गुजरात दंगों के 12 साल बाद जनता ने दी 'क्लीन चिट'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुजरात में हुए 2002 के दंगे ने पीएम मोदी के दामन को दागदार किया लेकिन 2014 में हुए चुनाव में बीजेपी की अप्रत्याशित जीत ने जनता की अदालत में मोदी को हीरो बना दिया। 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन है। आज के दिन ख़बरों की एक सीरिज के तहत हम आपको पीएम की जीवन से जुड़ी अलग अलग घटनाओं से रूबरू करवा रहे हैं। इस सीरिज में हमने गुजरात दंगे को लिया है कि कैसे दंगे के बाद भी मोदी पार्टी का भरोसा जीतने में कामयाब रहे।
2002 के गुजरात दंगे
खड़ी ट्रेन में एक हिंसक भीड़ द्वारा आग लगा कर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवक मारे गये थे। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या अल्पसंख्यकों की थी। इसके लिये न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया।
कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की माँग की। मोदी ने गुजरात की दसवीं विधानसभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल की। अप्रैल 2009 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं।यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये काँग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था। दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एस॰ आई॰ टी॰ की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
कैसे बदली गुजरात की तस्वीर
सन 2001 में सत्ता में आते ही राज्य की अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया। गुजरात के कच्छ, सौराष्ट्र और दूसरे उत्तरी इलाकों में सिंचाई से जुड़ी अनेक योजनाएं शुरू कर उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया। उनकी उद्योग समर्थक नीतियों की वजह से निवेशक भी बड़ी संख्या में गुजरात की ओर आकर्षित हुए। इसके साथ ही राज्य में तकनीकी और फाइनेंशियल पार्कों की भी स्थापना की गई। इसके बाद 2007 में वाइब्रेंट गुजरात समिट का आयोजन किया। जिसके बाद बड़ी संख्या में गुजरात में निवेश हुआ और राज्य औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। सन 2007 में तीसरी बार सत्ता में आने के बाद मोदी ने राज्य के आर्थिक ढ़ांचे में क्रांतिकारी बदलाव किया। इस दौरान राज्य के औद्योगिक ढ़ांचे में तो विस्तार किया ही, उन्होंने किसानों के लिए माइक्रोइरीगेशन जैसी आधुनिक तकनीक के साथ-साथ चेक डैम जैसे परंपरागत तरीकों को भी जम कर आजमाया।
उनके प्रयासों का ही नतीजा था कि सन 2010 तक कृषि विकास की दर 9.6 तक जा पहुंची। राज्य में विद्युत आपूर्ति की निर्बाध आपूर्ति की वजह से कृषि क्षेत्र में आए क्रांतिकारी बदलाव ने जिसने राज्य की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी योगदान दिया। मोदी को मुस्लिम विरोधी माना जाता है। लेकिन उन्होंने राज्य में मुस्लिम समुदाय के टूटे भरोसे को वापस लाने के लिए 2011 के अंतिम दिनों में राज्य में सद्भावना मिशन शुरू किया, जिसके बाद राज्य में शांति और सद्भावना का माहौल कायम हुआ और राज्य में विकास की गति कायम रही।
दंगों के बाद हुए अटल के कोप का शिकार
गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौरा किया। जिसमें उन्होंने मोदी को "राजधर्म निभाने" की सलाह दी थी, जिसे वाजपेयी की नाराजगी के रूप में देखा गया। इसके बाद से ही दोनों राजनीतिज्ञों के संबंध लगातार असहज रहे। अटल बिहारी वाजपेयी जहां भाजपा के उदारवादी चेहरे थे वहीं मोदी कट्टर हिंदूवादी। उदारवादी भाजपा नेताओं ने मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने से रोकने के बहुत प्रयास किए, लेकिन अंतत: वह भाजपा की मुख्यधारा की राजनीति में जगह बनाने में सफल रहे। इसके बाद मोदी के नेतृत्व में विकास के मुद्दे पर लड़े गए सन 2014 के आम चुनाव में भाजपा को 282 सीटों पर भारी सफलता मिली और इसके बाद वह भाजपा का मार्गदर्शक चेहरा बन गए।
गोधराकांड के बाद विवादित हुए मोदी
मोदी के सत्ता संभालने के लगभग पांच महीने बाद ही गोधरा रेल हादसा हुआ, जिसमें कई 50 हिंदू कारसेवकों की जला कर हत्या कर दी गई। इसके बाद मुसलमानों के खिलाफ़ दंगे भड़क उठे। जिनमें सरकार के मुताबिक एक हजार से ज्यादा और ब्रिटिश उच्चायोग की एक स्वतंत्र समिति के अनुसार 2000 से अधिक लोग मारे गए थे। मोदी पर आरोप लगाया गया कि वह दंगा पर प्रभावी तरीके से अंकुश नहीं लगा पाए। इसके बाद पार्टी में उन्हें पद से हटाए जाने की बात उठने लगी, तो तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और उनके खेमे ने मोदी का भरपूर समर्थन किया। जिसकी वजह से वह पद पर बने रहे। गुजरात में हुए दंगों की बात कई देशों में उठी। मोदी को अमरीका ने प्रतिबंधित कर दिया, जबकि ब्रिटेन ने दस साल तक उनसे रिश्ते तोड़े रखे। मोदी पर आरोप लगते रहे लेकिन राज्य की राजनीति पर उनकी पकड़ लगातार मजबूत होती गई। मोदी के खिलाफ दंगों से संबंधित कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ है।
आत्मविश्वास से मिली गुजरात की कमान
2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की सेहत बिगड़ने लगी थी। राज्य में पार्टी संगठन कमजोर साबित हो रहा था और भाजपा चुनाव में कई सीट हार रही थी। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में मोदी को आगे किया, लेकिन वह उनके प्रदर्शन को लेकर कुछ आशंकित थे। इस लिए मोदी से केशूभाई पटेल के उपमुख्यमंत्री के रूप में काम करने को कहा गया। लेकिन मोदी ने पटेल के नेतृत्व वाली सरकार में उप-मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव बिना सोचे-समझे ठुकरा दिया। उन्होंने आडवाणी व अटल बिहारी वाजपेयी से कहा यदि जिम्मेदारी देनी है, तो पूरी दीजिए अन्यथा मत दीजिए। उनके आत्मविश्वास का ही नतीजा था कि उन्हें तीन अक्टूबर 2001 को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। जिसके बाद उन्होंने दिसम्बर 2002 में होने वाले चुनाव की पूरी जिम्मेदारी भी उठाई।
Created On :   16 Sept 2017 10:50 PM IST