लोकसभा चुनाव 2024: जानिए महाराष्ट्र की भंडारा-गोंदिया सीट का चुनावी इतिहास, जहां कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा का रहा है कब्जा, एनसीपी भी दे चुकी है मात

जानिए महाराष्ट्र की  भंडारा-गोंदिया सीट का चुनावी इतिहास, जहां कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा का रहा है कब्जा, एनसीपी भी दे चुकी है मात
  • 2008 में परिसीमन के बाद नए रुप में आई भंडारा-गोंदिया सीट
  • परिसीमन के ठीक बाद कांग्रेस ने चुनाव जीता
  • वर्तमान में बीजेपी का सांसद

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में पहले चरण में 5 सीटों पर वोटिंग होनी है। इसमें भंडारा-गोंदिया सीट का नाम भी शामिल है। 2008 से पहले ये भंडारा लोकसभा सीट ही हुआ करती थी। 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद साल 2008 में भंडारा-गोंदिया सीट अस्तित्व में आई। परिसीमन से पहले यहां बीजेपी का कब्जा था, परिसीमन के ठीक बाद कांग्रेस ने चुनाव जीता, लेकिन मौजूदा समय में यहां बीजेपी का सांसद है।

1954 के उप-चुनाव और इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस ने 70 के दशक तक यहां राज किया है। इस दौरान 1957 से 1971 तक भंडारा सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। 1977 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस यहां फिर कभी इस तरह राज नहीं कर सकी। 1980 में भाजपा का गठन हो गया था। भाजपा के आने के बाद कांग्रेस लगातार चुनाव नहीं जीत सकी। आज हम आपको बताएंगे भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास के बारे में।

पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे?

साल 2019 के चुनाव में भाजपा ने सुनील बाबूराव मेंढे को भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा था। उनके सामने राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) पार्टी ने पंचबुद्धे नाना जयराम को उतारा था। चुनावी नतीजों में भाजपा ने कांग्रेस को 1 लाख 97 हजार 394 वोटों से शिकस्त दी थी। इस दौरान भाजपा प्रत्याशी सुनील बाबूराव मेंढ़े को कुल 6 लाख 50 हजार 243 वोट मिले। वहीं, एनसीपी को 4 लाख 52 हजार 849 वोट मिले।

भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास

आजादी के बाद साल 1951 में देश के पहले आम चुनाव हुए। इसी दौरान भंडारा सीट पर भी चुनाव हुए। पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने तुलाराम सकारे और चतुर्भुज विट्ठलदास को भंडारा सीट पर उतारा था। वे दोनों ही इस सीट से सांसद के तौर पर निर्वाचित हुए। 1954 में उप-चुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस को हार मिली और भंडारा सीट प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पास चली गई। हांलाकि, 1955 में आम चुनाव हुए तो अनुसुईया बाई बोरकर सांसद निर्वाचित हुईं। साल 1957 से 1971 तक यहां पर कांग्रेस को जीत मिलती रही। इस दौरान करीब चौदह सालों तक यह सीट कांग्रेस का गढ़ बनी रही।

आपातकाल के बाद जीती जनता पार्टी

आपातकाल हटने के बाद साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए। आपातकाल के दुष्प्रभाव के चलते कांग्रेस को भंडारा सीट गंवानी पड़ी और जनता पार्टी को यहां पहली जीत मिली। जनता पार्टी से लक्ष्मणराव मानकर सांसद बने। हांलाकि, तीन साल बाद 1980 में हुए आम चुनाव में यह सीट एक बार फिर कांग्रेस के कब्जे में चली गई। इस बार केशवराव पारधी सांसद बने। साल 1989 के आम चुनाव में भाजपा की एंट्री हुई और खुशाल बोपचे सांसद निर्वाचित हुए। लेकिन दो साल बाद ही 1991 में चुनाव हुए कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट छीन ली। इस बार प्रफुल्ल पटेल सांसद बने। प्रफुल्ल पटेल 1991 से 1998 तक यहां से कांग्रेस के सांसद रहे। 1999 में भाजपा ने वापसी की और चुन्नीलाल ठाकुर सांसद निर्वाचित हुए। भाजपा ने अपने प्रदर्शन को दोहराते हुए 2004 का चुनाव में भी जीत बरकरार रखी। इस बार शिशुपाल पटेल सांसद बने।

2008 में परिसीमन के बाद बनी भंडारा-गोंदिया सीट

साल 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद साल 2008 में भंडारा-गोंदिया संसदीय सीट अपने वर्तमान अस्तित्व में आई। 2008 में इस संसदीय क्षेत्र को बनाने के लिए दो जिलों के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया। इसके अनुसार तीन-तीन विधानसभा क्षेत्र भंडारा और गोंदिया जिले में शामिल किए गए। इस सीट के गठन के बाद साल 2009 में आम चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई। कांग्रेस ने अपने पुराने किले को फिर से अपने कब्जे में ले लिया और इसी के साथ प्रफुल्ल पटेल की भी वापसी हुई।

मोदी लहर में हारी कांग्रेस, एनसीपी ने भी चखा जीत का स्वाद

साल 2014 के आम चुनाव के दौरान महाराष्ट्र समेत देश भर में मोदी लहर चल रही थी। चुनावी नतीजों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और भंडारा-गोंदिया सीट से भाजपा के प्रत्याशी नाना पटोले विजयी हुए। हांलाकि, बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। जिसके बाद साल 2018 में उप-चुनाव हुए। उप-चुनाव में यह सीट न तो कांग्रेस और न ही भाजपा को मिली। इस बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को पहली बार जीत मिली और मधुकर कुकड़े सांसद निर्वाचित हुए। हांलाकि, अगले ही साल 2019 के चुनाव में यह सीट एक बार फिर भाजपा के पास चली गई। इस बार सुनील बाबूराव मेंढ़े सांसद बने।

2009 में निर्दलीय भी रहे भाजपा से आगे

दिलचस्प बात यह है कि साल 2009 के आम चुनाव में नाना पटोले निर्दलीय प्रत्याशी होने बाद भी दूसरे स्थान पर थे। जबकि भाजपा प्रत्याशी शिशुपाल पटेल तीसरे स्थान पर रहे थे। बाद में नाना पटोले को इसका फायदा भी हुआ। जब भाजपा ने भंडारा-गोंदिया क्षेत्र में उनकी मजबूत पकड़ को देखते हुए उन्हें 2014 के चुनाव का टिकट दे दिया। नान पटोले चुनाव जीतने में सफल भी रहे। हांलाकि, बाद में पार्टी आलाकमान से मतभेद के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

इस बार ये नेता चुनावी मैदान में

अबके लोकसभा चुनाव में भंडारा-गोंदिया सीट से भाजपा ने अपने सिटिंग कैंडीडेट सुनील बाबूराव मेंढ़े पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने डॉ प्रशांत पटोले को टिकट दिया है।

Created On :   30 March 2024 9:21 AM GMT

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