कल के पोल्टू बन गए प्रणब मुखर्जी, भारत में उपनाम के पीछे है लंबी दास्तां

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बरसात की एक सुबह दुबला पतला सा एक लड़का कागज के एक थैले में कुछ कपड़े और किताबें अपनी बगल में दबाकर नंगे पांव स्कूल के लिए निकल जाता है। पश्चिम बंगाल के गांव में हर सुबह यही नज़ारा दिखाई देता है। गांव की कच्ची पक्की सड़कों पर स्कूल जाते बच्चों में पोल्टू भी एक था। पोल्टू और कोई नहीं देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का उपनाम है।
डाकनाम का लंबा इतिहास
प्रणब दा का नाम पोल्टू कैसे पड़ा, इसकी एक दिलचस्प कहानी है। उनके परिवार के पुराने मित्र और पत्रकार जयंत घोषाल बताते हैं कि प्रणब के पिता और उनकी बड़ी बहन अन्नपूर्णा देवी उन्हें पोल्टू नाम से पुकारती थी। सोमवार को जबकि देश नए राष्ट्रपति का चुनाव कर रहा है। भारत के 125 करोड़ लोग पोल्टू की कहानी और उनके परिवार से शायद बहुत कम ही वाकिफ होंगे। कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है, पर भारतीयों के लिए नाम से कहीं ज्यादा उपनाम का महत्व है। ख़ासतौर पर बंगाल में लोग प्यार से उपनाम ही लेते हैं। इसे डाकनाम भी कहा जाता है। गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को प्यार से रोबी बुलाया जाता था। वहीं सत्यजीत रे, मानक दा के नाम से जाने जाते थे, जबकि बंगाल के सुपरस्टार प्रसीनजीत चटर्जी बुम्बा के नाम से सम्बोधित होते थे।
लगाव का प्रतीक भी है उपनाम
ज्यादातर भारतीयों के लिए नामकरण एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। परिवार के लोग लंबे परामर्श और ढेरों संदर्भों का सहारा लेकर एक नाम चुनते है। अंक ज्योतिष और ज्योतिष भी इसमें महत्व रखता है, इसके विपरीत उपनाम रखने के पीछे कोई आधार नहीं है। इसके पीछे कोई घटना, कोई जगह या कोई प्यारी सी याद भी हो सकती है। फोर्टिस हेल्थ केयर मेंटल हेल्थ विभाग की प्रमुख कामना छिब्बर कहती हैं कि ज्यादातर लोगों के लिए सबसे आसान तरीका मुख्य नाम का संक्षिप्तिकरण होता है। जैसे- मनीष, मोनू बन जाता है और पूजा पूह बन जाती है। वे कहती हैं कि उपनाम सम्बंधित व्यक्ति के साथ लगाव का भी प्रतीक है।
व्यक्ति और परिवार की पसंद के मुताबिक ये बदलता रहता है। मिशाल के लिए करिश्मा कपूर के दोस्त उसे लोलो कहते हैं, जबकि इसके पीछे की कहानी यह है कि उनकी माँ इतालवी स्टार जीना लोलो ब्रजिडा को बहुत पसंद करती थी। ऋषि कपूर को चिंटू के नाम से पुकारा जाता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उनका ये नाम बड़े भाई रणधीर कपूर की स्कूल में कही गयी एक कविता के आधार पर पड़ा, जो इस तरह है- छोटे से चिंटू मियां लंबी सी पूंछ... जहाँ जांए चिंटू मियां वहां...। इसी तरह पूर्व राहुल द्रविड़ को जैनी पुकारते हैं, क्योंकि उनके पिता की किसान जैम बनाने वाली फैक्ट्री थी।
अब तो बॉबी और डॉली का है चलन
अलबत्ता उपनाम के पीछे कुछ कहानियां दुःखद भी हैं। रंग, शरीर का आकर और आंशिक विकलांगता को भी लोग उपनाम में बदल देते है। यह भारतीय समाज का बेरूखापन बताता है। बहरहाल आज के दौर में जबकि पश्चिमी सभ्यता हावी है, इसलिए बोबी या डॉली जैसे नाम हर घर में प्रचलित हो रहे है। फिर भी शेक्सपियर की वही बात एक बार और याद आती कि नाम में कुछ नहीं रखा, उपनाम ही है जो व्यक्ति की पहचान दिलाता है।
Created On :   17 July 2017 6:33 PM IST