Nagpur News: बड़ा खुलासा - बाहर से लाते हैं 1.75 लाख मूर्तियां 1.50 लाख पीओपी की निकलती हैं

  • मांग अधिक, मिट्टी की मूर्तियां कम
  • नई शिक्षित पीढ़ी बना रही दूरी
  • 95 फीसदी दुकानों में पीओपी

Nagpur News. राज्य सरकार ने पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) की मूर्तियों को लेकर तीन सप्ताह में नीति तैयार करने का निर्णय लिया है। हालांकि राज्य भर में पीओपी मूर्तियों के निर्माण व बिक्री पर प्रतिबंध का विषय 15 साल से चल रहा है, लेकिन इसके लिए सरकार ठोस व स्थायी नीति नहीं बना पाई है। मनपा प्रशासन भी इस मामले में हार चुकी है।

कार्रवाई के नाम पर दिखावा

नागपुर में मूर्तियाें की मांग के हिसाब से निर्माण नहीं होता। इसलिए बाहर से पीओपी की मूर्तियां मंगाई जाती हैं। जब दुकानें लगती हैं तो वहां जाकर मूर्तियों की पहचान करने वाले विशेषज्ञ नहीं है। कार्रवाई के नाम पर चंद मूर्तियां जब्त की जाती हैं व जुर्माना लेकर खानापूर्ति की जाती है। इसके बाद धड़ल्ले से पीओपी मूर्तियां बिकती हैं।

2.60 लाख मूर्तियां अनुमानित

जिले में इस बार 2.60 लाख मूर्तियां स्थापित होने का अनुमान है। यहां बनाई जाने वाली 85 हजार मूर्तियों को कम किया जाए, तो बाहर से 175000 मूर्तियां आती हैं। इनमें से 1.50 लाख मूर्तियां पीओपी की होती हैं। विसर्जन के दर्ज आंकड़ों के अलावा भी बड़ी संख्या है, जिनका रिकॉर्ड नहीं होता है।

मांग अधिक, मिट्टी की मूर्तियां कम

27 अगस्त से राज्य भर में गणेशोत्सव की शुरुआत होगी। गणेशोत्सव के लिए मूर्तियों की बड़ी संख्या में मांग होती है। मांग के अनुसार मिट्टी की मूर्तियां उपलब्ध नहीं हो पाती। इसलिए बरसों से पीओपी की मूर्तियां बेची जा रही हैं। पिछले पांच साल से नागपुर महानगर पालिका द्वारा पीओपी मूर्तियों पर रोक लगाने के लिए प्रतिबंधक उपाय किये जा रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है।

नई शिक्षित पीढ़ी बना रही दूरी

जिले में माटी कला से जुड़े 450 से 500 परिवार हैं। अब इन परिवारों में मिट्टी की मूर्तियों का काम करने वाले नये कलाकार तैयार नहीं हो रहे। नई शिक्षित पीढ़ी मिट्टी की मूर्तियां बनाने की बजाय स्थायी आमदनी वाले दूसरे क्षेत्र में प्रवेश करने लगी हैं। दो-चार लोग ही साल भर काम करते हैं। छोटी मूर्तियां बनानेवाले औसत 400 व बड़ी मूर्तियां बनाने वाले अधिकतम 75 मूर्तियां बनाता है। कुछ साल पहले जिले में 1.25 लाख से अधिक मूर्तियों का निर्माण होता था। अब यह आंकड़ा सिमटकर 85 हजार तक ही पहुंच पाता है।

विसर्जन के आंकड़ों पर सवाल

पिछले साल नागपुर महानगर पालिका ने 419 कृत्रिम तालाब तैयार किये थे। इनमें 166918 मूर्तियों का विसर्जन हुआ था। मूर्तियाें में 162212 मिट्टी की और 4706 पीओपी की होने की जानकारी सामने आई थी। जिले में करीब 3 लाख मूर्तियों की मांग होती है। मांग पूरी करने के लिए दूसरे शहरों से मूर्तियां लाई जाती हैं। जिले में पेण के अलावा मुंबई, अमरावती, बडनेरा, परतवाड़ा, अहमदनगर, पुणे, वाशिम, अकोला, कोल्हापुर आदि शहरों शहरों से मूर्तियां मंगाई जाती हैं। यहां से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा समेत पूरे विदर्भ से मूर्तियों के थोक ग्राहक आते हैं। करीब 40 हजार मूर्तियां बाहर भेजी जाती हैं। 2.60 लाख मूर्तियां नागपुर जिले में स्थापित होती हैं। यहां बननेवाली 85 हजार मूर्तियों को कम किया जाए तो बाहर से 175000 मूर्तियां आती हैं। इनमें से 1.50 लाख मूर्तियां पीओपी की होती हैं। इसलिए विसर्जन के आंकड़ों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

यह है नियमावली

मनपा की नियमावली के अनुसार, पीओपी मूर्तियों पर लाल निशान, मूर्तियाें का विसर्जन कृत्रिम तालाब में, ग्राहक को पीओपी मूर्ति होने की जानकारी देना और बिक्री स्थल पर पीओपी मूर्ति होने का बड़ा बैनर लगाना, प्राकृतिक तरीके से नष्ट होने वाली मूर्तियों को अनुमति, पीओपी की मूर्तियां प्रतिबंधित, मूर्तियों पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग, केमिकल रंगों के उपयोग पर प्रतिबंध, मूर्तिकारों को स्थानीय प्रशासन से पंजीयन अनिवार्य, नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर नकद जुर्माना व 2 साल का प्रतिबंध आदि का समावेश किया गया है।

95 फीसदी दुकानों में पीओपी

विसर्जन के आंकड़ों को देखा जाए तो मिट्टी की मूर्तियां अधिक हैं, जबकि यहां पीओपी की मूर्तियां अधिक बिकती हैं। मिट्टी और पीओपी मूर्तियों में अंतर की पुष्टि केवल मूर्तिकार कर सकते हैं, लेकिन वे किसी से बैर पालना नहीं चाहते। शहर में 1000 से अधिक दुकानें लगती हैं। 95 फीसदी दुकानाें में पीओपी मूर्तियां बिकती हैं। मनपा की एनडीएस टीम केवल चार-पांच मूर्तियां जब्त कर 5 या 10 हजार का जुर्माना ठोंकती है। इस जुर्माने के बाद दुकानदार धड़ल्ले से सैकड़ों की संख्या में पीआेपी मूर्तियां बेचता है। ऐसे हालातों में प्रतिबंध लग पाना मुश्किल दिखाई दे रहा है।

Created On :   7 July 2025 7:32 PM IST

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