कैदियों के हाथों से बने तार से स्टार्ट होते हैं ट्रैक्टर, औरंगाबाद की कंपनी के लिए करते हैं काम 

Tractors Started with wire made by prisoners of central jail
कैदियों के हाथों से बने तार से स्टार्ट होते हैं ट्रैक्टर, औरंगाबाद की कंपनी के लिए करते हैं काम 
कैदियों के हाथों से बने तार से स्टार्ट होते हैं ट्रैक्टर, औरंगाबाद की कंपनी के लिए करते हैं काम 

अभय यादव, नागपुर। सेंट्रल जेल के कैदियों के हाथों से बने वायर (तारों) से ट्रैक्टर स्टार्ट होते हैं। यह सुनकर भले ही किसी को यकीन न हो, लेकिन नागपुर की सेंट्रल जेल में औरंगाबाद की एक कंपनी के लिए यहां के 16 कैदी वायर "तार" बना रहे हैं। एमआईडीसी में एक ट्रैक्टर कंपनी इन तारों का उपयोग ट्रैक्टर को स्टार्ट करने के लिए करती है। ये कैदी सालाना सरकार के लिए पौने 3 करोड़ से अधिक का राजस्व जुटाते हैं। इनके हाथों से बनी पैठणी साड़ियों की मांग विदेशों में होने लगी है। राज्य की 9 सेंट्रल जेलों में से सिर्फ चार जेलों में ही पैठणी साड़ियां बनती हैं, जिसमें नागपुर, नासिक, कोल्हापुर और पुणे सेंट्रल जेल शामिल हैं।

कोर्ट के लिए भी फर्नीचर बनाए
कैदियों का हुनर हाल ही में अमरावती में बनाई गई कोर्ट की नई इमारत में देखने को मिला है। इस कोर्ट में लगे सभी फर्नीचर को नागपुर के कैदियों ने बनाया है। इन्हें करीब 45 करोड़ रुपए का वर्क ऑर्डर मिला था।

मिला है ऑर्डर
सेंट्रल जेल के अधिकारी योगेश पाटील ने बताया कि जेल के कैदियों के हाथों फुटाला तालाब के पास बने पशु और मत्स्य व्यवसाय विद्यापीठ में फर्नीचर लगने वाला है। यहां का ऑर्डर मिल चुका है। इस ऑर्डर को पूरा करने के लिए परतवाड़ा के वनविभाग से करीब 2 करोड़ की लकड़ियां भी खरीदी जा चुकी हैं। कैदी 500 कुर्सियां और 500 टेबल का निर्माण करने वाले हैं। सेंट्रल जेल के अंदर औरंगाबाद की एक कंपनी ने अपनी एक यूनिट नागपुर और एक औरंगाबाद की जेल में लगा रखी है। नागपुर की यूनिट में 16 कैदी 8 घंटे तक कंपनी का काम करते हैं। कैदी हर महीने करीब 2500 किलो अखंड तार तैयार करते हैं। उसके बाद इन तारों को एमआईडीसी की ट्रैक्टर कंपनी में भेजते हैं।

सूत्रों ने बताया कि सेंट्रल जेल में वस्तु निर्माण के लिए कोटेशन भरने की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि यह कार्य कैदी करते हैं। यहां लगने वाली कच्ची सामग्री के लिए बाहर की निजी कंपनियों से माल मंगाने के लिए उनसे टेंडर जरूर मंगाया जाता है। कैदी सरकार के लिए ही कार्य कर रहे हैं। इसलिए कार्य के कोटेशन की जरूरत नहीं पड़ती है। इस वर्ष कैदियों ने समाज कल्याण विभाग के लिए 20 कूलर भी बनाए हैं। नागपुर की जेल में मौजूदा समय में करीब 2500 कैदी हैं। इनमें से करीब 200 कैदी यहां के कारखाने, खेती के काम में लगे हैं।

आश्रमशालाओं के बच्चों की ड्रेस भी बनाते हैं
जेल के ये कैदी, पुलिस और होमगार्ड के लिए गणवेश सिलते हैं। साथ ही आश्रमशालाओं में पढ़ने वाले बच्चों के लिए कपड़े भी सिलकर देते हैं। इस वर्ष मार्च 2018 तक जेल के कामगार कैदियों ने करीब 69.52 लाख रुपए का राजस्व सरकार के लिए जुटाया हैं। रक्षाबंधन के समय महिला कैदियों से रक्षाबंधन, रुमाल व अन्य सामग्री बनवाई जाती है। बाजार की अपेक्षा जेल में बनीं वस्तुओं की कीमत काफी कम होती है।

योगेश पाटील उप-अधीक्षक का कहना है कि जेल में बंद किस कैदी में क्या हुनर है, इसकी परख की जाती है। उसके बाद उसे विधिवत प्रशिक्षण देकर कार्य कराया जाता है। अब तो जेल में इग्नू ने पाठयक्रम भी शुरू कर दिया है। कुछ आरोपी व कैदी अपनी आगे की पढ़ाई जेल में रहकर कर रहे हैं। विशेषज्ञ व प्रशिक्षकों द्वारा इन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है।

Created On :   28 May 2018 11:46 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story