महिलाओं की भागीदारी ने बदला खाप पंचायतों का रंग

Womens participation changed the color of khap panchayats
महिलाओं की भागीदारी ने बदला खाप पंचायतों का रंग
महिलाओं की भागीदारी ने बदला खाप पंचायतों का रंग

डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। खाप पंचायतों के फैसले हमेशा से मीडिया में सुर्खियां बटोरते रहे हैं। अब तक खाप पंचायतें अपने अजीबोगरीब, कड़े और कुख्यात फैसलों के लिए जानी जाती रही हैं लेकिन बदलते जमाने के साथ अब खाप पंचायतें भी बदल रही हैं। पुरुष प्रधान खाप पंचायतों में अब महिला विंग भी बनने लगी है। या यूं कहें कि महिलाओं ने अब खुद आगे आकर इन खाप पंचायतों में अपनी जगह बनाई है। खास बात ये है कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के साथ ही खाप पंचायतों का रंग भी बदलने लगा है।

खाप एक सामाजिक संगठन हैं, जो अर्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है। आमतौर पर इस पंचायत के प्रमुख बुजुर्ग होते हैं जो अपने प्रभाव के तहत क्षेत्र के लिए नियम निर्धारित करते हैं। इतिहास में देखें तो 600 ईस्वी से ये खाप पंचायतें चल रही हैं। कन्नौद के राजा हर्षवर्धन  जिन्होंने उत्तर भारत में जाट गुटों को एकजुट किया था, उन्हीं के समय से इस तरह की पंचायत उत्तर भारत के कुछ हिस्से में चलती थी। आज हरियाणा में अनुमानित 70 खाप पंचायत हैं।

राज्य में 10 बड़ी खाप पंचायतों में गठवाला (मलिक), नरवाल, दाहिया, सतरोल, मेहम चौबिशी, नोगामा, खेड़ा, बुरा और कांडेला शामिल हैं। इनमें से दाहिया, सतरोल और बुरा खाप पंचायतों में महिला विंग गठित की गई है, जिनकी प्रमुख महिलाएं ही हैं। खाप पंचायतों में यह परिवर्तन हाल ही कुछ सालों में देखने को मिला है। पहली बार, शारीरिक शिक्षा में पीएचडी करने वाली संतोष दहिया को 2010 में सर्व खाप सर्व पंचायत का महिला विंग प्रमुख बनाया गया था। उनके बाद हिंदी में डॉक्टरेट पूनम बुरा को बुरा खाप पंचायत के महिला विंग के प्रमुख नामित किया गया।

दोनों ने ही महिला विंग की अध्यक्ष रहते हुए दहेज और शादी से जुड़े कई मामलों का समाधान किया। उन्होंने महिलाओं के बीच यह संदेश पहुंचाया कि उनकी समस्याओं के समाधान के लिए वे हमेशा उनके साथ हैं। दहिया कहती हैं कि उनकी जिम्मेदारी बढ़ चुकी है। उन्हें महिलाओं की आवाज बनना पसंद है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवार से आई पुनम बुरा कहती हैं, "मैंने इस पद पर आने के बाद जो पहला काम किया वो था ऑनर किलिंग, फिमेल भ्रूण हत्या और लिंगभेद खत्म करने के लिए लोगों का समर्थन मांगना।"

दोनों महिला प्रमुखों ने गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर कई महिला समितियां गठित की। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में  प्रोफेसर संतोष दहिया तो अपने सामाजिक कार्यों के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित भी हो चुकी हैं। उन्होंने खाप पंचायत में अपना एक अलग रंग छोड़ा है। जब भी वे खाप पंचायत जाती हैं तो लोग पहली पंक्ति में बैठे ताऊजी और दादाजी के साथ उन्हें भी स्थान लेने के लिए कहते हैं। 

महिलाओं की भागीदारी से खाप पंचायत में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। अब महिलाओं से जुड़े मामलों को खाप पंचायतें ना केवल ध्यान से सुनती है बल्कि निर्णय भी संजीदगी के साथ देती है।

Created On :   4 Aug 2017 6:26 PM IST

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