बॉम्बे हाई कोर्ट: बम विस्फोट की ईमेल से मिली धमकी, मेधावी होना एफआईआर रद्द का आधार नहीं, स्कूली बच्चों की सुरक्षा पर सरकार को फटकार

बम विस्फोट की ईमेल से मिली धमकी, मेधावी होना एफआईआर रद्द का आधार नहीं, स्कूली बच्चों की सुरक्षा पर सरकार को फटकार
  • एक सप्ताह में दूसरी बार बम विस्फोट की ईमेल से मिली धमकी
  • मेधावी छात्रा होना एफआईआर रद्द करने का कोई आधार नहीं
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्कूली बच्चों की सुरक्षा पर दिशानिर्देशों का ठीक तरह से अमल नहीं करने पर राज्य सरकार को लगाई फटकार

Mumbai News. बॉम्बे हाईकोर्ट को एक सप्ताह में दूसरा बम विस्फोट की ईमेल से धमकी मिली है। मुंबई पुलिस ने हाई कोर्ट इमारत की गहन जांच की, लेकिन कोई भी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली। पुलिस की जांच में धमकी फर्जी साबित हुई। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि हाई कोर्ट को शुक्रवार बम विस्फोट की सूचना देने वाला एक ईमेल सुबह-सुबह आधिकारिक आईडी पर प्राप्त हुआ। पुलिस के बम निरोधक दस्ते (बीडीडीएस) और डॉग स्क्वॉड की टीमें ने हाई कोर्ट परिसर की पूरी तलाशी ली, लेकिन कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला। इस बार अदालत अपने नियमित समय के अनुसार काम करने लगी। इससे पहले हाई कोर्ट को 12 सितंबर को भी इसी तरह का एक धमकी भरा ईमेल मिला था, जिसके कारण कुछ घंटों के लिए सुनवाई स्थगित करनी पड़ी थी। हाई कोर्ट परिसर को पूरी तरह से खाली करा लिया गया था। पुलिस ने उस समय अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

मेधावी छात्रा होना एफआईआर रद्द करने का कोई आधार नहीं...बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मेधावी छात्रा होना एफआईआर रद्द करने का कोई आधार नहीं है। छात्रा ने सोशल मीडिया पर ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित आपत्तिजनक पोस्ट को दोबारा पोस्ट किया किया। उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को सिर्फ इसलिए रद्द नहीं कर सकता है, क्योंकि उसने माफी मांग ली है और वह एक मेधावी छात्रा है या उसने अपनी परीक्षाएं अच्छे अंकों से पास की हैं। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड़ की पीठ के समक्ष पुणे की 19 वर्षीय इंजीनियरिंग की छात्रा की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में इस साल मई में पुणे पुलिस द्वारा उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने का अनुरोध किया गया। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा यह बहुत गंभीर मामला है। अगर आप एक पढ़ने वाली बच्ची हैं, तो इस पर केवल जमानत के लिए विचार किया जा सकता है, लेकिन हम एफआईआर रद्द नहीं कर सकते है। छात्रा की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि उनकी मुवक्किल ने अच्छे अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण की है और अदालत को इस पर विचार करना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि यह ठीक है कि आप एक होनहार छात्रा हैं, लेकिन यह एफआईआर रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है। याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी दलील दी कि उनके मुवक्किल की ओर से कोई दुर्भावनापूर्ण इरादे नहीं थे। उनके मुवक्किल ने भी पोस्ट हटा दी। उसे भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि दुर्भावनापूर्ण इरादे अप्रासंगिक हैं। हटाने से आपका (हटाने का) निर्णय और जटिल हो जाता है। इसके बाद पीठ ने सरकारी वकील मनकुंवर देशमुख को छात्रा के मामले की केस डायरी सीलबंद लिफाफे में अदालत में पेश करने का निर्देश दिया। पीठ ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह रखी है। सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध पुणे के सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग की छात्रा ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक तनाव से संबंधित एक विवादास्पद इंस्टाग्राम रीपोस्ट किया था। पुलिस ने 9 मई को उसके खिलाफ पुणे के कोंढवा पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया था। हाई कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ने इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना की थी और पुलिस को उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था और कॉलेज से उसे उसकी लंबित परीक्षाओं में बैठने की अनुमति देने को कहा था।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्कूली बच्चों की सुरक्षा पर दिशानिर्देशों का ठीक तरह से अमल नहीं करने पर राज्य सरकार को लगाई फटकार

बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर दिए गए दिशानिर्देशों का पूरी तरह से अमल नहीं करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने स्कूल शिक्षा विभाग को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर स्कूलों अनुपालन विवरण प्रकाशित करने का निर्देश दिया, जिससे अभिभावक देख सकें कि उनके बच्चों के स्कूलों ने क्या सुरक्षा उपाय किए हैं। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटिल की पीठ ने स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि हम राज्य की प्रगति से असंतुष्ट है। आप किसी और घटना के होने का इंतजार कर रहे हैं? अपने ही सरकारी स्कूलों में आप ने कदम नहीं उठाए हैं। पीठ ने कहा कि अनुपालन पूरी तरह से नहीं किया गया। पीठ ने राज्य के वकील से पूछा कि अब किसे बुलाया जाए? आदेश कागजों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए पारित किए जाते हैं। पीठ ने यह भी सवाल किया कि अभिभावकों को कैसे सूचित किया जा रहा है? राज्य सरकार ने दावा किया कि नए नियम व्हाट्सएप और ईमेल के जरिए साझा किए गए थे, जबकि गोंसाल्वेस ने बताया कि सभी अभिभावकों की इन प्लेटफार्म तक पहुंच नहीं है। पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि मेरा भाई एक अभिभावक है और उसे जीआर नहीं मिला है। सरासर गलत बयान न दें। झूठी गवाही देने का नोटिस जारी करने के लिए कोई तस्वीर न बनाएं और झूठा बयान न दें। पीठ ने दूरदराज और ग्रामीण इलाकों के बच्चों की देखभाल करने वाले आवासीय स्कूलों, आंगनवाड़ियों और आश्रमशालाओं में उठाए गए कदमों को स्पष्ट रूप से बताने में विफल रहने के लिए सरकार की भी खिंचाई की। पीठ ने कहा कि हमें आप की आंतरिक राजनीति और विभागों से कोई सरोकार नहीं है। न्यायमित्र रेबेका गोंसाल्वेस ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें दिखाया गया कि अधिकांश स्कूलों ने शिकायत पेटियां लगाई थीं और सुरक्षा समितियां गठित की थीं, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण उपायों की अनदेखी की गई थी। राज्य में लगभग 45315 सरकारी स्कूलों और 11139 निजी स्कूलों में अभी भी सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं। 25000 से ज्यादा सरकारी स्कूलों और 15000 निजी स्कूलों में कर्मचारियों की पृष्ठभूमि की जांच नहीं की गई। लगभग 68000 स्कूलों में बसों में जीपीएस, ड्राइवर सत्यापन और महिला परिचारिकाओं जैसे परिवहन सुरक्षा उपाय नदारद थे। परामर्श सहायता, साइबर सुरक्षा जागरूकता, आपदा प्रबंधन और आवासीय विद्यालय सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों की बिल्कुल भी समीक्षा नहीं की गई। पीठ ने मई 2025 में स्वयं इस मुद्दे पर विचार किया था। पिछले साल बदलापुर में छात्राओं के साथ दुराचार के बाद स्कूलों में सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की गई थी। इसके बाद हाई कोर्ट के दखल के बाद राज्य के स्कूली शिक्षा एवं खेल विभाग ने एक सरकारी शासनादेश (जीआर) जारी किया था, जिसमें सभी स्कूलों को सख्त सुरक्षा उपाय अपनाने का निर्देश दिया गया था। पीठ ने पाया कि कई महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय नदारद थे।

Created On :   19 Sept 2025 10:20 PM IST

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