एडल्टरी मामलों में महिलाएं भी अपराधी? 5 जजों की बेंच लेगी फैसला

एडल्टरी मामलों में महिलाएं भी अपराधी? 5 जजों की बेंच लेगी फैसला

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इंडियन पीनल कोड (IPC) के सेक्शन-497 की कॉन्स्टीट्यूशनल वैलिडिटी को चुनौती देने वाली एक पिटीशन की सुनवाई के लिए 5 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच को ट्रांसफर कर दिया है। अब 5 जजों की बेंच इस पर फैसला लेगी। पिटीशन में केरल के एक शख्स ने सेक्शन-497 पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अगर कोई पुरुष शादीशुदा महिला से उसकी सहमति से संबंध बनाता है, तो उसे अपराधी माना जाता है, जबकि महिला को ऐसे मामलों में छोड़ दिया जाता है। बता दें कि इस मामले में पिछले महीने सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब भी मांगा था। 


अब 5 जजों की बेंच करेगी सुनवाई

पहले सेक्शन-497 की वैलिडिटी पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ की बेंच इस पर सुनवाई कर रही थी। पिछली साल दिसंबर में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा था। इस नोटिस में कोर्ट ने पूछा था कि जब IPC के सभी कानून महिला और पुरूष दोनों के लिए समान है, तो फिर सेक्शन-497 में ऐसा क्यों नहीं है? कोर्ट ने कहा था इस मामले में 1954 और 1985 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वो सहमत नहीं है।

पिटीशन में क्या मांग की गई है? 

केरल के रहने वाले जोसेफ शिन ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल करते हुए IPC के सेक्शन-497 की कॉन्स्टीट्यूशनल वैलिडिटी पर सवाल उठाया है। पिटीशनर का कहना है कि सेक्शन-497, कॉन्स्टीट्यूशनल प्रोविजन्स का उल्लंघन करता है। पिटीशन में कहा गया है कि अगर दोनों (महिला और पुरुष) आपसी रजामंदी से संबंध बनाते हैं, तो फिर ऐसे में महिला को छूट कैसे दी जा सकती है? पिटीशनर ने इस कानून को पुरुषों के खिलाफ "भेदभाव" वाला बताया है। पिटीशन में कहा गया है कि ये कानून संविधान के सेक्शन-15 (समानता का अधिकार), 15 और 21 (जीवन जीने का अधिकार) का उल्लंघन करता है। जोसेफ ने अपनी पिटीशन में इस कानून को महिलाओं के खिलाफ भी बताया है, क्योंकि इसके तहत महिला को पति की प्रॉपर्टी जैसा माना गया है। पिटीशन में कहा गया है कि ये कानून भेदभाव वाला है और जेंडर जस्टिस के खिलाफ है। पिटीशनर ने मांग की है कि इस कानून को अवैध और अन-कॉन्स्टीट्यूशनल घोषित किया जाए।

पिछली सुनवाई में क्या कहा था कोर्ट ने?

जोसेफ शिन की पिटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे मामलों में कोई कानून कैसे महिलाओं का संरक्षण कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को महिलाओं के खिलाफ मानते हुए ये भी कहा कि "अगर कोई पति अपनी पत्नी को गैर-मर्द से संबंध बनाने की रजामंदी दे देता है, तो ये अपराध नहीं माना जाता। एक तरह से ये कानून महिलाओं को पति की प्रॉपर्टी के तौर पर भी पेश करता है।" कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे मामलों में हमेशा पुरुष को ही अपराधी माना जाता है, जबकि महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती। अगर ये संबंध दोनों की आपसी सहमति से भी बने हैं और महिला का पति पुरुष के खिलाफ केस करता है, तो उसको अपराधी माना जाता है।

क्या है सेक्शन-497? 

IPC के सेक्शन-497 के तहत, अगर कोई शादीशुदा महिला अपनी मर्जी से किसी गैर-मर्द के साथ संबंध बनाती है और महिला के पति की इसमें सहमति नहीं है, तो ऐसे मामले में उस शख्स के खिलाफ सेक्शन-497 के तहत केस चलता है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर उस शख्स को 5 साल तक कैद की सजा हो सकती है। वहीं कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CRPC) के सेक्शन-19 (2) के मुताबिक, सेक्शन-497 के तहत किए गए अपराधों में पति ही शिकायत कर सकता है।

क्यों है इसको लेकर विवाद? 

ये कानून करीब 150 साल पुराना है और इसको लेकर हमेशा से विवाद रहा है। दरअसल, अगर कोई महिला अपने पति और अपनी सहमति से किसी गैर-मर्द के साथ संबंध बनाती है, तो ऐसे मामले में उस शख्स के खिलाफ कोई केस नहीं बनता। क्योंकि ऐसे मामलों में सिर्फ पति ही अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। अगर कोई शादीशुदा महिला किसी गैर-मर्द के साथ सहमति से संबंध बनाती है और उसका पति उस शख्स के खिलाफ शिकायत करता है, तो उस शख्स को आरोपी माना जाता है, जबकि महिला को आरोपी नहीं बनाया जाता, जबकि संबंध दोनों की बराबरी से बनाए गए थे। सेक्शन-497 का इस्तेमाल ही तब होता है, जब कोई महिला अपनी सहमति से संबंध बनाती है, लेकिन इसमें उस महिला के पति की रजामंदी शामिल नहीं होती।

क्यों है ये भेदभाव वाला? 

पिटीशनर ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को भेदभाव वाला बताया है, क्योंकि इस कानून के तहत हमेशा पुरुष को ही आरोपी माना जाता है, जबकि महिला के खिलाफ कोई केस नहीं चलता। इसके साथ ही ये महिलाओं के खिलाफ भी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसे मामलों में महिला को पति की प्रॉपर्टी की तरह माना गया है। सेक्शन-497 के तहत हुए अपराधों में महिला की ओर से उसका कोई भी रिश्तेदार शिकायत नहीं कर सका। यहां तक कि उस महिला के बच्चों को भी संबंध बनाने पर आपत्ति है, तो भी वो इसकी शिकायत नहीं कर सकते। ऐसे मामलो में सिर्फ महिला को पति को ही शिकायती माना गया है। 

Created On :   6 Jan 2018 3:19 AM GMT

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