भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे संत तुकाराम जी, जानें उनके बारे में

Main pillars of Bhakti movement were Sant Tukaram ji, learn more
भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे संत तुकाराम जी, जानें उनके बारे में
भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे संत तुकाराम जी, जानें उनके बारे में

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। संत तुकाराम जी महाराज महाराष्ट्र के एक महान संत और कवि थे। वे तत्कालीन भारत में चले रहे "भक्ति आंदोलन" के एक प्रमुख स्तंभ थे। उन्हें तुकोबा भी कहा जाता है। 22 मार्च 2019 को संत तुकाराम महाराज की जयंती है। संत तुकाराम जी को चैतन्य नामक साधु ने "रामकृष्ण हरि" मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया था। इसके बाद इन्होंने 17 वर्ष संसार को समान रूप से उपदेश देने में व्यतीत किए। 

संत तुकाराम के मुख से समय-समय पर सहज रूप से परिस्फुटित होने वाली अभंग वाणी के अतिरिक्त इनकी अन्य कोई विशेष साहित्यिक कृति उपलब्ध नहीं है। तुकाराम ने अपनी साधक अवस्था में संत ज्ञानेश्वर और नामदेव, इन पूर्वकालीन संतों के ग्रंथों का गहराई तथा श्रद्धा से अध्ययन किया था। इन तीनों संत कवियों के साहित्य में एक ही आध्यात्म सूत्र पिरोया हुआ है।

जीवन परिचय -
तुकाराम का जन्म महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के अंतर्गत "देहू" नामक ग्राम में शाके-1520 यानि सन्-1598 में हुआ था। इनके पिता का नाम "बोल्होबा" और माता का नाम "कनकाई" था। पूर्व के आठवें पुरुष विश्वंभर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही थी। इनके कुल के सभी लोग "पंढरपुर" की यात्रा (वारी) के लिए नियमित रूप से जाते थे।

सुखों से विरक्ति -
संत तुकाराम सांसारिक सुखों से विरक्त होते जा रहे थे। संत तुकाराम का मन विट्ठल के भजन गाने में लगता था। तुकाराम इतने ध्यान मग्न रहते थे कि एक बार किसी का सामान बैलगाड़ी में लाद कर पहुंचाने जा रहे थे। पहुंचने पर देखा कि गाड़ी में रखी बोरियां रास्ते में ही गायब हो गई हैं। इसी प्रकार धन वसूल करके वापस लौटते समय एक गरीब ब्राह्मण की करुण कथा सुनकर सारा रुपया उसे ही दे दिया।

विपत्तियां –
देहू ग्राम के महाजन होने के कारण तुकाराम के कुटुम्ब को प्रतिष्ठित माना जाता था। इनकी बाल्यावस्था माता "कनकाई" व पिता "बहेबा" की देखरेख में अत्यंत दुलार के साथ व्यतीत हुई थी, किंतु जब ये प्राय: 18 वर्ष के थे, तभी इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। इसी समय देश में हुए भीषण अकाल के कारण इनकी प्रथम पत्नी व छोटे बालक की भूख के कारण तड़पते हुए मृत्यु हो गई। परिवार के चार सदस्यों का बिछोह सहना पड़ा। 

तुकाराम जी ने सब्र रखा। वे हिम्मत नहीं हारे। उदासीनता, निराशा के बाद भी 20 वर्ष की अवस्था में सफलता से घर-गृहस्थी करने का प्रयास करने लगे। जब महाभयंकर अकाल समय था 1629 ईस्वी में देरी से बरसात हुई और बरसात हुई तो अतिवृष्टि में फसल बह गई। सन् 1631 ईस्वी में प्राकृतिक आपत्तियां चरम सीमा पार कर गईं। भीषण अकाल की चपेट में तुकाराम जी का कारोबार, गृहस्थी समूल नष्ट हो गया।  ऐसे में प्रथम पत्नी "रखमाबाई" तथा इकलौता बेटा "संतोबा" काल के ग्रास बने। तुकाराम जी कठोर हृदय के नहीं थे वे बहुत भावुक मन के थे और फिर पत्नी की मृत्यु के बाद वे घर त्यागकर तीर्थयात्रा के लिए निकल गए फिर ग्रहस्थ जीवन में नही आए। अपना दुःख, दुर्दशा भूलकर वे अकाल पीड़ितों की सेवा,सहायता और परमार्थ कार्य में ही जुट गए।

Created On :   14 March 2019 9:38 AM GMT

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