भास्कर एक्सक्यूलिसिव: बाड़मेर की सातों विधानसभा सीटों पर होता है जातीय मुकाबला

बाड़मेर की सातों विधानसभा सीटों पर होता है जातीय मुकाबला
  • राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023
  • बाड़मेर, बायतु,चौहटन,गुड़मालानी,पचपदरा,शिव,सिवाना विधानसभा सीट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बाड़मेर जिले में सात विधानसभा सीट आती है, बाड़मेर, बायतु,चौहटन,गुड़मालानी,पचपदरा,शिव,सिवाना विधानसभा सीट शामिल है। राजस्थान के बड़े जिलों में बाड़मेर की गिनती की जाती है,यहां थार रेगिस्तान का हिस्सा भी पड़ता है। बाड़मेर के उत्तर में जैसलमेर,दक्षिण में जालोर,पूर्वी सीमा पर जोधपुर और पाली ,जिले की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान के बॉर्डर को छूती है। बाड़मेर के संस्थापक परमार शासक बहाड़ राव थे। जिन्हें बाड़ राव ,जूना बाड़मेर भी कहा जाता था। 12 वीं शताब्दी में इसे मल्लानी क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। वर्तमान बाड़मेर शहर की स्थापना 1552 में महान योद्धा रावत भीमा ने की थी। बाड़मेर शुरू से ही ऊँट व्यापार मार्ग बना रहा है, इसी कारण शिल्प क्षेत्र में समृद्ध है। यहाँ लकड़ी की नक़्काशी का फर्नीचर, मिट्टी के पात्र, कपड़ों पर काँच की कढ़ाई का काम, और ’अजरक प्रिन्ट’ अधिक देखने को मिलती है। तथा पूरे भारत में यह कला प्रसिद्ध है।

बाड़मेर विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस के मेवाराम जैन

2013 में कांग्रेस के मेवाराम जैन

2008 में कांग्रेस के मेवाराम जैन

2003 में बीजेपी से तागाराम चौधरी

1998 में कांग्रेस से वृद्धि जैन

बाड़मेर विधानसभा सीट सामान्य सीट है, यहां अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या 15 फीसदी, जबकि एसटी वोटर्स की संख्या पांच फीसदी है। कुछ इलाकों में जाटों और मुस्लिमों का प्रभाव है। 2018 में यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला था। 2018 में कांग्रेस के मेवाराम जैन ने तीसरी बार जीत दर्ज की थी। इसलिए बाड़मेर को कांग्रेस का गढ़ माने जाने लगा।

बायतु विधानसभा सीट

2008 में कांग्रेस के कर्नल सोनाराम

2013 में बीजेपी से कैलाश चौधरी

2018 में कांग्रेस के हरीश चौधरी

2008 के परिसीमन के बाद बायतु विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी।अब तक दो बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी ने यहां से जीत दर्ज की है. यहां बीजेपी कांग्रेस के साथ साथ बीएसपी और हनुमान बेलीवाल की आरएलपी भी चुनाव में प्रत्याशी उतारकर मुकाबले को रोचक और चतुष्कोणीय बना देती है। यह सीट रोचक इसलिए भी है क्योंकि यहां से 2008 में विधानसभा चुनाव जीतने वाले कर्नल सोनाराम चौधरी 2014 के लोकसभा चुनाव में सांसद बने एवं 2013 के विधानसभा चुनाव जीतने वाले कैलाश चौधरी 2019 में सांसद बने , तीन बार इस विधानसभा सीट पर चुनाव हुए कोई भी दोबारा नहीं जीत पाया।

यहां जातियों को मिला जिला रूप देखने को मिलता है, लेकिन सबसे अधिक दबदबा जाटों का देखने को मिलता है। अभी तक जाट चेहरे की ही जीत हुई है, जाट समुदाय के मतदाता है चुनाव में हार जीत का फैसला करते है। बायतू में करीब 80 हजार जाट,35 हजार के करीब एससी और एसटी, 20 हजार राजपूत और 25 हजार के करीब मुस्लिम मतदाता है। यहां पेयजल संकट अहम चुनावी मुद्दा रहता है। पेयजल, स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षण संस्थानों की यहां कमी है। सरकारी कॉलेज के अलावा में युवाओं को उच्च शिक्षा छोड़नी पड़ती है।

चौहटन विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस के पदमाराम मेघवाल

2013 में बीजेपी के तरूण राय कागा

2008 में कांग्रेस के पदमाराम मेघवाल

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित चौहटन विधानसभा सीट का इतिहास भी काफी दिलचस्प है। 2008 में ये सीट एससी के लिए आरक्षित हुई थी। चौहटन विधानसभा सीट का ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तान सीमा से सटा हुआ है। विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा हुआ है, यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इस क्षेत्र में मुस्लिम, जाट, बिश्नोई एवं एससी एसटी के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं

गुड़मालानी विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से हेमाराम चौधरी

2013 में बीजेपी से लादूराम बिश्नोई

2008 में कांग्रेस से हेमाराम चौधरी

2003 में कांग्रेस से हेमाराम चौधरी

1998 में कांग्रेस से हेमाराम चौधरी

पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित गुडमालानी विधानसभा क्षेत्र कोमालाणी के नाम से प्रसिद्ध है। खनिज तेल के नाम से यह पूरे भारत में मशहूर है। भारत का 30 फीसदी तेल गुड़मालानी से निकाला जाता है। सीट को कांग्रेस की परंपरागत सीट माना जाता है। जाट बाहुल्य इस सीट पर जाट समुदाय का दबदबा है साथ ही अधिकतर यहां जाट चेहरे की ही जीत होती है। जाटों के बाद बिश्नोई वोटर्स की तादात है। एक बार बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर बिश्नोई समाज का विधायक बन चुका है।1980,1985,1998,2003,2008,2018 में हेमाराम चौधरी यहां से चुनाव जीत चुके है।

पचपदरा विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से मदन प्रजापत

2013 में बीजेपी से अमराराम

2008 में कांग्रेस से मदन प्रजापत

2003 में बीजेपी से अमराराम

सामान्य सीट पचपदरा विधानसभा नव गठित जिला बालोतरा के अंतर्गत आती है। 40 साल के लंबे संघर्ष के बाद गहलोत सरकार ने बालोतरा को जिला घोषित किया है। विधानसभा का अधिकाश हिंसा ग्रामीण है। बालोतर के तिलवाड़ा में राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। बालोतरा में बड़ी मात्रा में कपड़े की फैक्ट्री के चलते इसे पोपलीन नगरी भी कहा जाता है।

यहां करीब 15 फीसदी एससी और 10 फीसदी एसटी मतदाता है। वहीं करीब 4 फीसदी मुस्लिम मतदाता है। इस सीट पर 5 बार भाजपा और 6 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है, दो बार निर्दलीय ने इस सीट पर जीत हासिल की है!

शिव विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस के अमीन खान

2013 में बीजेपी के मानवेंद्र सिंह

2008 में कांग्रेस के आमिर खान

1980 के बाद यहां से कोई भी पार्टी दो बार चुनाव नहीं जीत सकी है। सीट बॉर्डर से सटी हुई है, यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी के मतदाता है उसके बाद एससी और राजपूत वोटर्स का नंबर आता है। ओबीसी , जाट ,प्रजापत,चारण और पुरोहित मतदाताओं का दबदबा है। कांग्रेस के अमीन खान यहां के मौजूदा विधायक है।

सिवाना विधानसभा सीट

2018 में बीजेपी से हमीर सिंह भायल

2013 में बीजेपी से हमीर सिंह भायल

2008 में बीजेपी से कान सिंह

2003 में निर्दलीय टेकमचंद कांत

अनारक्षित सिवाना विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है, सिवाना कोबीजेपी का अभेद किला माना जाता है। सिवाना में बीएसपी के उम्मीदवार उतर जाने से चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता है। बीएसपी बीजेपी और कांग्रेस के मुकाबले में मुसीबत खड़ी कर देती है। 25 सालों तक ये सीट एससी के लिए आरक्षित रही थी । यहां 18 फीसदी के करीब एससी मतदाता है। जबक् 9 फीसदी एससी वोटर्स है। 2008 के परिसीमन के बाद सीट अनारक्षित हो गई थी। रोजगार की बात की जाए तो ज्यादातर लोग यहां खेती किसानी पर निर्भर है। विधानसभा में पेयजल की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। पाली फैक्ट्री का दूषित पानी लूनी नदी को दूषित कर रहा है। दूषित पानी से भूमि भी बंजर हो रही है। शिक्षा , सड़क,और स्वास्थ्य सुविधाओं की यहां बदहाल स्थिति है।

Created On :   22 Oct 2023 11:34 AM GMT

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