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बातों में बीत गए 12 साल, कागजों से बाहर नहीं आ पाया क्रोकोडाइल सेंचुरी का प्लान, 50 मगरमच्छ हर साल तोड़ रहे दम

विडंबना - पर्यटकों के आकर्षण की जगह खौफ का कारण बनकर रह गए मगर, बेफिक्र हैं जिम्मेदार
डिजिटल डेस्क जबलपुर । परियट नदी और उससे लगे जलाशयों में मगरमच्छों का बसेरा है। जबलपुर को यह विरासत कुदरत से सौगात में मिली है। इस सौगात से पर्यटकों का दीदार कराने की योजना भी बनी। लेकिन नतीजा शिफर है। बारह साल बीत जाने के बाद भी क्रोकोडाइल सेंचुरी का प्लान साकार नहीं हो पाया।परिणाम यह हुआ कि जो मगरमच्छ सैलानियों को रिझाकर रोजगार के अवसर भी पैदा करते, वे क्षेत्र के लिए वरदान की वजह विलेन और दहशत का पर्याय बन गए हैं। फेंसिंग आदि के अभाव में ये आबादी के बीच घुस रहे हैं। हर साल करीब 50 मगरमच्छों की जान भी जा रही है।
परियट नदी में मौजूद हैं 800 मगर
परियट नदी में वर्तमान में 1 से 15 फीट की लंबाई के करीब 8 सौ मगरमच्छ मौजूद हैं। वन्य प्राणी विशेषज्ञ शंकरेन्दुनाथ ने वर्ष 2005 में मप्र हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी कि मगरों के पालन-पोषण को लेकर क्रोकोडाइल सेन्चुरी बनाई जाए या फिर इंक्यूवेशन सेंटर बने। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद हाईकोर्ट ने 2009 में वन विभाग और शासन को क्रोकोडाइल सेन्चुरी बनाने के निर्देश दिए थे। प्रोजेक्ट को लेकर वर्ष 2011-12 में शासन ने परियट नदी से लगे 10 किलोमीटर के एरिया में क्रोकोडाइल सेन्चुरी की रूपरेखा तैयार की थी। यूएनडीपी (यूनाईटेड नेशन डेवलअपमेंट प्रोजेक्ट) के तहत 2 करोड़ का फंड भी स्वीकृत हुआ था। 65 लाख रुपए भी वन विभाग को मिले थे। लेकिन कुछ ही महीने बाद यूएनडीपी ने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए अपना फंड रोक दिया था।
सिर्फ बड़े मगर ही करते हैं इंसानों पर अटैक
आमतौर पर मगरमच्छ को खतरनाक वन्य जीव माना जाता है। जिसके कारण लोग इनसे दूर ही रहते हैं, लेकिन वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ 10 फीट या उससे अधिक लंबाई वाले मगरमच्छ ही इंसानों पर हमला करते हैं। ज्यादातर मगर पानी की गहराई में रहते हैं। ठंड के मौसम में ही ये धूप सेंकने के लिए पानी से बाहर निकलते हैं।
Created On :   4 Feb 2021 2:45 PM IST