Nagpur News: पारंपरिक वारकरी वेशभूषा में निकली दिंडी, ढ़ाई हजार से अधिक विद्यार्थी शामिल

पारंपरिक वारकरी वेशभूषा में निकली दिंडी, ढ़ाई हजार से अधिक विद्यार्थी शामिल
  • पंढरपुर साकार, गूंजा हरि नाम
  • पालकी की पूजा, फूलों की वर्षा

Nagpur News. शंकर नगर चौक का नजारा शनिवार सुबह 9 बजे कुछ अलग ही दिखाई दे रहा था। आमतौर पर वाहनों की आवाज से गूंजता यह इलाका हरिनाम के जयघोष से गूंज रहा था। पारंपरिक वारकरी वेशभूषा में सजे 2500 विद्यार्थियों की मौजूदगी ने मानो नागपुर में पंढरपुर का ही एहसास करा दिया।

परंपरा से नई पीढ़ी का परिचय

महाराष्ट्र की वारकरी परंपरा और संत तुकाराम महाराज व संत ज्ञानेश्वर महाराज के महान कार्यों से विद्यार्थियों को अवगत कराने के उद्देश्य से इस "स्कूल वारकरी दिंडी' का आयोजन किया गया। आयोजन में जिला परिषद नागपुर के शिक्षा विभाग (माध्यमिक), नूतन भारत विद्यालय एंड जूनियर कॉलेज तथा मराठी ज्ञान संवर्धन प्रतिष्ठान की सहभागिता रही। दिंडी में नागपुर के विभिन्न स्कूलों के लगभग 2500 विद्यार्थी पारंपरिक वारकरी वेशभूषा में शामिल हुए।

पालकी की पूजा, फूलों की वर्षा

कार्यक्रम के अध्यक्ष मुधोजी राजे भोसले, प्रदीप दाते तथा अन्य मान्यवरों ने विट्ठल-रुक्मिणी की पालकी व संतों की प्रतिमाओं की पूजा कर हरी झंडी दिखाकर दिंडी की शुरुआत की। रंगोली से सजी सड़कों पर चलती इस दिंडी में "विट्ठल विट्ठल हरिओम विट्ठल' की धुन पर विद्यार्थी लेझिम करते दिखे, तो कुछ बच्चे रंग-बिरंगे गुब्बारे उछालते नजर आए। रास्ते भर पालकी का पूजन हुआ और जगह-जगह फूलों की वर्षा की गई।

आरती और महाप्रसाद

शंकर नगर से बाजाज नगर तक निकली दिंडी आखिर में ज्ञानेश्वर मंदिर पहुंची, जहां संत ज्ञानेश्वर की प्रतिमा का पूजन व आरती की गई। इसके बाद नूतन भारत विद्यालय में कार्यक्रम आयोजित कर सभी सहभागी विद्यालयों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए और महाप्रसाद बांटा गया। इस आयोजन में लगभग 300 शिक्षक और प्राचार्य भी सहभागी हुए।

23 स्कूलों की सहभागिता

वारकरी डिंडी में नूतन भारत हाई स्कूल एंड जूनियर कॉलेज, महाराष्ट्र अध्ययन मंदिर, सेवा सदन हाई स्कूल, बाबा नानक हाई स्कूल, बालाजी हाई स्कूल, पंडित बच्छराज व्यास स्कूल, हडस हाई स्कूल, धरमपेठ स्कूल, लक्ष्मी बाई वानखेड़े हाई स्कूल, उमाटे हाई स्कूल, मुंडले स्कूल समेत कुल 23 स्कूलों ने भाग लिया। इस अनोखी पहल ने नई पीढ़ी को न सिर्फ संत परंपरा से जोड़ा, बल्कि मराठी संस्कृति और हरिनाम की शक्ति का अनुभव भी कराया।

Created On :   6 July 2025 7:24 PM IST

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