Mumbai News: अदालत ने पत्नी की कथित आत्महत्या के मामले में 27 साल बाद व्यक्ति को किया बरी

अदालत ने पत्नी की कथित आत्महत्या के मामले में 27 साल बाद व्यक्ति को किया बरी
सिर्फ नाखुशी क्रूरता का सबूत नहीं- कोर्ट

Mumbai News बॉम्बे हाई कोर्ट ने 27 साल से अधिक समय से पत्नी को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए दोषी करार दिए जाने के कलंक के साथ जी व्यक्ति को दोषमुक्त कर दिया। अदालत ने कहा कि सिर्फ नाखुशी क्रूरता का सबूत नहीं है। व्यक्ति के खिलाफ ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे पता चले कि उसने अपनी पत्नी के साथ क्रूरता की थी और उसे मौत के लिए उकसाया था।

न्यायमूर्ति मिलिंद साठे की अकाल पीठ ने पुणे के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के 1998 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें रामप्रकाश उर्फ पोपट गोविंद मनोहर को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 498-ए (क्रूरता) के तहत तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। उस समय उनकी मां को भी सह-आरोपी बनाया गया था। उन्हें भी बरी कर दिया गया।

मनोहर ने मई 1997 में रेखा से शादी की थी। वह शादी से छह महीने बाद पुणे के पास एक नदी में मृत पाई गईं। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि रेखा को पैसे और सिलाई मशीन के लिए परेशान किया गया, जिसके कारण उसने नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली। मनोहर ने इन दावों का खंडन किया।

पीठ ने कहा कि हमें साक्ष्यों की जाच के बाद क्रूरता या उकसावे की पुष्टि करने वाला कोई सबूत नहीं मिला।क्रूरता का आवश्यक तत्व किसी महिला को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर सकता है। इस मामले में स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है। इसे साबित करना तो और भी मुश्किल है। केवल यह कहना कि मृतक बेटी दुखी रहती थी और रोती रहती थी, यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि उत्पीड़न हुआ था।

पीठ ने कहा कि किसी भी पड़ोसी से पूछताछ नहीं की गई, पंच गवाह अपने बयान से मुकर गया और आरोपी के घर से सिलाई मशीन की कथित बरामदगी साबित नहीं हुई। यहां तक कि मशीन का स्वामित्व भी संदिग्ध था, क्योंकि रसीद किसी और के नाम पर थी।

Created On :   7 Nov 2025 7:32 PM IST

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