खर्चीला शीतसत्र: सरकार पर रोजाना 13 करोड़ का खर्च

सरकार पर रोजाना 13 करोड़ का खर्च
  • विधानसभा में रोज 10 घंटे तो विधान परिषद में 7 घंटे ही काम, 2 महीने पहले से तैयारी
  • हजारों लोग सड़कों पर उतरे मगर खाली हाथ ही लौटे

योगेश चिवंडे , नागपुर। विधानमंडल का शीतकालीन अधिवेशन 7 दिसंबर से नागपुर में शुरू हुआ और 20 दिसंबर को समाप्त हो गया। 14 दिन चले अधिवेशन में 4 दिन शासकीय अवकाश को छोड़ दिया जाए तो 10 दिन ही अधिवेशन में कामकाज हुआ। दैनिक भास्कर ने इससे जुड़े विशेषज्ञों से मिले आंकड़ों का आॅडिट किया। इसके अनुसार, 10 दिन में अधिवेशन पर करीब 130 करोड़ खर्च हुआ, इसमें 173 घंटे कामकाज हुआ, जिसमें से करीब 50 घंटे केवल एक -दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में गुजरे, जिसका आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं था।

विदर्भ की जनता को कुछ नहीं मिला : विधानसभा में रोजाना 10 घंटे तो विधान परिषद में रोजाना 7 घंटे का कामकाज हुआ। अधिवेशन की समाप्ति पर सरकार ने अधिवेशन को सफल बताते हुए सर्वाधिक कामकाज होने का दावा किया तो, वहीं िवपक्ष ने सरकार पर जनता को झुनझुना थमाने का आरोप लगाया है। हालांकि विदर्भ की जनता सरकार और विपक्ष दोनों से सवाल कर रही है कि 10 दिन चले इस अधिवेशन में आखिर विदर्भ को क्या मिला? करोड़ों रुपए लुटाने के बावजूद विदर्भ की जनता के हाथ खाली हैं। न किसानों को अलग से कोई मदद मिली और न विदर्भ के लिए कोई नई घोषणा की गई। जो कुछ देने का आभार कराया गया, उसमें बजट की घोषणाएं गिनाकर चल दिए।

अनेक प्रकार के खर्च शामिल : विधानमंडल से जुड़े सूत्रों की मानें तो अधिवेशन पर रोजाना औसत 13 करोड़ रुपए खर्च होता है। कभी यह खर्च बढ़ता है तो कभी कम भी होता है। लेकिन औसत 13 करोड़ के आसपास यह खर्च जाता है। इस हिसाब से 10 दिन की कार्यवाही में सरकार का अधिवेशन पर अनुमानित 130 करोड़ खर्च होने का दावा किया गया है। इसमें सदन की कार्यवाही, कागजों की छपाई, लाना ले जाना, कर्मचारियों के भत्ते, विधानभवन, रविभवन, नागभवन की साफ-सफाई, भोजन और रहने की व्यवस्था, गाड़ियों का खर्च, पुलिस बंदोबस्त सहित विविध खर्च शामिल है। इसके लिए दो महीने पहले से नागपुर में तैयारी शुरू हो जाती है।

उठाते हैं परेशानी, फिर भी झोली खाली : अधिवेशन के दौरान रेलवे स्टेशन से लेकर जीपीओ और सीताबर्डी से लेकर सदर तक ऐरिया को अतिसंवेदनशील इलाकों में तब्दील कर दिया जाता है। इस दौरान आम नागरिकों को असुविधा का सामना करना पड़ता है, वह अलग है। अपनी मांगें मनवाने के लिए राज्यभर से जो लोग आते हैं और परेशान होते हैं, उनकी समस्या अलग है। इन सब परेशानियों को सहते हुए नागरिक सरकार को कोई परेशानी नहीं होने देते। अधिवेशन सुचारू चले और विदर्भ को न्याय मिले, इसके लिए अधिवेशन के दौरान अनेक परेशानियां उठाते हैं। लेकिन सरकार औपचारिकता दिखाकर अधिवेशन निपटाती है। न कोई उत्साह और न कुछ करने का जुनून। इस कारण विदर्भ की झोली हर समय खाली रह जाती है।

"कुत्ता', विलेन की चर्चा में समय बीता : अधिवेशन के दौरान विदर्भ के मुद्दों पर कम ही चर्चा हुई। ज्यादातर समय विपक्ष और सत्तापक्ष में आरोप-प्रत्यारोप में गुजरा। ग्रामविकास मंत्री गिरीश महाजन के संबंध देशद्रोहियों से होने को लेकर हंगामा मचा तो कभी शिवसेना के किसी नेता के संबंध आतंकी कुत्ता से होने का आरोप लगाते रहे। मराठा आरक्षण चर्चा में सत्तापक्ष मराठा आरक्षण क्यों जरूरी है, यह बताने की बजाए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को विलेन नहीं हैं, यह चर्चा करने में व्यस्त दिखा। सुषमा अंधारे द्वारा दोनों सदनों में हंगामा मचा, दोनों ही सदन की सदस्य नहीं हैं। अनेक ऐसे मुद्दे रहे, जिस पर चर्चा में सत्तापक्ष-विपक्ष ने समय निकालने की कोशिश की।

और यह जरूरी मुद्दे पीछे रह गए : अधिवेशन में अनेक महत्वपूर्ण विधेयक मंजूर किए गए। महाराष्ट्र निजी विद्यापीठ (प्राइवेट यूनिवर्सिटी) िवधेयक बहुमत के साथ मंजूर किया गया। इसमें गरीब, वंचित और अन्य घटकों को सरकार से कोई मदद नहीं िमलेगी। लेकिन इस बिल पर जनता दल (यू) के कपिल पाटील ने जितनी आक्रामकता और गंभीरता से बोला, उस पर कोई नहीं बोल पाया। आसानी से यह बिल पारित हो गया। इसके अलावा अनेक बिल जिस पर चर्चा आवश्यक थी, वह बिना चर्चा के पास हो गए। अमरावती रोड स्थित सोलर कंपनी में हुए विस्फोट मामले भी सत्तापक्ष-विपक्ष की भूमिका मिली-जुली रही। विपक्ष ने औपचारिता निभाते हुए विषय उठाया और सरकार ने निवेदन कर छोड़ दिया, लेकिन ठोस कार्रवाई पर कोई निर्णय नहीं हुआ। मराठा आरक्षण पर चर्चा हुई, लेकिन मराठा को न्याय देने की बजाए खुद को ओबीसी या मराठा नेता बताने पर ज्यादा जोर दिया। यही हाल किसान से जुड़े विविध विषयों का रहा, जिस कारण किसानों के लिए कोई बड़ी घोषणा करने से सरकार बच गई।

Created On :   22 Dec 2023 8:03 AM GMT

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