'किसी दूसरे मजहब में शादी करने से महिला का धर्म नहीं बदल जाता'

No Law Provides Change of Womans Religion After Marriage, Says Supreme Court
'किसी दूसरे मजहब में शादी करने से महिला का धर्म नहीं बदल जाता'
'किसी दूसरे मजहब में शादी करने से महिला का धर्म नहीं बदल जाता'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगर कोई महिला दूसरे मजहब के शख्स से शादी करती है, तो उसका धर्म नहीं बदल जाएगा। कोई भी कानून इस तरह की इजाजत नहीं देता। ये कहना है सुप्रीम कोर्ट का। गुरुवार को एक पारसी महिला की पिटीशन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा। दरअसल, इस महिला ने एक हिंदू शख्स से शादी की, लेकिन बाद में उसे अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया। जिसके बाद इस महिला ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है। बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच इस मामले की सुनवाई कर रहा है।


क्या है पूरा मामला? 

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुलरुख एम. गुप्ता नाम की एक पारसी महिला ने एक हिंदू शख्स से शादी की थी। ये महिला अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहती थी, लेकिन वलसाड़ पारसी बोर्ड ने उसे इसकी परमिशन नहीं दी। बोर्ड का कहना था कि अगर ये महिला अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होती है, तो वो पारसियों के अंतिम संस्कार "टॉवर ऑफ साइलेंस" में जाने का हक खो देगी। इसके बाद महिला का कहना था कि अगर कोई पारसी पुरुष दूसरे मजहब की महिला से शादी करता है, तो उसके पारसी हक नहीं छिने जाते, तो फिर पारसी महिलाओं के साथ ऐसा क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? 

गुरुवार को इस पारसी महिला की पिटीशन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि "एक मजहब की महिला अगर दूसरे मजहब के शख्स से शादी करती है, तो उसका पहला मजहब छूट जाएगा या धर्म परिवर्तन हो जाएगा। ऐसा कोई कानून नहीं है।" कोर्ट ने आगे कहा कि "हमारे यहां स्पेशल मैरिज एक्ट है, जो ये इजाजत देता है कि अगर दो अलग-अलग धर्मों के लोग शादी करते हैं, तो भी उनकी धार्मिक पहचान बनी रहेगी।" बता दें कि 5 जजों की इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं।

और क्या कहा कोर्ट ने? 

इसके आगे 5 जजों की बेंच ने ये भी कहा कि "अगर कोई पुरुष दूसरे मजहब में शादी करता है, तो वो अपना धर्म मान सकता है। फिर क्यों, दूसरे धर्म में शादी करने वाली महिला को अपनी धार्मिक पहचान कायम रखने की इजाजत नहीं है। इस मामले में एक महिला को कैसे और क्यों रोका जा सकता है?" इस पारसी महिला की पिटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि "ये महिला का हक है कि उसे किस धर्म को मानना है।" बता दें कि इस मामले में वलसाड़ पारसी बोर्ड से 14 दिसंबर को जवाब मांगा गया है और इसी दिन सुनवाई भी की जाएगी।

महिला ने क्या कहा था? 

इस मामले में महिला की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने स्पेशल मैरिज एक्ट का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इसके मुताबिक तो गैर-धर्म में शादी करने के महिला का धर्म अपने-आप बदल जाता है। उन्होंने आगे कहा कि क्या हम कॉमन लॉ डॉक्ट्रिन को भारत में लागू नहीं कर सकते? जबकि इसकी शुरुआत इसी देश में हुई है। इंदिरा ने आगे कहा कि ऐसी कोई प्रथा नहीं है, जो ये कहे कि शादी के बाद महिला का धर्म बदल जाता है और न ही कानून में ऐसा कोई प्रावधान है। अगर है भी तो इससे संविधान की व्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचता है।

गुजरात हाईकोर्ट में भी हो चुकी है सुनवाई

इस मामले की सुनवाई पहले गुजरात हाईकोर्ट में भी हो चुकी है। 2010 में इस पारसी महिला ने गुजरात हाईकोर्ट में अपनी पिटीशन फाइल की थी। उस वक्त हाईकोर्ट ने कहा था कि "अगर कोई पारसी महिला हिंदू शख्स से शादी करती है, तो उसका धर्म भी हिंदू हो जाएगा।" इसके बाद महिला ने कहा था कि जब कोई पारसी पुरुष दूसरे धर्म की महिला से शादी करता है, तो उसका धर्म नहीं बदलता तो फिर महिलाओं के साथ ही ऐसा क्यो? इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। 

Created On :   8 Dec 2017 2:27 AM GMT

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