उत्तरप्रदेश: मायावती की सक्रियता बसपा को दिलाएगी मजबूती, कई राजनीतिक पार्टियों का बिगड़ेगा खेल

- बीएसपी के पीडीएम में व्यापारी वर्ग पर विशेष फोकस
- बसपा छोड़ चुके दिग्गज नेताओं की घर वापसी
- कांशीराम परिनिर्वाण दिवस 9 अक्टूबर को लखनऊ में बीएसपी की बड़ी रैली
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश के साथ देश के कई राज्यों में मायावती की सक्रियता से बीएसपी का दबदबा फिर बढ़ने लगा है। जो अब सियासी जमीन पर भी देखने को मिल रहा है। बसपा के पुराने दिग्गजों की एक बार फिर पार्टी में वापसी होने लगी है। बीएसपी अपने खोए हुए सियासी जनाधार को वापस लाने में लगी हुई है। हालांकि आपको बता दें बसपा का जनाधार भले ही कम हुआ है, लेकिन अभी भी वो एक राष्ट्रीय पार्टी है। पूरे देश में मौजूदा समय में 6 राजनीतिक पार्टियां है, जिनमें चार पार्टियां कांग्रेस, टीएमसी, आप और सीपीआईएम विपक्षी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। केवल एक मात्र बीएसपी ही अपने दम पर देशभर में एकला चलो की नीति अपनाकर अपने बलबूते पर चुनाव लड़ती है, और आगामी समय में बीएसपी ने बिहार विधानसभा चुनाव में भी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में राष्ट्रीय पार्टियों के लिहाज से तीन गुट दिखाई दे रहे है। एक बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए, दूसरा कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया वहीं तीसरा बीएसपी। बीएसपी गोपनीय और सिस्टेमिक तरीके से अपनी रणनीति को अंजाम दे रही है। आगामी पंचायत चुनाव में बीएसपी पिछले चुनावों में मिली हार के बाद अपनी राजनीतिक ताकत को पुनर्जीवित करने के अवसर के रूप में देख रही है।
9 अक्टूबर को बसपा संस्थापक कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस
आगामी महीने की 9 अक्टूबर को बसपा अपने संस्थापक कांशीराम की परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में बड़ी रैली करने जा रही है, जो सियासी रूप से ये दिखाने की कोशिश है कि बीएसपी कमजोर नहीं है। बीएसपी चीफ मायावती अपने समर्थकों को एकजुट कर अपनी सियासी ताकत दिखाने की योजना बना चुकी हैं। जिसे बसपा के 'मिशन 2027' का औपचारिक आगाज़ माना जा रहा है। क्योंकि कई मौकों पर बीएसपी नेता चुनावी प्रणाली यानि ईवीएम पर सवाल उठा चुके है। इस रैली को लेकर बसपा का पुराने नारे फिर से सियासी गलियारों में चलने लगा है, रैली नहीं रेला है, बसपा का मेला है।
आपको बता दें बसपा के संस्थापक कांशीराम ने 80 के दशक में दलित, पिछड़ी जातियों को जोड़कर बहुजन समाज की राजनीति खड़ी की थी। बसपा की इस राजनीति में समय के साथ साथ ब्राह्मण और अन्य वर्ग भी जुड़ते गए। जिससे बसपा का मकसद बहुजन हिताय बहुजन सुखाय से सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय हो गया। करीब एक दशक से अपने बुरे दौर से गुजर रही बीएसपी अपने संगठन को मजबूती देने के साथ साथ फिर से अपनी बदली हुई रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए स्थानीय स्तर पर नेताओं को सक्रिय करने और नए चेहरों को मौका देने का फैसला किया है। हाल ही में मायावती ने कई कमेटियों का गठन कर समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को पार्टी के साथ जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है। बसपा के नेता गांव गांव , बूथ लेवल पर जाकर मीटिंग कर रहे हैं।
व्यापारी वर्ग को बसपा से उम्मीद
यूपी के साथ पूरे देश में दलित ओबीसी में राजनीतिक चेतना जगाने वाली बीएसपी दलित ओबीसी, दलित ब्राह्मण,दलित मुस्लिम और दलित, पिछड़े और मुस्लमान समीकरण से चार बार यूपी की सत्ता पर काबिज हो चुकी है। 2007 में बीएसपी के दलित ब्राह्णण सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले ने सबको को चौंका दिया था। अब बीएसपी फिर से अपने मिशन में जुटी हुई है। बीएसपी अब राजनीति में पिछड़े व्यापारी वर्ग यानि बनिया वर्ग भी फोकस करने लगी है। क्योंकि जिस बीजेपी को बनिया ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता था, उसमें ब्राह्मणों को खूब तवज्जों मिला, लेकिन बनियों को नहीं। यहीं मुख्य वजह है कि बीएसपी को दिल्ली में व्यापारी वर्ग से रेखा गुप्ता को सीएम बनाना पड़ा। व्यापारी वर्ग के बसपा से जुड़ने पर शहरी राजनीति में बीएसपी को मजबूती मिलेगी, साथ ही तमाम सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टियों को इससे सबक मिलेगा। धोखा खा चुका व्यापारी वर्ग भी सियासी रूप से अब बसपा की ओर एक खास उम्मीद से देख रहा है।
बीएसपी भले ही आज कमजोर स्थित में है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि बीएसपी के मजबूत होने से कांग्रेस सत्ता से दूर होते चली गई और बीजेपी सत्ता की ओर बढ़ती गई। आज पूरे विपक्ष ने जिस आरक्षण और संविधान बचाने के नारे के साथ देश की सियासत में जो उबाल ला दिया है, इससे बीएसपी ने दूरी बनाए रखी है। आज जिस ईवीएम का रोना कांग्रेस रो रही है, वह ईवीएम तो कांग्रेस की देन है। भरे सदन में बीएसपी नेता ईवीएम का विरोध कर चुके है, तब तथाकथित विपक्ष के नेता खामोश बने हुए थे। जब ईवीएम सदन के रास्ते आई थी, तो जाएगी भी सदन के जरिए। बसपा के कई नेता कई मौकों पर ये कहते हुए सुनाई देते है कि सड़क पर विपक्ष का प्रदर्शन कहीं ना कहीं उसके मंशा पर सवाल खड़ा करती है।
Created On :   9 Sept 2025 5:00 PM IST