सचिन पायलट ही नहीं बल्कि उनके पिता राजेश पायलट से भी थे गहलोत का छत्तीस का आंकड़ा, जानिए पूरा मामला

राजस्थान कांग्रेस सियासी संकट सचिन पायलट ही नहीं बल्कि उनके पिता राजेश पायलट से भी थे गहलोत का छत्तीस का आंकड़ा, जानिए पूरा मामला

Anupam Tiwari
Update: 2022-09-29 19:13 GMT
सचिन पायलट ही नहीं बल्कि उनके पिता राजेश पायलट से भी थे गहलोत का छत्तीस का आंकड़ा, जानिए पूरा मामला

डिजिटल डेस्क, जयपुर। देश की सियासत में इन दिनों राजस्थान कांग्रेस का मुद्दा गरमाया हुआ है। इस वक्त देश की राजनीति कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव से लेकर राजस्थान में नए मुख्यमंत्री बनने के इर्द-गिर्द घूम रही है। एक तरफ अशोक गहलोत को सीएम पद का मोह सता रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सचिन पायलट की सीएम बनने की चाहत ने राजस्थान में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है। अब इसी को लेकर गहलोत गुट और सचिन पायलट गुट दोनों आमने-सामने आ गए हैं। लेकिन इस बार तो गहलोत ने आलाकमान को अपनी ताकत का एहसास भी करा दिया।

 वैसे अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच अनबन की कहानी कोई नहीं है। सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट के साथ भी गहलोत की जमती नहीं थी। अब जब सचिन पायलट व गहलोत के बीच चल रही खींचतान से कांग्रेस आलाकमान भी परेशान है तो ऐसे अशोक गहलोत व राजेश पायलट के बीच संबंधों की याद ताजा हो जाती हैं। आइए आज हम इसी पर बात करते हैं।

गहलोत और राजेश पायलट के बीच थी कड़वाहट

राजस्थान की सियासत में अशोक गहलोत व राजेश पायलट ने एक साथ ही एंट्री की थी। दोनों की राजीव गांधी से अच्छे ताल्लुकात थे। फिर भी दोनों के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था। वर्ष 1993 में गहलोत व राजेश पायलट के बीच जोधपुर में कड़वाहट खुलकर सामने गई थी। हुआ ये था कि राजेश पायलट तब केंद्र सरकार में संचार राज्य मंत्री थे, उन्हें जोधपुर में प्रधान डाकघर के एक भवन का उद्धाटन करना था, उसी वजह से कार्यक्रम में आए हुए थे। अशोक गहलोत भी जोधपुर से कांग्रेस सांसद थे। दोनों एक ही पार्टी से भी थे। फिर भी गहलोत को नहीं बुलाया गया था।

कार्यक्रम में गहलोत को न देखकर उनके समर्थक नाराज दिखे और उन्होंने सीधे पायलट से ही पूछ लिया कि हमारे सांसद कहां हैं? कहीं दिख नहीं रहे हैं। इस पर राजेश पायलट ने तंज कसते हुए कहा कि यहीं कहीं होंगे बेचारे गहलोत। दोनों एक ही राज्य से संबंध रखते थे, शायद इसी वहज से एक-दूसरे की सफलता खटकती थी। राजेश पायलट ने 1993 में ही गहलोत से मंत्री पद ले लिया था। राजेश पायलट राजस्थान के दिग्गज नेता माने थे और उनकी लोगों के बीच अच्छी खासी पकड़ थी।

पूर्व सीएम को छोड़कर मूर्ति अनावरण के लिए पहुंच गए थे

राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद तिवारी बताते हैं कि एक बार राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के चुनाव क्षेत्र में राजेश पायलट मूर्ति का अनावरण करने आए थे। लेकिन उन्हें जयपुर ही छोड़ कर चले आए। उन्होंने कहा कि दिल्ली से हवाई जहाज से जयपुर आए थे लेकिन शिवचरण माथुर किन्हीं वजह से एयरपोर्ट पर देर से पहुंचे थे, फिर उन्हें छोड़कर ही पायलट मूर्ति अनावरण करने पहुंच गए थे। राजेश पायलट कुछ ऐसे ही स्वभाव था। तब माथुर ने तंज कसा था कि इतना तेज मत उड़ान भरिए। 

गहलोत को मिलता रहा वफादारी का इनाम

अशोक गहलोत को हमेशा गांधी परिवार के प्रति वफादार होने का इनाम मिलता रहा है। गहलोत इंदिरा गांधी, राजीव गांधी व सोनिया गांधी के कार्यकाल में सत्ता की मलाई खाते रहे हैं। बताया ये भी जाता है कि गांधी परिवार गहलोत पर आंख मूंदकर भरोसा भी करता आया है। लेकिन वर्ष 1993 के दौरान जब सोनिया गांधी एक्टिव नहीं थीं, तब गहलोत राजस्थान की सियासत में दरकिनार किया जाने लगा और राजेश पायलट का कद बढ़ने लगा था। फिर जादूगर गहलोत ने बाजी पलटी और राजस्थान अध्यक्ष पद पर बैठ गए।

हालांकि, फिर 1998 के बाद से वक्त ने ऐसा करवट लिया कि गहलोत की लॉटरी ही लग गई। सोनिया गांधी सक्रिय हुईं और गहलोत का कद बढ़ने लगा। कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव में गहलोत ने खुलकर सोनिया गांधी का समर्थन किया तो राजेश पायलट जितेंद्र प्रसाद के साथ दिखे थे। माना जा रहा है कि हाईकमान इसी वजह से गहलोत को राजस्थान की कमान सौंप दी थी। 

पूर्व सीएम का पत्ता काट गहलोत को मिली थी कमान

अशोक गहलोत पर गांधी परिवार की हमेंशा कृपा बनी रही। 1998 में जब राजस्थान के सीएम बने थे, तब वह विधायक भी नहीं थे। ऐसे में मांग उठ रही थी कि जो विधायकों में से ही किसी को सीएम बनाया जाए लेकिन गांधी परिवार का गहलोत के प्रति अटूट आस्था ने सभी की बात दरकिनार कर गहलोत को सीएम की गद्दी पर बैठाया।

उस वक्त राजस्थान कांग्रेस में दो अन्य लोग प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन पार्टी आलाकमान ने उन पर भरोसा नहीं जताया था। उस वक्त गहलोत राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। दो अन्य दावेदार में प्रमुख रूप से परसराम मदेरणा और पूर्व सीएम शिवचरण माथुर थे। उस समय माथुर ने आवाज उठाई थी और कहा था कि विधायकों में से ही कोई सीएम बनाया जाए। लेकिन उनकी बातों पर भी आलाकमान ने कोई अलम नहीं किया था।

गांधी परिवार को लगा झटका

दरअसल, अशोक गहलोत को गांधी परिवार का करीबी माना जा रहा है। लेकिन 25 सितंबर की शाम को जो राजस्थान में ड्रामा हुआ, उसका अंदाजा हाईकमान को भी नहीं था। इससे न सिर्फ गहलोत खेमे बल्कि कांग्रेस आलाकमान की भी खूब किरकिरी हुई है। पत्रकार प्रमोद तिवारी बताते हैं कि पार्टी ऐसे लोगों के खिलाफ एक्शन ले सकती है, जिन्होंने राजस्थान में माहौल बिगाड़ने का काम किया है।

कयास ये भी लगाया जा रहा है कि पार्टी अब 2023 विधानसभा चुनाव को देखते हुए साइलेंट रहे फिर सचिन पायलट के नेतृत्व में ही अगला चुनाव लड़े। वैसे, अशोक गहलोत अब स्पष्ट कर चुके हैं कि वह कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ेंगे।

 

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