गया था। यह DRDO की ओर से एक तरह का टेक्निकल मिशन था। मिसाइल के परीक्षण के लिए जिस सैटेलाइट का इस्तेमाल किया गया, वह भारत के उन उपग्रहों में से है, जो पहले ही पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद हैं। इस परीक्षण के तहत DRDO ने अपने सभी तय लक्ष्यों को हासिल किया। 

क्या है लो अर्थ ऑर्बिट
लो अर्थ ऑर्बिट यानी पृथ्वी की निचली कक्षा पृथ्वी के सबसे नजदीक ऑर्बिट (कक्षा) है। यह पृथ्वी की सतह से 160 किलोमीटर और 2,000 किलोमीटर के बीच ऊंचाई पर स्थित है। 2022 में जो भारत की ओर से जो तीन भारतीय अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे, वे भी इस लो अर्थ ऑर्बिट में रहेंगे। इस प्रोजेक्ट पर इसरो ने कहा था कि सिर्फ 16 मिनट में तीन भारतीयों को श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से स्पेस में पहुंचा दिया जाएगा। तीनों भारतीय स्पेस के ‘लो अर्थ ऑर्बिट" में 6 से 7 दिन बिताएंगे। भारतीय की मिसाइल ने पृथ्वी से 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सैटेलाइट को 3 मिनट में नष्ट कर दिया था।

बाहरी देश नहीं कर सकेंगे जासूसी
भारत का बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की रेस में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है। यह सिर्फ इसलिए किया गया ताकि कोई संदिग्ध सैटेलाइट भारतीय अंतरिक्ष सीमा में प्रवेश न कर सके। इससे दुश्मन देशों के लिए भारत की जासूसी करना मुश्किल होगा। इसके अलावा अंतरिक्ष में भारत के संसाधनों की भी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। 

जंग की स्थिति में मिल सकता है फायदा
ऐसा माना जाता है कि जिस देश के पास यह टेक्नोलॉजी होती है जंग होने की स्थिति में वह अतिरिक्त फायदे में होता है। ऐसी तकनीक दुश्मन के किसी भी सैटेलाइट को जाम कर सकती है या नष्ट कर सकती है। ऐसा करने पर दुश्मन को अपने सैनिकों के मूवमेंट या परमाणु मिसाइलों की पोजिशनिंग करने में परेशानी आ सकती है। भारत के इस तकनीक को हासिल करने के ये मायने हैं कि चीन या पाकिस्तान से जंग होने की स्थिति में सही समय पर इसका इस्तेमाल करने पर यह मिसाइल देश का सबसे बड़ा हथियार होगी।

यह मिसाइल किसी भी देश को अंतरिक्ष में सैन्य ताकत देने का काम करता है। अब तक यह शक्ति अमेरिका, रूस और चीन के पास ही थी, अब अंतरिक्ष में महाशक्ति कहलाने वाले देशों में भारत भी शामिल हो गया है। हालांकि अब तक किसी भी देश ने युद्ध में ऐसे एंटी-सैटेलाइट मिसाइल को इस्तेमाल नहीं किया है।1963 में अमेरिका ने अंतरिक्ष में जमीन से छोड़े गए एक परमाणु बम का परीक्षण किया। इस विस्फोट से अंतरिक्ष में मौजूद अमेरिका और रूस के सैटेलाइट नष्ट हो गए। इसके बाद 1967 में "आउटर स्पेस ट्रीटी" नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संधि हुई। इसमें तय हुआ कि अंतरिक्ष में किसी भी तरह के विस्फोटक हथियार को तैनात नहीं किया जाएगा। 

ऐसे काम करती है एंटी सैटेलाइट मिसाइल
वैज्ञानिकों के अनुसार एंटी सैटेलाइट मिसाइल के अंदर बारूद नहीं होता। इसे काइनैटिक किल वेपन भी बोलते हैं। सामान्य मिसाइल के टिप पर वॉरहेड लगाते हैं। लक्ष्य पर टकराने के बाद ब्लास्ट होता है। इसके वॉरहेड पर एक मेटल स्ट्रिप होता है। सैटेलाइट के ऊपर मेटल का गोला गिर जाता है। जबकि ऐंटी सैटेलाइट मिसाइल काइनैटिक किल मैकेनिज्म पर काम करती। इस मिसाइल के तहत एक निश्चित दर पर हाईरेज छोड़ी जाती हैं, जो दिखाई नहीं देती हैं लेकिन यह बेहद घातक होती हैं।

यह मिसाइल या किसी भी अत्‍याधुनिक जेट को पलभर में खाक कर देने में सहायक होती हैं। हालांकि रूस के पास पहले से ही कुछ लेजर हथियार हैं, लेकिन अब वह इनको और अधिक घातक बनाने पर काम कर रहा है। रूस PL-19 Nudol सिस्‍टम का भी 2018 में दो बार परीक्षण कर चुका है। इसको मोबाइल लॉन्‍चर से कहीं से भी लॉन्‍च किया जा सकता है। यह इस मिसाइल का सातवां परीक्षण था। कहा ये भी जा रहा है रूस के एंटी सेटेलाइट वेपन कम्‍यूनिकेशन और इमेजरी सेटेलाइट को निशाना बना सकते हैं। 

क्या होता है एंटी सेटेलाइट वेपन 
एंटी सेटेलाइट वेपन एक हथियार होता है जो किसी भी देश के सामरिक सैन्य उद्देश्यों के लिए उपग्रहों को निष्क्रिय करने या नष्ट करने के लिए डिजाइन किया जाता है। आजतक किसी भी युद्ध में इस तरह के हथियारों का उपयोग नहीं किया गया है। लेकिन, कई देश अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन और अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्बाध गति से जारी रखने के लिए इस तरह के मिसाइल सिस्टम को जरुरी मानते हैं।

Created On :   27 March 2019 10:17 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story