नहीं हुआ करते थे बॉक्सिंग ग्लव्स खरीदने के पैसे, जीता भारत के लिए गोल्ड

Asian Games: story of Amit Panghal won gold for India in boxing
नहीं हुआ करते थे बॉक्सिंग ग्लव्स खरीदने के पैसे, जीता भारत के लिए गोल्ड
नहीं हुआ करते थे बॉक्सिंग ग्लव्स खरीदने के पैसे, जीता भारत के लिए गोल्ड
हाईलाइट
  • आर्थिक स्थिती के चलते अमित के बड़े भाई अजय पंघल ने बॉक्सिंग छोड़ दी थी।
  • बड़े भाई के कोच ने मुझे पंच लगाते देखा तो बॉक्सिंग में आगे बढ़ने को कहा।
  • बिना ग्लव्स के ही प्रेक्टिस कर लिया करते थे।

डिजिटल डेस्क, जकार्ता। 22 साल के भारतीय बॉक्सर अमित पंघाल ने एशियन गेम्स के 14वें दिन शनिवार को भारत के लिए गोल्ड मेडल हासिल किया। यह गोल्ड उन्होंने बॉक्सिंग की लाइट फ्लाईवेट (49 किग्रा) कैटेगरी में उज्बेकिस्तान के रियो ओलिंपिक चैम्पियन हसनबॉय दुस्मतोव को हराकर जीता। अमित ने हसनबॉय दुस्मतोव को गोल्डन मुकाबले में 3-2 से हराया था। मुकाबले पर जीत हासिल करने के बाद अमित ने बताया कि, अखिरी दिन केवल मेरा ही मुकाबला बचा हुआ था। भारत को बॉक्सिंग में एक भी गोल्ड मेडल नहीं मिला था। सब की उम्मीदें मुझसे थी, इसलिए यह मेरी अब तक की सबसे बड़ी जीत है। इस जीत के साथ अमित लाइट फ्लाईवेट कैटेगरी में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बॉक्सर बन गए हैं। 

कहा जाता है कि एक समय जब अमित के परिवार की आर्थिक स्थिती अच्छी नहीं थी। तब उनके पास बॉक्सिंग ग्लव्स खरीदने के पैसे भी नहीं होते थे। वे एक ही ग्लव्स से कई महीनों तक प्रेक्टिस करते थे। अगर ग्लव्स खराब हो जाता था। तो वे बिना ग्लव्स के ही प्रेक्टिस कर लिया करते थे। एक बॉक्सर के लिए सही डाइट बहुत जरूरी होती है। पर अजय को यह भी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हो पाती थी। 

दूसरे देशों में भी ट्रेनिंग करने का मौका मिलना चाहिए

लाइटवेट में पहला गोल्ड लाने पर अमित ने कहा, "लाइटवेट में हमेशा से ही मेडल कम ही आए हैं। इसके लिए हमारे पास खिलाड़ी भी कम हैं। हमारे खिलाड़ियों को दूसरे देशों में भी ट्रेनिंग करने का मौका मिलना चाहिए। मुझे एशियन चैम्पियनशिप के सेमीफाइनल और वर्ल्ड चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में हार मिली थी। वहां मेरे पर्फोरमेंस में कोई कमी नहीं थी बल्कि दोनों मुकाबलों में मैं बड़े खिलाड़ीयों से हारा था। हालांकि उस हार के बाद भी मुझे सीखने को ही मिला था।

हरियाणा के रोहतक जिले के मैना गांव में रहने वाले अमित के पिता, विजेंदर सिंह एक साधारण किसान हैं। जो अपनी एक एकड़ की जमीन पर ही गेहूं और बाजरे की खेती किया करते हैं। अमित के परिवार की आर्थिक स्थिती कभी बहुत अच्छी नहीं रही। इसके चलते अमित के बड़े भाई अजय पंघल ने बॉक्सिंग छोड़ दी थी। अब अमित के बड़े भाई अजय आज भारतीय सेना में हैं। 

परिवार की माली हालत खराब 

2011 तक हमारे परिवार की आर्थिक स्थिती अच्छी नहीं थी। हमें खेती में भी काफी नुकसान हुआ था जिसकी वजह से आमदनी ज्यादा नहीं हुआ करती थी। उस समय मैं  बॉक्सिंग किया करता था और मेरे कोच अनिल धांकर हुआ करते थे। मेरा सपना अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर बनने का था लेकिन पारिवारिक हालातों के चलते मुझे बॉक्सिंग छोड़नी पड़ी। मैं 2011 में आर्मी में नायब के पद पर भर्ती हो गया ताकी मेरा घर चल सके। आर्मी में रहते हुए मैंने यह सुनिश्चित किया कि अमित की बॉक्सिंग नहीं छूटनी चाहिए। क्योंकि मुझे भरोसा था कि जो काम मैं नहीं कर पाया वो मेरा छोटा भाई जरूर करेगा।  इन सभी चुनौतियों के बावजूद भी अमित ने अपनी जी-तोड़ मेहनत और बुलंद हौंसले के दम पर बड़े-बड़े बॉक्सर को मात देकर गोल्ड मेडल हासिल किए। कई बार तो अमित ने खाली पेट रहकर भी ट्रेनिंग की है और जीत हासिल की है। 

अमित भारतीय सेना में जेसीओ हैं और नायब सूबेदार के पद पर हैं। उन्होंने 2006 में बॉक्सिंग करना शुरू किया था। अमित के पिता विजेन्दर सिंह ने कहा, "हमारे परिवार ने ओलिंपिक मेडल के लिए काफी त्याग किया है। आज जो मेडल उसने पाया है उससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा लेकिन हम सभी का सपना है कि वह ओलिंपिक में गोल्ड हासिल कर देश का नाम ऊंचा करे। 

ओलिंपिक की तैयारी पर अमित ने कहा

मुझ पर उसका दबाव तो नहीं है लेकिन गोल्ड जीतने के बाद अब मुझसे देश की उम्मीदें बढ़ गई हैं। मेरा अगला लक्ष्य टोक्यो ओलिंपिक में गोल्ड मेडल लाना है। इसके लिए मेरी तैयारी एशियाड के साथ ही चल रही है। बॉक्सिंग को चुनने पर अमित ने कहा,  मैं अपने बड़े भाई के साथ खेलने जाता था। वहां कोच ने मुझे पंच लगाते देखा तो बॉक्सिंग में आगे बढ़ने को कहा। मैं रोजाना 10 घंटे तक अभ्यास करता हूं। डाइट, एक्सरसाइज और नींद सभी का टाइम फिक्स है। 

Created On :   2 Sep 2018 10:55 AM GMT

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