अपना और अपनी बहन का पेट भरने दुकानों पर काम करने पर मजबूर है 11 साल का अंकित , नहीं मिली कोई सरकारी सहायता

माता पिता की मौत के बाद कोरोना ने दादी को भी छीना, बेसहारा हुए भाई बहन अपना और अपनी बहन का पेट भरने दुकानों पर काम करने पर मजबूर है 11 साल का अंकित , नहीं मिली कोई सरकारी सहायता

Bhaskar Hindi
Update: 2021-08-28 08:31 GMT
अपना और अपनी बहन का पेट भरने दुकानों पर काम करने पर मजबूर है 11 साल का अंकित , नहीं मिली कोई सरकारी सहायता

डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा/चौरई। माता-पिता की असामयिक मौत के बाद दादी के भरोसे जीवन गुजार रहे दो नाबालिग बच्चों का एक मात्र सहारा भीकोरोनाकाल में छिन गया ।  अब  13 साल का अंकित अपना और अपनी बहिन का पेट भरने के लिए दुकानों में काम करने महबूर है । सरकारी सहायता के नाम पर मात्र कागजी घोड़े दौड़ रहे हैं जिससे इन बच्चों की पढ़ाई भी छूट गई है । पहले ये बच्चे जीवन यापन और पढ़ाई के लिए रिश्तेदारों पर आश्रित थे किंतु उन्हेंं अब यह आसरा नहीं मिल पर रहा है । स्कूल जाने की उम्र में उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। 13 साल का भाई अपनी बहन व खुद का गुजारा करने के लिए दुकानों पर काम करने मजबूर हो गया है।  नगर के वार्ड 3 निवासी कौशल्या बाई सांवरे के बेटे प्रमोद की वर्ष 2019 में बीमारी के चलते मृत्यु हो गई थी। प्रमोद की पत्नी राधाबाई का वर्ष 2012 में ही निधन हो चुका था। प्रमोद और राधा के तीन बच्चे प्रियंका 16 साल, अंकित 13 साल, नैंसी 9 साल हैं। राधा की मौत के बाद 9 साल पहले 2 माह की नैंसी को उसके मामा अपने साथ ले गए। बेटा बहू की मौत के बाद प्रियंका और अंकित के पालन पोषण की जिम्मेदारी बुजुर्ग कौशल्या बाई ने संभाली। जनपद पंचायत कार्यालय के सामने चाय बेचकर कौशल्या बाई अपना और पोते पोती का भरण पोषण करती थी। कोरोना काल में 12 अप्रैल को कौशल्या बाई का निधन हो गया। माता-पिता के बाद दादी का साया उठ जाने के बाद प्रियंका और अंकित बेसहारा हो गए।
पढ़ाई छोडऩा मजबूरी बना
अंकित ने बताया कि  वह और उसकी बहन प्रियंका सांवरे दादी के मकान में रह रहे हैं। प्रियंका 11 वीं तो अंकित 9 वी कक्षा में पढ़ रहा है। दादी की मौत के बाद मामा और रिश्तेदारों की मदद से उनका गुजारा हो जाता है, लेकिन पढ़ाई सहित अन्य खर्चों के लिए उनके पास कोई जरिया नहीं है। मामा भी मध्यम वर्गीय परिवार से हैं ऐसी स्थिति में वे भी सीमित सहयोग ही कर पाते हैं। ऐसे में घर चलाने के लिए वह खुद दुकानों में काम करने को मजबूर हो गया है।
सरकारी मदद पर टिकी आस
बच्चों ने बताया कि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया हैं। वे आगे पढऩा चाहता हैं, जिससे अपने सपनों को सच कर सके। मामा और रिश्तेदारों ने आर्थिक सहायता के लिए अधिकारियों को आवेदन दिया था लेकिन अब तक कोई सहायता नहीं मिल पाई हैं। इन बच्चों को पालन पोषण और अच्छे भविष्य के लिए अब सरकारी मदद पर ही आस टिकी हैं।
इनका कहना है...
शासकीय योजनाओं के तहत बच्चों को भरणपोषण के लिए हर माह सहायता राशि मिल जाए, इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर भोपाल भेजा गया है। उनकी पढ़ाई सुचारु और बेहतर तरीके से हो इसके लिए शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिए गए हैं।
-ओमप्रकाश सनोडिया, एसडीएम चौरई।

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