उम्रकैद के दोषियों की 14 साल से पहले रिहाई के राज्य के अधिकार पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court to consider states right to release life imprisonment before 14 years
उम्रकैद के दोषियों की 14 साल से पहले रिहाई के राज्य के अधिकार पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
उम्रकैद के दोषियों की 14 साल से पहले रिहाई के राज्य के अधिकार पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली, 17 जुलाई (आईएएनएस)। क्या कोई राज्य सरकार अपराध की गंभीरता के बावजूद उम्रकैद की सजा पाए किसी दोषी को 14 वर्ष जेल में बिताने से पहले ही रिहा करने के लिए कोई नीति बना सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश से इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक संविधान पीठ गठित करने के लिए कहा।

अनुच्छेद 161 राज्यपाल को दोषी की सजा कम करने, माफ करने का अधिकार देता है, जबकि सीआरपीसी की धारा 433ए कहती है कि अधिकतम सजा के रूप में मृत्युदंड की गंभीरता वाले किसी अपराध में दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के लिए क्षमा की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए एक बड़ी पीठ इस मामले को देखेगी कि क्या 14 वर्ष पूरा होने से पहले राज्य सरकार कोई नीति बना सकती है, जिसके तहत दोषी को रिहा किया जा सके।

न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनागौदर और न्यायमूर्ति विनीत सरण की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, क्या संवधिान के अनुच्छेद 161 के तहत प्रदत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए कोई नीति बनाई जा सकती है, जिसमें कुछ ऐसे निमय या मानक निर्धारित किए जा सकते हैं, जिनके आधार पर सरकार द्वारा सजा कम की जा सकती है, वह भी इस तरह के मामलों से जुड़े तथ्यों और सामग्रियों को राज्यपाल के समक्ष रखे बगैर? और क्या इस तरह का कदम धारा 433-ए के तहत आने वाली जरूरतों को दरकिनार कर सकता है?

शीर्ष अदालत ने हरियाणा के एक उम्रकैद के दोषी की समय से पहले रिहाई के मामले में अधिवक्ता शिखिल सुरी द्वारा दी गई सहायता की भी सराहना की। यह मुद्दा एक हत्यारोपी प्यारे लाल द्वारा दायर की गई लंबित जमानत याचिका से सामने आया, जो 75 वर्ष से अधिक उम्र का है।

सूरी ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि उसे हरियाणा राज्य के नियम के फलस्वरूप आठ वर्ष की सजा काटने के बाद पहले ही माफी मिल चुकी है।

इसपर शीर्ष अदालत ने कहा, वर्तमान मामले में अपनाए गए तौर तरीके से पता चलता है कि मामले के व्यक्तिगत तथ्य और परिस्थिति को राज्यपाल के समक्ष नहीं रखा गया।

अदालत ने पूछा कि क्या क्षमादान देते वक्त मूल पहलुओं पर विचार किया गया कि किस तरीके से अपराध को अंजाम दिया गया है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।

Created On :   17 July 2020 4:30 PM GMT

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