बीजेपी और कांग्रेस के बढ़ते दबदबे से छोटी पार्टियों को हो रहा नुकसान, इन प्रदेशों में हाशिए पर क्षेत्रीय दल!

बीजेपी और कांग्रेस के बढ़ते दबदबे से छोटी पार्टियों को हो रहा नुकसान, इन प्रदेशों में हाशिए पर क्षेत्रीय दल!
  • हाशिए पर क्षेत्रीय दल!
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र और राज्य में जिस हिसाब से बीजेपी और कांग्रेस का दबदबा बढ़ता जा रहा है। इसे छोटी पार्टियों के लिए खतरे की घंटी के तौर पर देखा जा रहा है। 2024 का लोकसभा चुनाव छोटी पार्टियों के लिए अस्तित्व को बचाने की लड़ाई है। कभी यही छोटे दल केंद्र और राज्य में किंगमेकर की भूमिका निभाते थे। लेकिन आज इनका दबदबा अपने ही क्षेत्र कम होता जा रहा है। इसके पीछे की बड़ी वजह कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर है।

2014 लोकसभा चुनाव के बाद से ही छोटी पार्टियां का दखल केंद्र और राज्यों से धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। जिन राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस का स्ट्राइक रेट हाई है, वहां पर तो छोटी पार्टियों का वजूद भी खतरे में है। हाल ही में संपन्न हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव की ही बात करें तो राज्य में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर हुई। जिसका सीधा नुकसान जेडीएस को हुआ। चुनाव आयोग के मुताबिक, बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होने से राष्ट्रीय स्तर की 6 और राज्य स्तर की 55 पार्टियां प्रभावित हुई हैं।

छोटी पार्टियों का अस्तित्व खतरे में

1970 के दशक में छोटी पार्टियों का उदय तेजी से हुआ। इस समय कांग्रेस टूटी और उत्कल कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एआईएनआर कांग्रेस और वाईएसआर कांग्रेस जैसी छोटी पार्टियां बनी। 1990 आते-आते इन दलों का दबदबा बढ़ने लगा। खास बात यह है कि उस वक्त छोटी पार्टियां करीब 20 राज्यों की राजनीति को प्रभावित करती थी। इनमें बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश के अलावा कर्नाटक जैसे बड़े राज्य शामिल थे।

हालांकि अभी भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई के बावजूद भी देश के कई राज्यों में छोटी पार्टियों दबदबा बरकरार है। इस समय देश के पांच राज्यों में छोटी पार्टी सरकार में है। साथ ही 4 राज्यों में छोटी पार्टियां गठबंधन के साथ किंग या किंगमेकर के रूप में अपने अस्तित्व को बरकरार रखे हुए हैं। महाराष्ट्र में छोटी पार्टी सरकार के ड्राइविंग सीट पर है। वहीं बिहार और झारखंड में राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों का दबदबा बहुत ही कम है। हरियाणा में बीजेपी जेजेपी के साथ सरकार बनाए हुए हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में छोटी पार्टियों का कुल वोट परसेंटेज 37.8 था, जो कि बीजेपी के 37.36 फीसदी से ज्यादा है। इसके अलावा 2019 के आम चुनाव में ग्रामीण इलाकों की 353 सीटों में से छोटी पार्टियों ने 120 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि शहरी क्षेत्र में छोटी पार्टियों का परफॉर्मेंस बेहतर रहा है। इन सभी के अलावा वोट प्रतिशत के आधार पर भी देखें तो इन क्षेत्रों में तृणमूल और वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस जिन राज्यों में मजबूत स्थिति में आई वहां नुकसान सीधे तौर पर छोटी पार्टियों को हुआ है। इसका उदाहरण असम, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र है। आइए समझते हैं कि इन राज्यों में कैसे खत्म हो रहा है छोटी पार्टियों का दबदबा।

उत्तर प्रदेश- बीजेपी से किसे है खतरा

लगभग 30 वर्ष तक यूपी में राज करने वाली बीएसपी और सपा अब राज्य में अपनी अस्तित्व को खोती जा रही है। इसके पीछे की बड़ी वजह यूपी में लगातार बीजेपी का सियासी उभार है। हालांकि यहां पर सपा की सीटों में ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिला है, लेकिन पिछले 15 सालों में मायावती की पार्टी एक सीट पर पहुंच गई है। एक समय था जब सपा और बीएसपी अकेले दम पर राज्य में अपनी सरकार बनाती थी। लेकिन राज्य में बीजेपी की लहर के सामने इन दोनों पार्टियों का अस्तित्व फीका पड़ने लगा है।

2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने राज्य की सियासत में वापसी जरूर कर ली है। लेकिन राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी के सामने सपा अपने प्रदर्शन को आगे भी बरकरार रख पाएंगी, यह कहना अभी असंभव है। इन दोनों पार्टियों का वोट बैंक लगातार बीजेपी में शिफ्ट होता जा रहा है। जिसका तोड़ इन दोनों पार्टियों के पास नहीं है।

कर्नाटक में किंगमेकर का अस्तित्व हुआ खत्म

जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) 2004 से ही कर्नाटक की सत्ता में किंगमेकर की भूमिका में रही है। इस बार भी विधानसभा चुनाव से पहले जेडीएस किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रही थी। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस की एक के बाद एक रैली ने जेडीएस के इस सपने को चकनाचूर कर दिया। इस बार के चुनाव में जेडीएस के गढ़ में बीजेपी और कांग्रेस ने इस तरह से उसके जनाधार में सेंध मारी की है कि पार्टी को इससे उभरने में वर्षों लग जाएगा। चुनाव हारने के बाद से ही जेडीएस में बैठकों का दौर जारी है। हालांकि जेडीएस के क्षेत्र से ज्यादा फायदा कांग्रेस को हुआ है। बता दें कि जेडीएस के क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई से पार्टी के संस्थापक एचडी देवेगौड़ा के पौत्र निखिल कुमारस्वामी भी अछूते नहीं रहे और उन्हें भी अपनी सीट से हाथ धोना पड़ा।

महाराष्ट्र में उद्धव की शामत

शिवसेना के जरिए महाराष्ट्र की सियासत में एंटर करने वाली बीजेपी उसी के लिए दुश्मन साबित हुई। साल 2014 के चुनाव के बाद से ही बीजेपी का प्रभुत्व महाराष्ट्र में बढ़ने लगा। एक समय था जब महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना एक साथ चुनाव लड़ा करती थी। लेकिन 2014 के चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। तब बीजेपी ने शिवसेना के वोट बैंक में सेंधमारी की। रिजल्ट आए तो राज्य में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। तब बीजेपी ने शिवसेना को अपना जूनियर पार्टनर बना लिया।

लेकिन 2019 के बाद शिवसेना और बीजेपी अलग-अलग हो गए। इस बार भी बीजेपी पूर्ण बहुमत हासिल करने में नाकाम रही। 2019 के विस में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई। लेकिन दो साल बाद ही शिवसेना में आंतरिक कलक ही वजह से राज्य में उसकी सरकार गिर गई। लेकिन इस बार पार्टी को ऐतिहासिक झटका लगा और पार्टी के हाथों से पार्टी की कमान (चिन्ह) फिसल गई। अब राज्य में एकनाथ शिंदे की सेना के साथ बीजेपी गठबंधन का हिस्सा है।

असम में बैकफुट पर असम गण परिषद पार्टी

एक समय असम में अपने दम सरकार बनाने वाली पार्टी 'असम गण परिषद पार्टी' आज बीजेपी के साथ छोटे भाई की भूमिका में है। इसके पीछे की बड़ी वजह बीजेपी और कांग्रेस की राज्य में सक्रियता है। जिसके चलते असम गण परिषद पार्टी को नुकसान का सामना करना पड़ा है।

Created On :   9 Jun 2023 1:34 PM GMT

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