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बॉम्बे हाई कोर्ट: मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के खिलाफ 250 करोड़ के फैसले पर बिना शर्त रोक से इनकार

- फैसले पर बिना शर्त रोक लगाने से किया इनकार
- मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के खिलाफ 250 करोड़ का फैसला
- एमएमआरसीएल की एक अंतरिम याचिका पर आदेश पारित
Mumbai News. बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) के खिलाफ मुंबई एलएंडटी-एसटीईसी संयुक्त उद्यम के पक्ष में दिए गए 250 करोड़ 82 लाख रुपए के मध्यस्थता पुरस्कार के निष्पादन पर तत्काल बिना शर्त रोक लगाने से इनकार कर दिया। एमएमआरसीएल की एक अंतरिम याचिका पर आदेश पारित किया है। यह निर्णय कुछ मेट्रो स्टेशनों और सुरंगों के डिजाइन और निर्माण के अनुबंध से संबंधित है।
न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन की एकल पीठ ने एमएमआरसीएल की अंतरिम याचिका पर कहा कि मध्यस्थता पुरस्कार (आर्बिट्रेशन अवार्ड) पर रोक तभी लगेगी, जब एमएमआरसीएल 8 सप्ताह के भीतर न्यायालय में ब्याज सहित पूरी राशि जमा कर दे। राशि जमा करने की स्थिति में ठेकेदार हाई कोर्ट के नियमों के अनुसार बिना शर्त बैंक गारंटी प्रदान करके उसे राशि को वापस लेने का हकदार होगा।
विचाराधीन अनुबंध के लिए बोली एलएंडटी-एसटीईसी जेवी मुंबई द्वारा मई 2015 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से पहले लगाई गई थी। तीन सदस्यों वाले मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने बहुमत से एमएमआरसीएल को ठेकेदार को 250 करोड़ 82 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें से 21 करोड़ 26 लाख रुपए परियोजना के दायरे से बाहर किए गए अतिरिक्त कार्य के कारण लागत में बदलाव से संबंधित थे। याचिका में बिना किसी शर्त के मध्यस्थता पुरस्कार पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था।
बहुमत का निर्णय पीठासीन मध्यस्थ और ठेकेदार द्वारा नामित मध्यस्थ द्वारा पारित किया गया, जिसमें माना कि अतिरिक्त कार्यों के लिए ठेकेदार पर निगम को 27 लाख 9 हजार रुपए का रिफंड बकाया है और जीएसटी की राशि 134 करोड़ 42 लाख रुपए तक सीमित है। बहुमत के फैसले से व्यथित होकर एमएमआरसीएल ने इस साल की शुरुआत में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
एमएमआरसीएल की ओर से राज्य महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने दलील दी कि यह फैसला प्रत्यक्ष रूप से विकृत है। इसमें ऐसी स्पष्ट भूलें की गई है कि कोई भी उचित मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को नहीं अपना सकता था।
पीठ ने कहा कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने गवाह को खारिज नहीं किया था, बल्कि गवाह से पूछताछ और जिरह की गई थी। न्यायाधिकरण ने उसकी राय में विशेषज्ञता के उसके दावों को खारिज कर दिया था, क्योंकि उसे एक स्वतंत्र विशेषज्ञ नहीं माना जा सकता था।
Created On :   24 Oct 2025 7:23 PM IST












