बचपने का शिकार हैं प्रज्ञा ठाकुर : राजगोपाल
भोपाल, 29 नवंबर (आईएएनएस)। अहिंसा की अलख जगाने के लिए दिल्ली के राजघाट से दो अक्टूबर को जय जगत यात्रा पर निकले गांधीवादी और एकता परिषद के संस्थापक पी.वी. राजगोपाल ने कहा कि सांसद प्रज्ञा ठाकुर चाइल्डिस साइकोलॉजी का शिकार हैं, इसीलिए वह बार-बार महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को लेकर बहस पैदा कर रही हैं।
राजगोपाल के साथ 50 से अधिक पदयात्री हैं, जो अब तक लगभग 1,000 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं। भोपाल पहुंचने पर अपनी यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए राजगोपाल ने आईएएनएस से कहा, गांवों और स्कूलों में गांधी को मानने और चाहने वालों की कमी नहीं है। हर व्यक्ति गांधी को जानता है, उनके बताए अहिंसा के मार्ग पर चलने की बात करता है, इसलिए अगर सरकारें इस दिशा में काम करें तो गांधी का संदेश जन-जन का संदेश बन सकता है।
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष के मौके पर वैश्विक यात्रा पर निकले राजगोपाल ने गुरुवार को यहां आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, प्रज्ञा ठाकुर ठीक उस बच्चे के समान हैं, जिसे पता है कि दूसरों को क्या बुरा लगेगा, फिर भी वह वही बात बार-बार कर रही हैं। वह बार-बार गोडसे बहस को बढ़ावा दे रही हैं। उनका यह स्वभाव चाइल्डिश साइकोलॉजी को दर्शाता है।
उन्होंने कहा, भाजपा और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार गांधी को अपनाने की बात करते हैं। वहीं पार्टी की सांसद बार-बार गांधी के हत्यारे को देशभक्त बताती हैं। वह आखिर ऐसा क्यों कर रही हैं?
राजगोपाल ने भाजपा का जिक्र किए बिना कहा, यह सही है कि उनके पॉलिटिकल सिस्टम में सुविधाजनक हिंसा (सेलेक्टिव वायलेंस) में विश्वास किया जाता है, क्योंकि उन्होंने अपनी विचारधारा में अहिंसा को नहीं अपनाया, इसलिए हिरोइज्म के नाम पर हिंसा करने वाले उनको पसंद हैं। जबकि गांधी तो उससे दूर रहे।
गांधी को अहिंसा का पर्याय बताते हुए राजगोपाल ने कहा, आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने चौरी-चौरा आंदोलन सिर्फ इसलिए वापस लिया था, क्योंकि उस आंदोलन में हिंसा होने लगी थी। पुलिस थाने को जलाया गया तो महात्मा गांधी ने कहा, मैं ऐसी आजादी नहीं चाहता, जिसमें लोग हिंसा का इस्तेमाल करें।
राजनीतिक दलों की कार्यशैली में कथनी और करनी में अंतर होने के सवाल पर राजगोपाल ने कहा, वर्तमान में हर राजनीतिक दल अपनी विचारधारा के अनुसार काम कर रहे हैं। हर कोई अहिंसा की बात करता है, मगर हो कुछ और रहा है, सभी आतंकवाद के विरोध की बात करते हैं। मगर भाजपा द्वारा माइल्ड वॉयलेंस को प्रोत्साहित किया जा रहा है। आपको अतिवादी हिंसा पसंद नहीं है, आपको नक्सली पसंद नहीं हैं, मगर अपने अंदर हिंसा की चर्चा को अनुमति दे रहे हैं। यह सेलेक्टिव वॉयलेंस का समर्थन करने वालों की आदत है।
ऐसे हालात में गांधीवादी और अहिंसा समर्थकों को क्या करना चाहिए? इस सवाल पर राजगोपाल ने कहा, गांधी और उनके विचारों को मानने वालों को गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है। अहिंसा का समर्थन करने वालों को अपनी रणनीति बनानी चाहिए। हिंसा का समर्थन करने वालों ने अपनी रणनीति को पूरी तरह तैयार कर रखा है। उन्होंने अति हिंसा से माइल्ड वॉयलेंस तक की अपनी रणनीति बना रखी है। वहीं अहिंसा के पक्षधरों ने कोई रणनीति न तो बनाई है और न ही उस पर विचार किया है, इसलिए उनकी दुर्गति तो होनी ही है।
राजगोपाल ने अहिंसा का समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों, खासतौर से कांग्रेस को सलाह दी कि उसे अहिंसा की रणनीति बनाकर वैचारिक स्तर पर काम करना चाहिए कि इसे कैसे प्रोत्साहित किया जाए, इसे कैसे समाज में ले जाएं। देश में इस तरह की समझ भी नहीं है। उस पर चर्चा भी नहीं है। सिर्फ अहिंसा में विश्वास करने से बात नहीं बनेगी, उस विचार को आगे कैसे ले जाया जाए, इस पर काम करने की जरूरत है।
देश और दुनिया में हिंसा का समर्थन करने वालों की एकजुटता और अहिंसा के समर्थकों में बिखराव के सवाल पर राजगोपाल ने कहा, हिंसा के समर्थकों का एक व्यवस्थित ताना-बाना है। इसका आशय यह है कि उनके पास हथियार बेचने वाली कंपनी से लेकर उनके आइडिया को जमीन तक ले जाने वाले राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का नेटवर्क है। उसमें नफरत फैलाने वाले वक्तव्यों को महत्व दिया जाता है, वहीं अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग एकजुट नहीं हैं। उनका कोई नेटवर्क नहीं है, वे संख्या में ज्यादा हैं, फिर भी सफलता हिंसा फैलाने वाले विचार को मिल रही है। इसका बड़ा कारण अहिंसा समर्थकों का एकजुट न होना है।
Created On :   29 Nov 2019 11:30 AM IST