बागपत: खुदाई में मिले 1800 साल पुराने सिक्के, मटके के अंदर निकला खजाना
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। ऐसा कई बार हुआ होगा, जब खुदाई में प्राचीन और कीमती चीजें मिली होंगी। दरअसल, सदियों पहले भारत में बैंक नहीं हुआ करते थे, इसलिए पुराने समय में लोग कीमती चीजें जमीन में दफना दिया करते थे। ऐसा ही दफनाया हुआ खजाना एक बार फिर हाथ लगा है। उत्तर प्रदेश के बागपत के बिनोली थाना इलाके के खपराणा गांव में खुदाई के दौरान टीले से कुछ सिक्के मिले हैं। कहा जा रहा है कि ये सिक्के कुषाण काल के हैं और लगभग 18 सौ साल पुराने हैं। खुदाई कर रहे लोगों को जब कुछ सिक्के मिले तो उन्होंने इसकी सूचना शहजाद राय शौध संस्थान के संस्थापक व इतिहासकार अमित राय जैन को दी।
मौके पर पहुंचे राय ने जब अपने यंत्रों से खुदाई की तो वहां पर एक छोटे मटके के अंदर कुछ और तांबे के सिक्के मिले। कुषाणकाल के सिक्कों की सूचना पुरातत्व विभाग को भेज दी गई है। बता दें कि बागपत ऐतिहासिक दृष्टि से अहम है और यहां महाभारत और कुषाणकाल से जुड़ी कई चीजें मिल चुकी हैं। यहां पर आए दिन कोई न कोई सुबूत मिलते रहते हैं, जिनसे ये साबित होता है कि इसका संबंध महाभारत से रहा है। यहां पर महाभारत कालका लाक्षाग्रह आज भी मौजूद है जिसे पांडवों के लिए बनवाया गया था। पिछले ही दिनों यहां पर पुरातत्व विभाग की टीम को लड़ाई में इस्तेमाल किये गए रथ भी मिल थे। बागपत में ही खुदाई के दौरान टीम को कई चीजें मिलीं जिनमें रथ, चूल्हे, खिलौने और सामूहिक कब्रें शामिल थीं।
सिक्कों की खासियत
इन मुद्राओं और मृदभांड के बारे में गहराई के साथ निरीक्षण किए जाने के बाद निदेशक अमित राय जैन ने बताया कि प्राचीन सिक्के कुषाण कालीन शासक वासुदेव द्वारा 200-225 एडी (1800-2000 वर्ष) पहले अपनी विनिमय मुद्राओं के रूप में जारी किए गए थे। उन्होंने बताया कि इन मुद्राओं पर अत्यधिक रूप से ग्रीन पैटीना चढ़ा हुआ है जिस कारण अधिकांश सिक्कों पर अंकित चित्र, भाषा स्पष्ट नहीं हैं। 7-8 ग्राम वजनी सिक्का 23 मिमी का है। सिक्के के एक ओर स्वयं राजा वासुदेव खडी मुद्रा में सर पर मुकुट पहने हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ से यज्ञ वेदी में आहूति डालते हुए हैं। वहीं सिक्के के दूसरी ओर भगवान शिव डमरू व त्रिशूल के साथ अपने वाहन नंदी के साथ खडे हुए हैं।
Created On :   18 Nov 2018 9:05 AM GMT