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Valentine Week: 109 लव लेटर लिखने के बाद परवान चढ़ सका प्यार
डिजिटल डेस्क, नागपुर। 80-90 दशक के बीच जब जगजीत सिंह की आवाज में जावेद अख्तर का लिखा गीत, तुम को देखा तो ये ख़याल आया, ज़िंदगी धूप तुम घना साया….रेडियो और टीवी पर छा चुका था, उस दौर में संतरानगरी के नंदनवन में दो जवां दिल एक दूजे के लिए धड़क रहे थे। दोनो के घर की खिड़की आमने-सामने थी। इसी बीच शुरू हुआ था खिड़की वाला प्यार, दोनो एक दूसरे को देखते, पर कुछ कह नहीं पाते, शायद दिल की बात दिल तक संवेदनाओं से पहुंच जाती और खिड़की के उस पार से शुरु हो जाती लुका छिपी, हालांकि इस प्यार में जमानेभर की रुकावटें थीं। जिसे भेदना भी आसान नहीं था।
दोनों बेहद खुश हैं, दो बच्चे हैं एक बेटा तो दूसरी बेटी, बेटा पुणे से पोस्ट ग्रेजुएट हो चुका है, बेटी भुवनेश्वर में एमएससी फर्स्ट इयर कर रही है।
जिन्दगी को करीब से समझने का मौका
राजेन्द्र नाईकवाडे ने बताया कि जो मजा प्रेम पत्र लिखकर अपनी फीलिंग बताने में था, वह बात डिजिटल युग में कहां। अब तो लव लैटर किस्से कहानियों की बातें हैं। उस दौर में इंटरकास्ट मैरेज किसी अपराध से कम ना थी, पारिवारिक और सामाजिक दायरे जीना दुश्वार कर देते, लेकिन खतों से अपने दिल की बात उन तक पहुंचा देता था। शायद यह प्रेम ही है, जिसने मुझे जिन्दगी करीब से समझने का मौका दिया। जिन्दगी खूबसूरत है।
यह प्रेम आज के डिजिटल युग से बहुत अलग था। स्मार्ट फोन नहीं होते थे, लेकिन स्मार्ट बनकर इसे अंजाम दिया जाता था। चैट, वॉइस कॉल और वीडियो कॉलिंग नहीं थे। बस कागज, कलम और दवात से प्यार की इबारत लिखी जाती थी।
साल 1993 में उन्होंने अपनी लव स्टोरी के संग्रह को “राजसी” नाम दिया। यह नाम राजेन्द्र और सीमा के नाम का गठजोड़ था। दरअसल राजेन्द्र मराठी साहित्य पढ़ते थे। जिसमें अनिल और कुश्मावति की कहानी से काफी प्रेरणा मिली। इसी दौर में मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम को पढ़ने समझने का मौका भी मिला।
इस प्रेम कथा की शुरुआत एक लव लेटर से हुई, प्यार परवान चढ़ते-चढ़ते इन खतों की संख्या 109 से भी पार हो गई। जमाने के डर से दोनो ने कोर्ट मैरिज कर ली थी। इसके बाद राजेन्द्र की नौकरी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लगी, बतौर लेक्चरर उन्होंने करियर की शुरुआत की, छह महीने तक दोनों एक दूसरे से अलग रहे। लेकिन यह जुदाई लंबी नहीं थी, दोनों परिवारों की सहमति बनी और भोपाल से लौटते ही दिलवाले राजेन्द्र गाजे-बाजे के साथ अपनी दुल्हनिया सीमा को साथ ले गए।
जब दोनों विवाह के बंधन में बंध गए, उस दिन राजेन्द्र को लगा, अब सब कुछ मिल गया है, जिसे सोचा, उसने जीवन भर साथ निभाने का वादा जो कर लिया था।
इसके बाद राजेन्द्र को जवाब का इंतजार रहता, पोस्टमैन के आते ही खुशी से दिल झूम उठता। राजेन्द्र ने बताया कि दो-तीन बार तो सीमा के खत राजेन्द्र के पैरेंट्स के हाथ लग गए। हंसते हुए राजेन्द्र ने बताया की वो तीन खत तो गायब कर दिए गए थे। जिनके बारे में उन्हें बाद में पता चला था।
असल में इस प्यार ने डॉ राजेन्द्र नाईकवाडे को लेखक बना दिया था। रातों को जब नींद नहीं आती थी, तो अपनी चाहत को पन्नों में उतार देते। पूरी रात कब बीत जाती, पता ही नहीं चलता, अगले दिन तो बस लेटर पोस्ट करने की जल्दबाजी रहती थी, राजेन्द्र यह लेटर अपनी क्लास मेट सीमा को लिखते थे। जिसे सीमा के घर के पते पर पोस्ट कर देते थे, जबकि दोनो का रहना तो आमने-सामने ही था।
एक वक्त ऐसा भी था जब राजेन्द्र को लगा कि परिवारों को समझाना मुश्किल है, लेकिन इस काम में उन्हें दोस्तों का साथ मिला। राजेश, बसंत, अभय, शिरीष जैसे दोस्तों के नाम वो ताउम्र भूल नहीं सकते। इसके अलावा उन्हें भाई-बहन का साथ भी मिला, जिनके प्यासों से जिन्दगी गुलजार हो गई।
साल 1985 में राजेन्द्र बीएससी कर रहे थे। उन दिनों दिल सीमा के लिए धड़कने लगा, हालांकि इसका साइड इफेक्ट पढ़ाई पर पड़ा, कॉलेज के एग्जाम में तो वे फेल हो गए, लेकिन प्यार के इम्तिहान में बाजी मार ली।
Created On :   13 Feb 2020 7:32 PM IST