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Beed News: बुरी शक्तियों से भक्तों की रक्षा करने वाली कालिका माता 8 सौ साल पुराने हेमांडपंथी मंदिर में सुशोभित

Beed News. यह पावन मां की प्रतिमा शिरूर कासार में सिंदफना नदी तट पर हेमांडपंथी शैली के बने मंदिर में विराजित है। नवरात्रि के मौके पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। जो अपनी मनोकामनाएं लेकर मां के दरबार पहुंचत रहे हैं। मंदिर दक्षिण भारत और दक्कन क्षेत्र में 13वीं शताब्दी के बाद प्रसारित हुई पत्थर निर्मित स्थापत्य शैली है। हेमांडपंथी श्री कालिका माता का प्राचीन मंदिर 700–800 वर्ष पुराना है, हालांकि यह निजामशाही, मुगल और ब्रिटिश शासनकाल का भी गवाह रहा है। नवरात्रि पर्व पर यहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगती हैं। श्रद्धालु पूरे मन से माता की सेवा और पूजा करते हैं। माना जाता है कि जो भक्त नवरात्रि में माता की श्रद्धा से सेवा करता हैं, उस पर श्री कालिका माता का आशीर्वाद बना रहता है। शहर के वे नागरिक जो काम या पढ़ाई के लिए मुंबई, पुणे, नागपुर, छत्रपती संभाजीनगर जैसे शहरों या अन्य जिलों में रहते हैं, वे भी इस खास मौके पर विशेष रूप से माता के दर्शन करने आते हैं। शिरूर कासार और आसपास के नागरिक इन दिनों नंगे पांव ही रहते हैं और उपवास कर माता की आराधना करते हैं।
श्री कालिका माता का श्रृंगार
खास बात है कि यहां माता को हरे रंग की साड़ी, नथ, चूड़ियां और विभिन्न आभूषण पहनाए जाते हैं। उनके हाथों में त्रिशूल और तलवार रहती है। यह स्वरूप राक्षसों के विनाश के लिए रुद्र अवतार का प्रतीक है। शिरूर कासार का कालिका मंदिर क्षेत्र के चार प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।
मंदिर में वर्षभर चार महोत्सव
श्री कालिका माता का महोत्सव वर्ष में चार बार मनाया जाता है,
- चैत्र शुद्ध अष्टमी
- आषाढ़ वद्य अमावस्या
- फाल्गुन अमावस्या
- आश्विन शुद्ध दशमी
इन अवसरों पर माता की पालकी और छवि की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस शारदीय नवरात्रि पर भी मंदिर में अलग-अलग धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है।
कालिका माता की कथा
पुराणों के अनुसार, रक्तबीज नामक राक्षस को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि उसे स्त्री के अलावा कोई नहीं मार सकता। साथ ही, उसके रक्त की हर बूंद के जमीन पर गिरते ही एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता। इस कारण देवता उसे मारने में असमर्थ थे और तीनों लोकों में आतंक फैल गया था। निराश होकर देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी। उस समय शिव ध्यान में थे, इसलिए देवताओं ने माता पार्वती की आराधना की। माता पार्वती ने क्रोधित होकर कालीका का रूप धारण किया और रक्तबीज से युद्ध किया। उन्होंने अपनी जीभ फैला दी ताकि रक्तबीज का रक्त जमीन पर न गिरे। अंततः, रक्तबीज का रक्त पीकर उसे शक्तिहीन कर दिया और तलवार से उसका वध किया। तभी से कालिका माता की आराधना प्रचलित हुई और मंदिरों में उनकी प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाने लगी।
इस मंदि को हेमांडपंथी शैली में बनाया गया है। यह मंदिर वास्तव में शिल्पकला, पत्थर की बनावट, उसके जोड़ों की सटीकता को लेकर भी जानाजाता है। माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूर्ण होती है।
Created On :   25 Sept 2025 6:48 PM IST