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Gondia News: पूर्व विदर्भ के राइस मिलों का अस्तित्व खतरे में , दाम न मिलने से दूसरे राज्यों में जा रही फसल

- चावल उद्योग के लिए विशेष उपाय योजना करने की मांग
- राइस मिलों को मिल रहा केवल 10 क्विंटल धान
Gondia News राज्य के विदर्भ क्षेत्र के पूर्वी हिस्से को धान उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। गोंदिया, भंडारा, गड़चिरोली, चंद्रपुर, व नागपुर में राइस मिल उद्योग प्रमुखता से रोजगारपूरक उद्योग है। विशेष रूप से गोंदिया-भंडारा जिले में कोई बड़े उद्योग नहीं होने के कारण राइस मिल एकमात्र उद्योग है, जो क्षेत्र में रोजगार देने वाला है और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को संचालित करता है। लेकिन दिन-ब-दिन इस उद्योग की हालत खराब होने से पूर्व विदर्भ के राइस मिलों का अस्तित्व खतरे में आ गया है।
गोंदिया जिला राइस मिल एसोसिएशन के सचिव महेश अग्रवाल ने कहा कि, बैंकों से भारी कर्ज लेकर चल रहे इन उद्योगों की प्रतिस्पर्धा पड़ोसी राज्यों के उद्योगों से है। लेकिन हमारे राज्य में यह उद्योग अब न केवल पिछड़ता जा रहा है, बल्कि इस पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। शासन से पूर्व विदर्भ के चावल उद्योग की ओर गंभीरता से ध्यान देकर विशेष उपाय योजना करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि, पूर्वी विदर्भ में लगभग 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ एवं रबी सीजन में मिलाकर 40 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन होता है। जिनमें से पिछले कुछ वर्षों से 10 से 15 लाख मीट्रिक टन धान एमएसपी पर राज्य सरकार खरीदती है और लगभग इतना ही धान दाम अधिक मिलने के कारण पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में बिक्री के लिए चला जाता है।
शेष बचा लगभग 10 लाख क्विंटल धान राइस मिलों को चलाने के लिए उपलब्ध होता है, जो अत्यंत कम है। जिसके कारण स्थानीय राइस मिल सरकार द्वारा एमएसपी पर खरीदे गए धान की कस्टम मिलिंग पर निर्भर है। लेकिन पिछले 4 वर्षों से कस्टम मिलिंग राइस मिलर्स के लिए नुकसानदेह साबित हो रही है। अग्रवाल ने बताया कि, गत 12 वर्षों से राज्य सरकार से मिलिंग इंसेंटिव नहीं लिया जा रहा है। केवल 10 रुपए प्रति क्विंटल में मिलिंग हो रही है। जबकि अन्य राज्यों में इंसेंटिव के रूप में बड़ी राशि दी जा रही है। ट्रांसपोर्ट की दरे भी पहले से कम कर दी गई हंै। राइस मिलर्स को ट्रकों में धान की एवं चावल की लोडिंग-अनलोडिंग की हमाली नहीं दी जा रही हंै। जबकि केंद्र एवं अन्य राज्यों में यह प्रावधान है। जिसके कारण लगातार नुकसान झेलने की वजह से अधिकांश राइस मिले कर्ज के बोझ में डूब रही है, जो चल रही है वे नुकसान में है। यदि यहीं स्थिति बनी रही तो इस पिछड़े क्षेत्र में कृषि उपज पर आधारित एकमात्र उद्योग है, जो कि रोजगार देने वाला उद्योग है और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को संचालित करता है। वह बंद होने की कगार पर पहुंच जाएगा।
सरकार पर एक हजार करोड़ बकाया : राइस मिलों को वर्ष 2021 के पश्चात चार वर्षों से कस्टम मिलिंग कार्य में कोई भी पेमेंट नहीं मिला है। यह राशि लगभग 1 हजार करोड़ रुपए है। उसी प्रकार राइस मिलों का वर्ष 2016 से 2021 के बीच का धान कस्टम मिलिंग का लगभग 56 करोड़ रुपयों का बकाया नहीं मिला है। जिसके कारण राइस मिले या तो बंद हो रही है या फिर कर्ज में डूब रही हंै। सरकार को इस उद्योग को बचाने के लिए आवश्यक उपाय योजना तत्काल करनी चाहिए। - महेश अग्रवाल, सचिव, गोंदिया जिला राइस मिलर्स एसोसिएशन
Created On :   18 July 2025 3:01 PM IST