हिंदी थोपने पर बरसी: तमिलनाडु में डीएमके सांसद कनिमोझी ने भाषा नीति को लेकर केंद्र सरकार पर लगाया भेदभाव का आरोप

- तमिलों में कभी नहीं रहा वर्चस्व का भाव
- कनिमोझी ने अनुराग ठाकुर पर ली चुटकी
- तमिलनाडु में हिंदी थोपने की कोशिश नाकाम रही
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तमिलनाडु में डीएमके सांसद कनिमोझी ने केंद्र सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया है, कनिमोझी ने ये आरोप भाषाओं को लेकर लगाया है। उन्होंने भाषा नीति और हिंदी थोपने के प्रयासों को लेकर कड़ा बयान दिया। डीएमके नेता ने कहा कि तमिल भाषा न सिर्फ प्राचीन है, बल्कि आज भी जीवित और समृद्ध है, जबकि संस्कृत अब आम बोलचाल की भाषा नहीं रह गई है। इसके बावजूद केंद्र सरकार संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए बड़े पैमाने पर धन आवंटित करती है।
कनिमोझी ने तमिल समाज की ऐतिहासिक सोच पर जोर देते हुए कहा कि तमिलों ने कभी दूसरों पर अपना वर्चस्व नहीं जमाया। उन्होंने आगे कहा प्राचीन काल में जब तमिल योद्धा जंग जीतते थे, तो वे वहां के लोगों या उनकी संस्कृति को तबाह नहीं करते थे। तमिलों के बीच कभी भी वर्चस्व और दूसरों को दबाने की मानसिकता नहीं रही है।' डीएमके सांसद कनिमोझी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब देश में भाषाई पहचान और केंद्र की भाषा नीति को लेकर बहस तेज है। तमिलनाडु लंबे समय से हिंदी थोपने का विरोध करता रहा है, और यह मुद्दा राज्य की राजनीति में हमेशा संवेदनशील रहा है।
डीएमके सांसद कनिमोझी ने अनुराग ठाकुर पर चुटकी लेते हुए कहा कि अगर आज बच्चों से पूछा जाए कि चांद पर सबसे पहले कौन गया, तो वे नील आर्मस्ट्रॉन्ग का नाम बताएंगे, लेकिन कुछ उत्तरी नेता यह दावा कर सकते हैं कि सबसे पहले हमारी लोककथाओं की दादी या फिर हनुमान जी चांद पर गए थे। कनिमोझी ने कहा कि सौभाग्य से तमिलनाडु में ऐसे लोग सत्ता में नहीं हैं, इसलिए यहां शिक्षा और विचारधारा तथ्य और तर्क पर आधारित हैं।
डीएमके सांसद कनिमोझी ने चेताते हुए कहा कि अगर किसी राज्य में स्थानीय भाषा को नजरअंदाज कर हिंदी या किसी अन्य भाषा को बढ़ावा दिया गया, तो वहां की संस्कृति और परंपरा पर खतरा मंडराने लगता है।इस दौरान डीएमके नेता ने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां हिंदी के बढ़ते प्रभाव ने मराठी भाषा की अहमियत को कम कर दिया है। उन्होंने आगे कहा तमिलनाडु में ऐसी स्थिति कभी पैदा नहीं हुई, क्योंकि यहां के लोग हमेशा अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए खड़े हुए। जब भी तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की कोशिश हुई, तो पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। तमिलनाडु के लोगों के संघर्ष की वजह से ही आज तमिल भाषा, उसकी संस्कृति और परंपराएं सुरक्षित और जीवित हैं।
Created On :   15 Sept 2025 10:40 AM IST