Mumbai News: कबूतरखाना बंदी का आदेश नहीं पर लोगों का स्वास्थ्य महत्वपूर्ण, नासिक अस्पताल कर्मचारी की विधवा को अनुग्रह मुआवजा देने का निर्देश

कबूतरखाना बंदी का आदेश नहीं पर लोगों का स्वास्थ्य महत्वपूर्ण, नासिक अस्पताल कर्मचारी की विधवा को अनुग्रह मुआवजा देने का निर्देश
  • अदालत ने कबूतरखानों में कबूतरों को दाना डालने को लेकर राज्य सरकार पर जताई नाराजगी
  • अदालत ने नागरिक विशेषज्ञ पैनल गठित करने का दिया सुझाव
  • कोरोना में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले नासिक सरकारी अस्पताल के कर्मचारी की विधवा को अनुग्रह मुआवजा देने का निर्देश

Mumbai News बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मुंबई में कबूतरखानों (कबूतर दाना स्थान) को बंद करने का कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। हमने केवल मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) द्वारा जारी किए गए बंद करने के आदेशों पर रोक नहीं लगाने का निर्णय लिया है। अदालत ने राज्य सरकार की भूमिका पर नाराजगी जताते नागरिक विशेषज्ञ पैनल गठित करने का सुझाव दिया। 13 अगस्त को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ के समक्ष बीएमसी के कबूतरों को दाना डालने पर प्रतिबंध लगाने और कबूतरखानों को बंद करने के खिलाफ पल्लवी सचिन पाटिल की ओर से वकील ध्रुव जैन की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने स्वयं कबूतरखानों को बंद करने का आदेश नहीं दिया था। जन स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। पीठ ने स्थिति का आकलन करने और सरकार को सुझाव देने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल बनाने का सुझाव दिया। पीठ ने कहा कि विशेषज्ञों की एक समिति इस बात का अध्ययन कर सकती है कि शहर में पुराने कबूतरखाने जारी रहने चाहिए या नहीं, लेकिन मानव जीवन सर्वोपरि है। अगर कोई चीज वरिष्ठ नागरिकों और बच्चों के व्यापक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, तो उस पर विचार किया जाना चाहिए। शहर में कबूतरखानों पर चादरें बिछा दी गईं, जिसके बाद लोगों का विरोध प्रदर्शन हुए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तब दावा किया था कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद कबूतरखाने बंद कर दिए गए हैं। इस पर पीठ ने कहा कि हमारे सामने बीएमसी के फैसले (कबूतरखानों को बंद करने) को चुनौती दी गई थी। हमने कोई आदेश पारित नहीं किया। हमने बस कोई अंतरिम राहत नहीं दी। पीठ ने कहा कि हमें केवल जन स्वास्थ्य की चिंता है। ये सार्वजनिक स्थान हैं, जहां हजारों लोग रहते हैं। संतुलन बनाना होगा। बहुत कम लोग हैं, जो (कबूतरों को) खाना खिलाना चाहते हैं। अब सरकार को निर्णय लेना है। इसमें कोई विरोधाभास नहीं है। पीठ ने आगे कहा कि सरकार और बीएमसी को एक सोच-समझकर निर्णय लेना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकार सुरक्षित रहें, न कि केवल कुछ इच्छुक व्यक्तियों के। सभी मेडिकल रिपोर्ट कबूतरों से होने वाले अपरिवर्तनीय नुकसान की ओर इशारा करती हैं। मानव जीवन सर्वोपरि है। पीठ ने कहा कि न्यायालय इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए कोई विशेषज्ञ नहीं है, इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले एक वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना आवश्यक है। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त के लिए स्थगित करते हुए महाराष्ट्र के महाधिवक्ता को उपस्थित रहने का निर्देश दिया, जिससे एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का आदेश पारित किया जा सके। पीठ ने कहा कि चिकित्सा सामग्री का भंडार है, जिसकी जांच की जानी चाहिए और अदालत इसकी जांच करने के लिए कोई विशेषज्ञ नहीं है। साथ ही विशेषज्ञ समिति यह तय कर सकती है कि बीएमसी का निर्णय सही था या नहीं। पीठ ने कहा कि हमारी राय में राज्य सरकार एक समिति नियुक्त करने पर विचार कर सकता है, क्योंकि वह जन स्वास्थ्य और नागरिकों का संरक्षक है। अगर समिति की राय है कि बीएमसी का निर्णय सही था, तो पक्षियों के लिए एक उपयुक्त विकल्प पर विचार किया जा सकता है। गुरुवार को दादर कबूतरखाने को पुलिस छावनी में बदल दिया। पुलिसकर्मी मास्क पहन कर सुरक्षा में तैनात थे

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कोरोना में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले नासिक सरकारी अस्पताल के कर्मचारी की विधवा को अनुग्रह मुआवजा देने का दिया निर्देश

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कोरोना के दौरान ड्यूटी जान जान कमाने वाले नासिक सरकारी अस्पताल के कर्मचारी की विधवा को अनुग्रह मुआवजा देने का निर्देश दिया है। नासिक कलेक्टर ने अस्पताल कर्मचारी को कोरोना के दौरान ड्यूटी पर मौत होने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति एम.एस. कार्णिक और न्यायमूर्ति एन.आर.बोरकर की पीठ ने मृतक रामदास वाकचौरे की पत्नी चंद्रकला की याचिका पर अपने फैसले में कहा कि हम सरकारी वकील के इस तर्क से प्रभावित नहीं हैं कि रामदास की मृत्यु एक निजी अस्पताल में हुई थी। इसलिए याचिकाकर्ता लाभ का दावा करने के हकदार नहीं हैं। इस तरह के तुच्छ विचार के आधार पर दावे को अस्वीकार करना अनुचित होगा। रामदास को कोरोना तब हुआ, जब वह एक सरकारी अस्पताल में काम कर रहे थे और वह सीधे कोरोना रोगियों के इलाज में मदद कर रहे थे। पीठ ने नासिक के कलेक्टर को निर्देश दिया कि वे केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी 28 मई 2021 के पत्र के अनुसार निर्धारित प्रारूप में प्रमाण पत्र जारी करें, जिससे याचिकाकर्ता का अनुग्रह मुआवजे का दावा राज्य सरकार और सरकारी अस्पताल को पेश किया जा सके, जिससे याचिकाकर्ता सरकारी निर्णय के अनुसार अनुग्रह मुआवजा दिया जा सके। पीठ ने कहा कि यह भी ध्यान देने योग्य है कि नासिक के सिविल सर्जन द्वारा जारी एक प्रमाण पत्र में कहा गया था कि रामदास की मृत्यु कोविड-19 के कारण हुई थी। वह नासिक के क्षेत्रीय रेफरल अस्पताल में कक्ष सेवक के पद पर कार्यरत थे। ऐसे में याचिका स्वीकार की जाती है। मृतक रामदास पत्नी चंद्रकला की याचिका में अदालत से कलेक्टर को निर्देश देने का अनुरोध किया कि वे केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी 28 मई 2021 के पत्र के अनुसार निर्धारित प्रारूप में प्रमाण पत्र जारी करें, जिससे उसे सरकारी निर्णयों के अनुसार कोरोना के कारण पति रामदास की मृत्यु के लिए अनुग्रह मुआवजा मिल सके।

Created On :   7 Aug 2025 9:12 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story