50 साल बाद भी बरकरार है 'शोले' का जादू: 'रामगढ़ में गूंजती घोड़ों की टापें, जय-वीरू की दोस्ती, बसंती का चुलबुलापन, ठाकुर का बदला.. सब हो गए अमर', गब्बर की आखिरी चीख के साथ विदेश में होगी रिलीज

रामगढ़ में गूंजती घोड़ों की टापें, जय-वीरू की दोस्ती, बसंती का चुलबुलापन, ठाकुर का बदला.. सब हो गए अमर, गब्बर की आखिरी चीख के साथ विदेश में होगी रिलीज
  • 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी क्लासिक फिल्म शोले
  • रमेश सिप्पी ने किया था फिल्म का निर्देशन
  • अपने डायलॉग और अदाकारी के लिए प्रसिद्ध है फिल्म

डिजिटल डेस्क, मुंबई। 15 अगस्त, 1975... सिनेमाई परदे पर उभरा एक जादू- शोले... 50 साल बाद भी जादू बरकरार है। जुल्म, दहशत, दोस्ती, हिम्मत, जिंदादिली, बदले – तमाम जज्बात की इस दास्तान ने भारतीय सिनेमा में एक नया युग शुरू किया। ‘शोले’ का यह स्वर्ण जयंती वर्ष है, लेकिन आज भी इसका हर किरदार, हर संवाद और हर दृश्य दर्शकों के दिल में उतनी ही गूंज पैदा करता है। इस ऐतिहासिक मौके पर, फिल्म का बारीकी से किया गया डिजिटल रिस्टोरेशन सिनेमाई विरासत को नया आयाम देने वाला है। इस नए रूप में फिल्म का क्लाइमैक्स अब बदल चुका है। आइए, जानते हैं कि क्या है यह बदलाव और कैसे आज भी जादू है यह क्लासिक फिल्म...

‘शोले’ के मूल प्रिंट के रिपेयर और संरक्षण का सफर पूरा हो चुका है। सिप्पी फिल्म्स और फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन की तीन साल की मेहनत ने इस कालजयी फिल्म को नया रूप दे दिया है। न सिर्फ फिल्म की तस्वीर और रंगों को निखारा गया, बल्कि इसका असली अंत दिखाया गया और वे सीन भी फिर जोड़े गए, जो पहले हटा दिए गए थे। फिल्म हेरिटेज फॉउंडेशन के निदेशक और संस्थापक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में बताई इस सफर की कहानी...

ऐसे हुई शुरुआत

साल 2022 में सिप्पी फिल्म्स के शहजाद सिप्पी ने फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन से संपर्क करके कहा कि ‘शोले’ की असली रीलें और सामग्री नहीं मिल रही हैं। कुछ नेगेटिव बेहद खराब हालत में मुंबई के एक गोदाम में मिले। बिना नाम वाले डिब्बे में ‘शोले’ की 35 मिमी कैमरा रील और आवाज की असली रिकॉर्डिंग मिली। यह देख निर्देशक रमेश सिप्पी भी भावुक हो गए। लेकिन इनमें आरडी बर्मन के ट्रैक गायब थे।

लंदन से भी आया खजाना

फिल्म की कुछ सामग्री लंदन में भी रखी है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट की मदद से लंदन से भी रीलें मंगवाई गईं। मुंबई और लंदन की इन रीलों को इटली भेजा गया, जहां उनकी सफाई और मरम्मत का काम शुरू हुआ। इन रीलों में फिल्म का वो क्लाइमेक्स भी मिला जिसमें गब्बर को ठाकुर मार देता है। मूल कैमरा रील बहुत खराब हालत में थी, इसलिए ज़्यादातर काम दूसरी रीलों से किया गया। लंदन से मिली एक रील में फिल्म का असली अंत और दो ऐसे सीन थे, जो पहले हटाए गए थे।

तकनीक और यादें

फाउंडेशन को ‘शोले’ की शूटिंग में इस्तेमाल हुआ पुराना एआरआरआई 2सी कैमरा भी मिल गया। चूंकि 70 मिमी प्रिंट नहीं थे, इसलिए सिनेमैटोग्राफर कमलाकर राव से सलाह ली गई, जिन्होंने ‘शोले’ के समय द्वारका दिवेचा के साथ काम किया था। उनकी बताई तकनीक से फिल्म का स्क्रीन साइज 2.2:1 तय किया गया। सिप्पी फिल्म्स के दफ्तर से फिल्म की असली आवाज की मैग्नेटिक रीलें भी मिल गईं। इन्हें साफ करके और मूल रिकॉर्डिंग के साथ मिलाकर आवाज को एकदम नया रूप दिया गया।

गब्बर सचमुच मरेगा

दो इंटर पॉजिटिव और दो कलर रिवर्सल रीलों से तैयार किए गए नए संस्करण में न केवल फिल्म का असली अंत शामिल है, बल्कि वे दुर्लभ दृश्य भी हैं, जो 1975 की रिलीज से पहले हटा दिए गए थे। दरअसल, निर्देशक रमेेश सिप्पी की मूल कल्पना यही थी कि फिल्म का क्लाइमेक्स ठाकुर के बदले के साथ समाप्त हो जहां वह अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मारकर अपने परिवार का बदला ले। लेकिन 1975 में देश में लागू आपातकाल के दौरान यह अंत ‘अत्यधिक हिंसक’ मानकर बदल दिया गया। मजबूरी में निर्देशक को वह दृश्य हटाना पड़ा और फिल्म का अंत बदलना पड़ा। अब आधी सदी बाद, रमेेश सिप्पी की इच्छा पूरी हो रही है।

नए क्लाइमेक्स के साथ टोरंटो में नया प्रीमियर

‘शोले’ का बिना किसी कट वाला संस्करण 6 सितंबर को टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के 50वें संस्करण में 1800 सीटों वाले भव्य रॉय थॉमसन हॉल में गाला प्रीमियर के साथ दुनिया के सामने पेश होगा। मुंबई के मिनर्वा सिनेमाघर में लगातार पांच वर्ष तक चली यह फिल्म नया जादू रचेगी। रमेश सिप्पी की 1975 की यह कालजयी कृति केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन चुकी है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के 2002 के पोल में सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म और 1999 में बीबीसी इंडिया द्वारा फिल्म ऑफ द मिलेनियम का दर्जा पाने वाली यह कृति सलीम-जावेद की कलम, आर.डी. बर्मन के संगीत, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी, संजीव कुमार, अमजद खान जैसे सितारों की अदाकारी से ऐसा यादगार शाहकार बन गई, जिसमें दोस्ती, बदला, हास्य और त्रासदी- सभी एक साथ सांस लेते हैं। ‘शोले’ भारतीय सिनेमा की पहली 70 मिमी फिल्म थी, जिसमें स्टीरियोफोनिक साउंड का भी प्रयोग हुआ।

Created On :   15 Aug 2025 12:08 AM IST

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