अगले वर्ष कब से प्रारम्भ होगा कुंभ मेला, जानें कुंभ स्नान की शाही तिथियां 

Kumbh Mela 2019:  Learn the royal dates of Kumbh Snan, Allahabad
अगले वर्ष कब से प्रारम्भ होगा कुंभ मेला, जानें कुंभ स्नान की शाही तिथियां 
अगले वर्ष कब से प्रारम्भ होगा कुंभ मेला, जानें कुंभ स्नान की शाही तिथियां 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगले साल यानि 2019 में संगम नगरी प्रयागराज (इलाहाबाद) में लगने वाले कुंभ मेले के शाही स्नान की तिथिओं की घोषणा हो चुकी है। प्रथम शाही स्नान 14 जनवरी को आरंभ होगा। हिंदू धर्म में कुंभ मेला एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश से सैकड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं। कुंभ का संस्कृत अर्थ कलश होता है।

हिंदू धर्म के अनुसार भारत में कुंभ का पर्व 12 वर्ष के अंतराल पर होता है। दो कुंभ मेलों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। प्रयागराज (इलाहाबाद) में कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है। इस दिन जो योग बनता है उसे कुंभ शाहीस्नान योग कहते हैं। 

हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है कि किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मानव को जन्म-पुनर्जन्म तथा मृत्यु मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रथम वर्ष संगम नगरी प्रयागराज (इलाहाबाद) में लगने वाले कुंभ मेले के शाही स्नान की तिथिओं की घोषणा हो चुकी है। यदि आप भी अगले साल कुंभ मेले में स्नान करने की सोच रहे हैं तो यहां जानें शाही स्नान की तिथियां.....

2019 कुंभ मेले की शाही स्नान की तिथियां-
14-15 जनवरी 2019: मकर संक्रांति (प्रथम शाही स्नान)
21 जनवरी 2019: पौष पूर्णिमा स्नान
31 जनवरी 2019: पौष एकादशी स्नान
04 फरवरी 2019: मौनी अमावस्या (मुख्य शाही स्नान, दूसरा शाही स्नान)
10 फरवरी 2019: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
16 फरवरी 2019: माघी एकादशी स्नान
19 फरवरी 2019: माघी पूर्णिमा स्नान
04 मार्च 2019: महाशिवरात्री स्नान

वर्ष 2019 का अर्धकुंभ पचास दिनों का होगा, जो 14 जनवरी मकर संक्रांति के दिन से आरंभ होकर 4 मार्च महाशिवरात्रि तक चलेगा। 
कुंभ स्नान का अदभुत सुयोग इस बार तीस वर्षों बाद बन रहा है जो दुर्लभ एवं प्रभावकारी है।

कुम्भ का विज्ञान 
आधुनिक विज्ञान भी अब इस ओर देख रहा है। भूमध्य रेखा यानी शून्य डिग्री अक्षांश और तीस डिग्री अक्षांश के बीच पृथ्वी के घूमने से उत्पन्न होने वाला अपकेंद्रीय बल अधिकतम लंबवत रूप में काम करता है। जैसे-जैसे आप उत्तर की ओर बढ़ते हैं, इस बल की दिशा बदलती जाती है और यह स्पर्शरेखीय हो जाता है। लेकिन यहां यह लंबवत ही काम करता है। 

इस प्रकार शून्य से लेकर तीस डिग्री अक्षांश के बीच के स्थान को पृथ्वी पर पवित्र माना गया है, क्योंकि इस क्षेत्र में जो भी साधना की जाती है, उसका अधिकतम शुभफल ही मिलता है। इन अक्षांशों के बीच कई स्थानों की पहचान की गई हे, जहां वर्ष में या एक सौर्य वर्ष में, जो बारह वर्ष तीन महिनों का होता है, अलग अलग समय पर, अनेक शक्तियां एक विशेष प्रकार से काम कर रही हैं। बस इन्हीं स्थानों को किसी विशेष दिन या दिनों के लिए चुना गया है।

कुम्भ मेले का महत्त्व
जहां कहीं भी पानी के दो निकाय एक खास बल के साथ मिलते हैं, वहां पानी का मंथन होने लगता है। जैसा कि आपको पता है हमारे शरीर में भी 72 % पानी है। तो यह शरीर जब किसी विशेष समय और नक्षत्र में वहां पर होता है तो उसे अधिकतम लाभ मिलता है। प्राचीन समय में हर किसी को ये पता था कि 40 दिनों के मंडल के समय यदि आप कुंभ में रुकें और हर दिन आप अपनी साधना के साथ उस जल में जाएं, तो आप अपने शरीर को अपने मनोवैज्ञानिक तंत्र को अपने ऊर्जा तंत्र को रूपांतरित कर सकते हैं। 

इसके अलावा आपको उन 40 दिनों में ही अपने भीतर अदभुत आध्यात्मिक प्रगति का अनुभव होगा। आज यह महत्वपूर्ण है कि हम हर किसी के लिए कम से कम 40 दिनों की साधना का एक कार्यक्रम तय कर दें। आप जहां कहीं भी हैं, बस 40 दिन तक रोजाना 10 से 12 मिनट की साधना कीजिए और उसके बाद कुंभ में आकर स्नान कीजिए। 

इससे बहुत प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि इसकी अपनी ही महत्ता है। प्रश्न यह है कि किसी विशेष स्थान पर कोई विशेष ऊर्जा उपस्थित है तो क्या आपके पास उसे ग्रहण करने की क्षमता है? क्या आप उसका अनुभव करने योग्य आपके ऊर्जा भीतर है ? अगर आप इसे अनुभव नहीं कर सकते तो आप कहीं भी हों, सब बेकार है।

Created On :   14 Dec 2018 9:47 AM GMT

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